कहते हैं घर का जोगी जोगणा, बाहर का जोगी सिद्ध यहीं बात यहां प्रदेश सरकार के कारनामों पर लागू हो रही है। प्रदेश सरकार अनुसूचित जाति के मेधावी छात्र-छात्राओं को सिविल सर्विसेज की तैयारी कराने के नाम पर लाखों फूंक चुकी है, लेकिन नतीजा सिफर ही रहा है। अभी तक कोचिंग के लिए राज्य की संस्थानों का चयन किया जाता रहा है। इस बार सरकार ने राजस्थान और दिल्ली के प्रतिष्ठित संस्थानों से करार करने की तैयारी चल रही है।
बताते चलें कि शैक्षिक सत्र 2009-10 में समाज कल्याण विभाग ने सिविल सर्विसेज की प्री परीक्षा की तैयारी कराने के लिए अल्मोड़ा, नैनीताल और देहरादून की आधा दर्जन नामी कोचिंग संस्थाओं का चयन किया। तब तय हुआ था कि प्री परीक्षा पास होने वाले छात्रों को मुख्य परीक्षा की तैयारी के लिए अलग से धनराशि दी जाएगी। मगर एक भी छात्र प्री परीक्षा पास नहीं कर पाया। इस सत्र में 70 छात्रों को शामिल किया गया था। चार माह की कोचिंग के लिए प्रति छात्र 15 हजार रुपये की दर से कोचिंग संस्थानों को 10.50 लाख रुपये का भुगतान किया गया, लेकिन एक भी छात्र का चयन नहीं हो पाया। इसके पश्चात विभाग ने सिविल सर्विसेज परीक्षा की तैयारी कराने की योजना से हाथ खींच लिया और शैक्षिक सत्र 2010-11 में 40 छात्रों को मेडिकल परीक्षाओं की तैयारी कराई। जब इसमें भी विभाग को सफलता नहीं मिली तो समूह ग परीक्षाओं के लिए कोचिंग दिलाना शुरू कर दिया है। इसमें 2011-12 में 297 छात्रों पर 23.19 लाख रुपये खर्च किए गए। इस बीच विभाग की कोचिंग योजना और कोचिंग संस्थाओं के चयन का मामला सुर्खियों में आने पर शासन नींद से जागा। विभागीय मंत्री ने निर्देश दिए कि गैर प्रांत के उन कोचिंग संस्थानों से करार किया जाए, जिनके संस्थानों में अध्ययनरत बच्चे प्रतियोगी परीक्षाओं में अधिक सफल होते हैं। इस निर्देश के अनुपालन में समाज कल्याण निदेशालय ने दिल्ली क्लासिक आइएएस एकेडमी तथा राजस्थान की एमन कॅरियर इंस्टीट्यूट और बंसल कोचिंग से पत्राचार किया है। अब इन संस्थानों को बच्चों को कोचिंग का जिम्मा सौंप कर सरकार यह जताना चाहती है कि उत्तराखण्ड में कोचिंग कराने वाली संस्थायें किसी काम की नहीं हैं।
(राजेन्द्र जोशी)
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