सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के मौजूदा अध्यक्ष केजी बालाकृष्णन के खिलाफ लगे भ्रष्टाचार और पद के दुरुपयोग के आरोपों की जांच करने का आदेश केंद्र सरकार को दे दिया। केजी बालाकृष्णन पर पहले सु्प्रीम कोर्ट के जज और बाद में भारत का मुख्य न्यायाधीश बनने पर अपने सगे-संबंधियों को फायदा पहुंचाने का आरोप है।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से कहा है कि सरकार की 'सक्षम' ईकाई बालाकृष्णन के आरोपों की जांच करे। सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस बीएस चौहान और जेएस केहर की बेंच ने कहा कि अगर जांच के बाद बालाकृष्णन पर लगे आरोपों में सच्चाई पाई जाती है तो उनके खिलाफ एनएचआरसी के सेक्शन 5(3) के तहत कार्रवाई की जा सकती है। बेंच के मुताबिक ऐसी स्थिति में जांच के लिए कैबिनेट की सलाह पर राष्ट्रपति सुप्रीम कोर्ट की राय ले सकती हैं।
सिविल सोसायटी कॉमन कॉजेज नाम के एनजीओ की ओर से दायर एक जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश दिया। इस याचिका में कोर्ट से केंद्र सरकार को केजी बालाकृष्णन के खिलाफ राष्ट्रपति द्वारा सुप्रीम कोर्ट का संदर्भ लेकर उन्हें एनएचआरसी के अध्यक्ष के पद से हटाने की मांग की गई थी। पीआईएल दायर करने वाले एनजीओ ने आरोप लगाए हैं कि केजी बालकृष्णनन के रिश्तेदारों ने उनके मुख्य न्यायाधीश रहते हुए पद का दुरुपयोग करके आय से अधिक संपत्ति अर्जित की। गौरतलब है कि जस्टिस बालाकृष्णन को साल 2000 में सुप्रीम कोर्ट का जज बनाया गया था और साल 2007 में उनकी नियुक्ति भारत के मुख्य न्यायाधीश के रूप में हुई थी। वो 12 मई 2010 को भारत के मुख्य न्यायाधीश पद से रिटायर हो गए थे जिसके बाद उन्हें एनएचआरसी का अध्यक्ष बनाया गया था।
एनजीओ ने सुप्रीम कोर्ट से गृह मंत्रालय को भी निर्देश देकर ह्यूमन राइट्स एक्ट के तहत सुप्रीम कोर्ट का संदर्भ लेकर पद के दुरुपयोग के आरोप लगाते हुए बालाकृष्णन को हटाने की मांग की थी। कोर्ट ने याचिका पर फैसला 7 मई को सुरक्षित रख लिया था।
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