वरना जिन्दगी भर बने रहेंगे बंदर !!!
असली मनुष्य वही होता है जो भगवान द्वारा दी हुई अक्ल और जमाने से लिए गए अनुभवों आधार पर चलता हुआ जमाने को वह सब कुछ दे जाए जिसके लिए उसे धरा पर भेजा हुआ होता है। ईश्वर ने अपनी ओर से कहीं कोई कमी नहीं रख छोड़ी है, विशेषकर बुद्धि के मामले में। सभी लोगों को बराबर मात्रा में बुद्धि देकर भेजा है। यह दिगर बात है कि कुछ लोगों को अपने भीतर समाहित बुद्धिबल का पता ही नहीं होता, जबकि बहुत से लोग ऐसे हैं जो अपनी पूरी बुद्धि का इस्तेमाल नहीं कर पाते। जबकि एक और तरह के लोग हैं जो अपनी बुद्धि का पूरा-पूरा उपयोग करते हैं और दुनिया में छा जाते हैं, हालांकि ऐसे लोगों की संख्या बहुत कम होती है।
परन्तु आजकल लोगों का एक बहुत बड़ा समूह ऐसा दिखने लगा है जिसे अपने भीतर समाहित बुद्धि का ज्ञान तो है लेकिन इसका उपयोग कर पाने का माद्दा नहीं है और ऐसे में ये लोग आत्महीनता या अहंकार का शिकार होते हुए परायी बुद्धि के भरोसे जीवनयापन करने के आदी हो जाते हैं। ये लोग जब भी कुछ करने की इच्छा रखते हैं तब खुद की बजाय दूसरों के भरोसे पर ज्यादा निर्भर होते हैं और हर छोटे-बड़े काम के लिए सलाह मांगने और उनकी दी हुई सलाह पर ही चलने का फोबिया पाल लेते हैं। दूसरों की लकीरों पर सुनहरा जीवन गढ़ने के आदी ये लोग सामान्य भी हो सकते हैं और असामान्य भी। इन्हें यह भी अक्ल नहीं होती कि जिन लोगों को वे लायक मान रहे हैं वे दुनिया में सबसे निकम्मे हैं।
दूसरी ओर संसार में ऐसे लोगों की भी कोई कमी नहीं है जो अपने आपको बुद्धिमान और हमेशा सफल रहने वाले मैनेजमेंट गुरु के रूप में होने का भ्रम पाल लेते हैं और इन्हें लगता है कि बरसों से एक ही बाड़े में गुजारे हुए लम्बे क्षणों और अनुभवों की खातिर उन्हीं में वह दम है जो अच्छे अच्छों को बोतल में उतार सकता है। मजे की बात देखियें कि जिन जिन्नों को बोतल में ढक्कन बंद होना चाहिए वे बाहर रहकर दूसरों को बोतल में उतारने की कलाबाजियाँ दिखा रहे हैं। और तो और इन तिलस्मी लोगों का वजूद इतना कि अपने से बड़े ओहदों वालों को नचा रहे हैं और इनके इशारों पर वे अधोगामी लोग जमकर नाच भी रहे हैं।
नाचने वालों को कुछ पता नहीं रहता कि नाचते-नाचते वे खुद भी क्या होते जा रहे हैं। इन बेचारों को ये भी कहाँ पता होता कि जिनके इशारों पर वे नाच रहे हैं उनका आत्मीय रिश्ता उन्हीं से नहीं बल्कि उन सभी से है जो नाचने की आदत बना चुके हैं। हर नाचने वाले के साथ एक समय ऐसा आता है जब नाचते हुए आ जाने वाली चक्कर घिन्नियाँ अक्सर बेसुध और बेदम कर दिया करती हैं। और ऐसे मौके आने पर भी नचाने वाले मस्ती में भर कर नर्तन पर करतन ध्वनि करते रहते हैं। उन्हें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वे किसे नचा रहे हैं। उन्हें सिर्फ इस बात से मतलब है कि उनमें वो तासीर बनी हुई है कि ये जिसे चाहें नचा सकते हैं और वह भी विश्वास में लेकर। नचाने वाले और तो कुछ कर पाने का सामर्थ्य नहीं रखते सिवा नचाने के। इसलिए पूरी जिन्दगी लोगों को नचाने के हुनर को निखारने में लगा देते हैं।
हमारे अपने इलाके में और हमारे आस-पास ऐसे खूब लोग हैं जिन्हें नचाने और नचवाने का शौक है। और वे लोग भी हैं जो बिना कुछ सोचे-समझे नाच रहे हैं। ऐसे लोग सभी तरह के बाड़ों में हैं। ऐसे लोगों से रोजाना हमारा पाला पड़ता है। दुर्भाग्य यह है कि ऐसे लोगों की खातिर बाड़ों में नर्तन का दंगल मचा हुआ है। जहाँ कभी शांति और सुकून पसरा हुआ करता था उन बाड़ों में यकायक कर्कश ध्वनि वाले घुंघरूओं का वजूद कायम होता जा रहा है और कभी ये झिंगुरों की तरह दिन-रात आवाजें करने लगते हैं, कभी मुजरों का संगीत सुनाते। जो कुछ करें पहले खुद सोचे-समझें और इतमीनान से करें। पद-प्रतिष्ठा और शौहरत पाने के लिए दूसरों के इशारों पर नाचने का स्वभाव छोड़े बिना जीवन में पूर्णता नहीं आ सकती।
जो लोग औरों के कहे पर चलते और नाचते हैं उन्हें वह सब कुछ जरूर मिल जाए जो अभीप्सित होता है मगर इसका उपभोग और उपयोग वे आनंद के साथ कभी नहीं कर पाते क्योंकि हर काम के वक्त इन्हें नर्तन-विवशता की याद आती रहती है वहीं हमेशा इनके दिलो-दिमाग पर वे ही लोग हावी रहते हैं जो इन्हें नचाने वाले हैं। नाचने और नचवाने वालों से मुक्ति पाना कोई साधारण काम नहीं है लेकिन असंभव भी नहीं है। लेकिन ये मुक्ति वे ही लोग पा सकते हैं जिन्हें अपनी बुद्धि पर भरोसा हो और आत्मविश्वास भरा हो। खाली और खोखले तथा कुटिलता भरे दिमाग वाले लोगों के लिए जिन्दगी के अंतिम क्षण तक ऐसा कर पाना नामुमकिन होता है। दूसरों के इशारों पर नाचते-नाचते ऐसे लोगों की हालत उस बंदर की तरह हो जाती है जिसे हर कोई नचा सकता है। आज ये मदारी, तो कल कोई दूसरा होगा। जब बंदर ही बने रहना है तो नाचने में बुराई क्या है। नाचो...नाचो और खूब नाचो.....। जमाना तो हमेशा बेताब रहेगा यह सब कुछ देखने और दिखाने।
---डॉ. दीपक आचार्य---
9413306077
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