राष्ट्रीय चरित्र हो सर्वोपरि... - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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सोमवार, 7 मई 2012

राष्ट्रीय चरित्र हो सर्वोपरि...

तभी होगा समस्याओं का निवारण


समाज-जीवन से लेकर राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय क्षितिज पर हम कहीं भी रहें, मानवीय मूल्यों व राष्ट्रीय चरित्र का भान जरूर रखें। राष्ट्रीय चरित्र ही एकमात्र ऐसा ब्रह्मास्त्र है जो जीवन पद्धति से लेकर देश तक को उन्नति के शिखर पर पहुँचा सकता है जैसा कि अर्वाचीन काल में हमारे पुरखों ने कर दिखाया। यह अकेला इतना सक्षम है कि बड़े से बड़े आदमी को कभी गिरने नहीं देता। इसी के बूते लड़ी जाने वाली जंग में हमेशा विजयश्री प्राप्त होती है। फिर चाहे यह संघर्ष अपनों से हो या बाहर वालों से।

वर्तमान माहौल में जरूरी यह है कि हम जो कुछ करें, राष्ट्रीय चरित्र की भावना को सर्वोपरि रखकर करें। जो फैसलें करें, जो काम करें, उन सभी में, हमारे जीवन-व्यवहार में राष्ट्रीय चरित्र की भावना का पुट आ जाने पर हमसे कभी भी कोई सा काम ऐसा नहीं हो सकता जो देशहित के विपरीत हो। राष्ट्रीय अस्मिता की रक्षा और राष्ट्रीय वैभव में उत्तरोत्तर अभिवृद्धि की भावना जितनी प्रबल एवं प्रगाढ़ होगी, हमारा चिंतन उतना ही स्पष्ट एवं सुदृढ होगा। जहाँ भी राष्ट्रीय चरित्र के बीज अंकुरित होते हैं वहाँ भावना का अराष्ट्रीयकरण कभी हो ही नहीं सकता, न यह कहीं जमीन पा सकता है, न जड़ें जमा सकता है।

जीवन में हर क्षण, हर कर्म में ईश्वर के उपरान्त यदि कोई बड़े महत्त्व का विषय है तो वह है- राष्ट्रीय चरित्र एवं मातृभूमि की सेवा। जो व्यक्ति या समाज राष्ट्रीय चिंतन से परिपूर्ण होता है उस पर ईश्वर भी मेहरबान रहता है। परम सत्ता की कृपा का सीधा मार्ग राष्ट्रदेव के माध्यम से ही जुड़ता है। जो काम हमें सौंपा जाता है अथवा जो कुछ हम करते हैं वह भले ही हमारे ही जीवन से संबंध रखता हो लेकिन हमारी प्रत्येेक गतिविधि का रिश्ता समाज, परिवेश और क्षेत्र से होता है और इस प्रकार किसी न किसी रूप में इसका जुड़ाव देश से भी होता है।

परिवेश व समाज को शुद्ध-बुद्ध बनाने के लिए यह जरूरी है कि हर व्यक्ति अपने जीवन में राष्ट्रीय चरित्र को अपनाए। आज अनाचार , भ्रष्टाचार एवं भय की बातें हो रही हैं, इसका सीधा सा मतलब यह है कि हमारी वृत्तियाँ उदात्त व लोकस्पर्शी अथवा लोकोन्मुखी होने की बजाय स्व-केन्द्रित हो गई हैं। आज हमें मैं और मेरे परिवार के सिवा कहीं कुछ नज़र आता ही नहीं। इनके सिवा कुछ दिखता भी है तो सिर्फ वे ही लोग जिनसे चुग्गा या प्रशंसा पाने की उम्मीद हो। इनके अलावा जो भी हैं उन्हें हम नाकारा भीड़ से ज्यादा कुछ भी नहीं मानते।

हमारी नज़रें हमेशा वहीं टिकी होती हैं जहाँ शहद के बड़े-बड़े छत्ते हों, चाशनी का दरिया उमड़ रहा हो या खुले मैदान हों जहाँ अपनी ताकत दिखाकर कर या कि दण्डवत कर वो सब पा सकें जो औरों को कभी नसीब नहीं होता। यह सारा तमाशा ही ऐसा है जिसमें कोई नाच रहा है, कोई नचा रहा है तो बाकी सारे लोग अलग-अलग डेरे जमा कर दिन-रात तमाशा देखने के अभ्यस्त हो चले हैं। 

राष्ट्रीय चरित्र के मामले में हमें उन विदेशियों से सीखने की जरूरत है जिन्हें निज देश से इतना प्यार होता है कि उसके बारे में कुछ भी बुराई सुनना पसंद नहीं करते हैं।  अपने देश पर गर्व करने का माद्दा हमारा रहा ही नहीं, यही हमारी प्रतिष्ठा पर कुठाराघात की पहली सीढ़ी बना हुआ है। हम जहाँ रहें वहाँ हर कर्म से पहले एक बार राष्ट्रीय चरित्र का चिंतन कर लें तो हमसे कोई भी काम ऐसा नहीं होगा जो राष्ट्रीय चरित्र की भावना को लांघता हो। ऐसे में हमारा हर कर्म समाज के हित में होगा और जीवन भर हम तथा समाज उन सभी बुराइयों और कुरीतियों से मुक्त रहेंगे जो हमारी जड़ों को खोखला करती रही हैं। 


---डॉ. दीपक आचार्य---
9413306077

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