हर काम का श्रेय ईश्वर को दें... - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।

मंगलवार, 8 मई 2012

हर काम का श्रेय ईश्वर को दें...

अपने आप होते जाएंगे सारे काम !!!



जो काम हुए हैं, होते रहे हैं और होंगे, इन सभी के लिए ईश्वरीय विधान ही सबसे बड़ा कारक है। व्यक्ति की निष्ठा, एकाग्रता और कर्म के प्रति समर्पण से कार्य की गुणवत्ता और सहजता का ग्राफ उच्चतम शिखर पा लेता है। श्रीमद्भगवद्गीता के कर्मयोग को आत्मसात करते हुए वह सब कुछ बड़ी ही आसानी से प्राप्त किया जा सकता है जिसकी कल्पना एक आम मनुष्य अपने पूरे जीवन में करता रहता है। जीवन की कोई सी घटना हो, अच्छी हो या बुरी। सभी में सम स्थिति में रहते हुए ईश्वर का स्मरण बनाए रखने पर ईश्वरीय शक्तियां अपनी सहायता इस प्रकार करती हैं कि हमें जीवन के हर मोड़ पर आश्चर्य के साथ सुकून का अहसास होता है।

अपने जीवन में जो भी कार्य हों, उन्हें अपना नहीं मानकर ईश्वरीय मानकर करने पर वे सारे काम स्वतः ऐसे होते चले जाते हैं जिनकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। क्योंकि ग्रहों और दूसरी ताकतों की बाधाएं तभी तक सामने आती हैं जब तक हम किसी भी काम को अपना मानकर चलते हैं। अपने मन और मस्तिष्क से बँध जाने वाले विचार और कामों के साथ यही होता है। समस्या वहीं पैदा होती है जहां किसी भी काम को अपने से जोड़ा जाता है। ऐसा होने पर उस काम विशेष का संबंध हमारे जीवन से हो जाता है और तब वह न सार्वजनीन होता है और न ईश्वरीय। इन स्थितियों में ईश्वरीय ऊर्जाएँ द्रष्टा भाव से कर्म को देखती रहती हैं उनकी सफलता में भागीदार नहीं हो पाती। ऐसे काम मानवीय भूलों, दुर्बलताओं और असफलताओं के भँवर में फँस कर रह जाते हैं।

ग्रह-उपग्रह और नक्षत्र तथा बाहर से प्राप्त होने वाली दैवीय और मानवीय ऊर्जाएँ तभी तक दूर रहती हैं जब तक हम काम को अपना मानकर चला करते हैं। इस कारण से हमें अपने कर्मयोग का पूरा प्रतिफल प्राप्त नहीं हो पाता और कर्मशीलता की पूरी यात्रा में कई बाधाएं स्वाभाविक रूप से आती रहती हैं। कर्मयोग जब ईश्वरीय संकल्प से भर जाता है तब ये सारी शक्तियाँ घनीभूत होकर सफलता के शिखरों का अवगाहन करने लग जाती हैं। और ऐसे में जो भी कार्य हाथ में लिया जाता है वह अपने आप पूर्णता को प्राप्त करने लगता है तथा इसमें किसी प्रकार की बाधा और समस्या सामने नहीं आती।

दुनिया का कोई सा काम हो, इसका श्रेय ईश्वर को ही दिए जाने पर ये अपने आप होते चले जाते हैं। आजकल लोग छोटे-छोटे काम करने पर इसका श्रेय पाने को इतने उतावले रहते हैं कि जब तक इसकी एवज में धन्यवाद या कुछ और प्राप्त नहीं कर लेते हैं, तब तक उन्हें चैन नहीं पड़ता और उद्विग्नता का ग्राफ सातवें आसमान पर रहने लगता है। यह तय माना जाना चाहिए कि जिन कामों का श्रेय ईश्वर की बजाय मुनष्य स्वयं प्राप्त करने लग जाता है उसके थोड़े-बहुत कामों में सफलता पा लेने के बाद दूसरे काम अपने आप रुक जाया करते हैं। यह बात सिर्फ आम मनुष्यों के लिए ही नहीं है बल्कि उन सभी के लिए लागू होती है जिन्हें ख़ास समझा जाता है अथवा हैं। इनमें साधु-संतों और महात्माओं से लेकर वे सभी शामिल हैं जिन्हें बड़े लोग कहा जाता है।

जो लोग बड़े से बड़े काम कर लेने के बाद भी श्रेय प्राप्ति की कामना नहीं रखा करते, उन्हें ईश्वर अपनी कृपा के उपहारों से नहलाता रहता है और ईश्वरीय गुणों के साथ मानव जीवन की सफलता के सारे सोपान उपलब्ध कराता है जो दूसरों के दिए हजारों-लाखों धन्यवादों या सांसारिक उपहारों से कहीं ज्यादा प्रभावी और शाश्वत होते हैं। जो लोग जीवन में खुद कभी श्रेय प्राप्त नहीं करते और सारा श्रेय ईश्वर को देते हैं, ईश्वर उनकी हर इच्छा का सम्मान करता हुआ उनके सारे काम फटाफट पूर्ण करता रहता है। इसलिए जीवन में औरों के लिए जो कुछ करें, श्रेय खुद न लें बल्कि ईश्वर को समर्पित करें। इसी से अनासक्त कर्मयोग की परिपूर्णता प्राप्त होती है जिसका चरम लक्ष्य होता है जीवन्मुक्ति और मोक्ष।



---डॉ. दीपक आचार्य---
9413306077

कोई टिप्पणी नहीं: