कांग्रेस के तिलिस्म में उलझी भाजपा
उत्तराखण्ड में दल बदल राजनीति को लोकतंत्र की हत्या करार देने वाली भाजपा को अपने गिरेबां में भी झांकना चाहिए कि उसने भी 2007 में टीपीएस रावत को भाजपा में शामिल कराके उत्तराखण्ड की राजनीति में लोकतंत्र की हत्या करने का काम किया था। भाजपा के ही शासनकाल में उत्तराखण्ड की राजनीति को दूषित करने का जो प्रयास शुरू हुआ था कांग्रेस भी भाजपा को उसी के हथ्कण्डे से जवाब देना चाहती है तो आखिर इस बात पर भाजपा को किस बात की परेशानी हो रही है कि कांग्रेस लोकतंत्र की हत्या कर रही है। सवाल यह भी उठ रहा है कि संस्कारित भाजपा कहने वाली पार्टी क्या इतनी कमजोर हो गई है कि उसके विधायक पाला बदलने के लिए दूसरी राजनैतिक पार्टियों में जाने का मन बना रहे हैं। इसका मतलब साफ है कि उत्तराखण्ड में भाजपा के नेता अपनी पार्टी से ऐसी आशाएं लगाकर बैठे हैं कि विपक्ष में रहकर वह क्षेत्र की समस्याओं को पूरा नहीं कर सकते। शायद यही कारण है कि भाजपा के कई नेता पाला बदलने की तैयारी में समय का इंतजार कर रहे हैं, जबकि भाजपा हाईकमान से लेकर प्रदेश स्तर के नेता अपने कई विधायकों को अपने पक्ष में खड़ा करने में भी नाकामयाब साबित होता दिख रहा है, इसका उदाहरण सितारगंज से भाजपा के विधायक किरन चंद मण्डल के रूप में देखने को मिल चुका है। पिछले कई दिनों से भाजपा विधायक की कोई जानकारी उत्तराखण्ड के भाजपा नेताओं को नहीं है, सिर्फ आशंकाओं के चलते भाजपा कांग्रेस द्वारा उनके विधायक को प्रलोभन देने की बातें जरूर कह रही है, जबकि विधायक का क्षेत्र की समस्याओं को लेकर मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा से मुलाकात करने के बाद अचानक ही गायब हो जाना भी कई तरह की शंकाओं को जन्म दे रहा है। माना जा रहा है कि क्षेत्र की समस्याओं के साथ-साथ बंगाली समुदाय को भूमिधरी अधिकारी दिए जाने की प्रमुख मांग के पूरा होने पर भाजपा विधायक अपने विधायकी पद से कुर्बानी देकर क्षेत्र की जनता के लिए बहुत कुछ करने की आशाएं लेकर बैठे हैं और यदि भाजपा विधायक ऐसा करते हैं तो इससे क्षेत्र के हजारों लोग जहां लाभांवित होंगे, वहीं पिछले कई वर्षों से अपनी मांगों को लेकर कई बार आवाज उठा चुके बंगाली समुदाय के लोग भी हर वर्ग की तरह अपनी मांगों को भी पूरा होते हुए देख सकेंगे।
उत्तराखण्ड में राजनीति का स्तर दल बदल की राजनीति कर जिस तरह से भाजपा ने गिराना शुरू किया था, अब कांग्रेस भाजपा के विधायकों को कांग्रेस में लाने का प्रयास कर रही है तो भाजपा को इसमें लोकतंत्र की हत्या कहां से नजर आती है। राजनैतिक विश्लेषक मानते हैं कि उत्तराखण्ड में राजनैतिक बिसात पर धराशाही करने के लिए कांग्रेस अब भाजपा के हथियार से ही भाजपा को काटने का प्रयास कर रही है और इसकी चुभन उत्तराखण्ड से लेकर दिल्ली दरबार तक जा पहुंची है, क्यूंकि भाजपा के जो नेता कांग्रेस के संपर्क में बताए जा रहे हैं, उनमें से सभी विधायक खण्डूडी खेमें के माने जाते हैं, जिस कारण यदि भाजपा के सभी विधायक कांग्रेस के खेमें में चले जाते हैं तो यह खण्डूडी के लिए हार के बाद राजनीति की ऐसी हार होगी जिसकी भरपाई करना खण्डूडी के लिए बेहद मुश्किल भरा काम होगा,क्यूंकि टिकट वितरण में खण्डूडी खेमें के साथ-साथ कोश्यारी खेमें के भी लोगों को टिकट वितरण किया गया था और अब जो विधायक पाला बदलने की तैयारी कर रहे हैं वह भी इसी खेमें से माने जाते हैं। उपचुनाव से ठीक पहले भाजपा को घेरने के लिए कांग्रेस की रणनीति इस कदर कामयाब होती दिख रही है, जिसने उत्तराखण्ड की भाजपा को सोचने पर मजबूर कर दिया है। कुल मिलाकर उत्तराखण्ड की भाजपा कांग्रेस के इस तिलिस्म को तोड़ने में नाकामयाब होती दिख रही है। माना जा रहा है इस तिलिस्म का राज अब भाजपा के किसी भी नेता के पास मौजूद नहीं है और अब भाजपा विधायक पाला बदलने से चंद कदमों की दूरी पर जाता हुआ देखा जा रहा है। यदि ऐसा हुआ तो यह उत्तराखण्ड के इतिहास में पहली बार होगा जब किसी राजनैतिक दल का विधायक दूसरे राजनैतिक दल में इस्तीफा देकर शरण लेगा।
(राजेन्द्र जोशी)
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