अपने आस-पास बहुत सारे विचित्र लोग हैं जिनकी किस्मों की संख्या भी इतनी कि याद भी न रखी जा सके। इन अजीब किस्मों के लोगों की जिन्दगी भी इनकी ही तरह अजीब होती है। इनके व्यक्तित्व से लेकर इनकी हरकतें भी ऐसी ही हुआ करती हैं। इन सभी में आदमियों की एक विलक्षण जात होती है जिसे कँधे तलाशने वाले, आग लगाने वाले या तोपची कहा जाता है। रसायन शास्त्र के उत्प्रेरक या केटेलिस्ट की तरह ही ये दुनिया की किसी भी घटना या क्रिया की गति को धीमी या तेज कर सकते हैं लेकिन खुद अपरिवर्तित रहते हैं। आदमियों की यह किस्म इससे भी सौ गुना बढ़कर है। इस किस्म के लोग हर प्रकार की दुर्घटनाओं को अंजाम देने के आदी होते हैं और दूर से तमाशा देखकर अपने सामर्थ्य का आकलन करते रहते और तालियां बजाकर आनंदित होते हैं। इसके साथ ही एक और बात इनके साथ होती है और वह ये कि इनकी करतूतों का जो परिणाम सामने आता है उसके बारे में कहीं कोई सुराग नहीं छोड़ते कि यह किनका किया धरा है।
दूसरों के कंधों पर हथियार रखकर चलाने के आदी ये लोग जो भी काम करना चाहते हैं उसके लिए खुद कभी कुछ भी नहीं करते बल्कि इन्हें हर काम के लिए माध्यमों की तलाश बनी रहती है। माध्यमों को प्रलोभन देने से लेकर भ्रमित करने या भयभीत करते हुए भी ये अपने कामों को अंजाम देते रहते हैं। याने कि सारे काम और सोच इनकी, और आकार पाएं दूसरों के सहारे। अपने इलाके में भी ऐसे लोगों की खूब भरमार है जो खुद अपनी छवि को बगुले के वस्त्रों से भी ज्यादा साफ-सुथरी और उज्ज्वल रखते हैं और कीचड़ या कालिख ऐसी उछालते हैं कि बरसों तक उसका रंग मिटे नहीं। कीचड़ उछालने की कलाबाजियों में माहिर ऐसे लोगों में ज्यादातर वे लोग हुआ करते हैं जो अपने आपको समाज का ठेकेदार, समाज सुधारक कहते हैं या चुराई हुई अथवा षड़यंत्रपूर्वक हथियायी हुई बौद्धिक संपदा के बूते अपने आपको विद्वान और बुद्धिजीवी के रूप में प्रस्तुत करने के आदी होते हैं।
यह जरूरी नहीं कि इनमें छुटभैये लोग और उठाईगिरे न हों। इन्हें भी हक है तोप चलाने का और दूसरे के कंधों पर बंदूक रखकर दागने का। ऐसे कई लोगों के समूह बने होते हैं जो मामूली नाश्ता, चाय-कचौड़ी और हराम की चीजों को पाने के लिए एक दूसरे से जुड़ जाते हैं और पूरे तालाब को गंदा करने का ठेका उठा लेते हैं। ऐसे बदबूदार हरामखोर लोगों के समूहों को देखकर कीचड़ से सने सूअरों का झुण्ड भी शरमाने लगता है। कहने को आदमी, जिस्म आदमी का और सारी करतूतें जानवरों की। इन लोगों में हर प्रकार के जानवरों के लक्षण समय-समय पर मुखर होते रहते हैं। ऐसे में समझदार लोगों को इनकी पशुता भरी जिन्दगी को देख बीते जमाने की बातें याद आ जाती हैं जब नाखून वाले, सिंग वाले और कैंचीदार दाँत वाले हिंसक पशुओं की वजह से गुरुकुलों और बस्तियों में कितना भय व्याप्त रहा करता होगा।
किसी आदमी के पास कमाने-खाने का कोई हुनर भले न हो, कोई न कोई उस्तरा कबाड़ कर ये अपने धंधे में लग ही जाते हैं। आदमी के पास आदमियत न हो और हिंसक वृत्ति हो या किसी भी एक जानवर का कोई लक्षण हो तो उसके लिए जिन्दगी भर के लिए कमा खाने का जरिया निकल ही आता है। आजकल कई लोगों के साथ ऐसा ही हो रहा है। इन लोगों में इंसानियत नाम की कोई चीज नहीं है, न संस्कारी हैं, न पढ़े-लिखे हैं, न कोई धंधा कर सकते हैं मगर किसी न किसी हिंसक जानवर की तरह बर्ताव करते हुए कुछ भी कर गुजरते हैं। इन लोगों के पास खाने-कमाने का कोई माद्दा भले न हो, एक विलक्षण बुराई इतनी भरी हुई रहती है कि चाहे जिस तरह ये लूट-खसोट कर या कि दूसरों को गुमराह करके भी अपने सिक्के चला लेते हैं। अपने गांव-कस्बे और शहर से लेकर महानगरों तक में इस किस्म के लोगों की भारी भरमार होती है जो अपने किसी न किसी ठिकाने पर अपने उस्ताद या चेलों के साथ आसानी से दिख ही जाती है।
ये लोग अपने हर काम के लिए औरों के कंधे तलाशते हैं और दूसरों को हथियार बना कर कभी लक्ष्य भेद देते हैं, कभी अपने स्वार्थ पूरे कर लेते हैं। लोगों को यह पता भी नहीं चल पाता कि उनके कंधों का इस्तेमाल कौन कर रहा है या कर चुका है। इसकी भनक बाद में कहीं जाकर लग पाती है जब कहीं कुछ जलने की गंध आने लगती है। जमाना बड़ा खराब है। हमारे आस-पास ऐसे खूब तोपची हैं जिनके पास तरह-तरह की घातक मार करने वाले बारूद का भण्डार है, कई हथियार हैं जिन्हें आपके कंधों की तलाश है। पैनी निगाह रखें और सतर्क रहें, वरना इनमें यह कला तो है ही वे आपका कभी भी तरकीब से इस्तेमाल कर सकते हैं, अगर जरा कहीं लापरवाह हुए।
ऐसे लोगों को पहचानें और इनसे दूरी बनाए रखियें वरना पॉवर ब्रेक वाली ये गाड़ियाँ कहीं भी अपना काम तमाम कर सकती हैं। इन कंधातलाशी लोगों के चोंचले इतने कि भोले लोग बेचारे भ्रमित हुए बगैर नहीं रह सकते। बकौल कंधा तलाशों के - ‘‘हम यकीन करते हैं कंधे से कंधा मिलाकर चलने में, ये दिगर बात है कि हम चलते हुए होते हैं और लोग हमारे कंधों पर लेटे हुए।’’ हालांकि इन तोपचियों और कंधे तलाशने वालों की दुर्गति भी ऐसी होती है कि उन्हें अंतिम यात्रा पूरी करने तक के लिए कंधे तक नहीं मिल पाते। सब कुछ होने के बावजूद ऐसे लोगों से दूरी बनाये रखें और ईश्वर से दुआ करें कि इन लोगों को सद्बुद्धि दे अथवा अगले जनम में इन्हें अफ्रीका के जंगलों में विचरण करने का सुख प्रदान करे।
---डॉ. दीपक आचार्य---
9413360077
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें