जब सेतु ही बन जाये खाई, तो कैसे बजेगी "शहनाई"
जिनके पास मुख्यमंत्री तथा सरकार की छवि सुधारने का जिम्मा है वही सरकार की छवि को पलीता लगा रहा है। मीडिया से दूरी और नेताओं से नजदीकियों के कारण मुख्यमंत्री दरबार में तैनात अपर सचिव स्तर का यह अधिकारी आजकल खासी चर्चाओं में है। जिस डाल पर बैठता है उसी को काटने में इसको महारत हासिल बतायी जाती है तभी तो तीन -चार महीने से ज्यादा यह एक कुर्सी पर नहीं बैठ पाया है।
प्रदेश सरकार ने काफी मशक्कत व सरकार बनने के बाद सूचना निदेशालय में महानिदेशक की कुर्सी पर देहरादून के तत्कालीन जिलाधिकारी दलीप जावलकर व मुख्यमंत्री के अपर सचिव को बैठाया गया है। कहने को तो सरकार तथा मुख्यमंत्री की छवि को आमजन में निखारने का जिम्मा भी इस अधिकारी को सौंपा गया है, लेकिन मीडिया कर्मियों को दोयम दर्जे का नागरिक समझने वाले इस अधिकारी ने कुर्सी पर बैठते ही मीडिया से दूरी बनानी शुरू कर दी है। परिणामस्वरूप मुख्यमंत्री सहित मंत्रिमंडल के सदस्यों के कार्यक्रमों की जानकारी मीडिया तक नही पहुंच पा रही है और उनके कार्यक्रमों के समाचारों को उचित स्थान नहीं मिल पा रहा है।
चर्चाओं के अनुसार मीडिया से दूरी बनाने वाले इस अधिकारी की नेताओं से नजदीकियों के किस्से आजकल सरेआम है। इतना ही नहीं चचाओं के अनुसार आबकारी विभाग के तमाम चर्चित अधिकारियों के भी इससे काफी घनि’ठ सम्बन्ध बताये जाते हैं जो कई बार सार्वजनिक भी हो चुके हैं। ऐसे में प्रदेश के विकास को लेकर दिन रात एक कर रहे मुख्यमंत्री को जो समाचार पत्रों में स्थान मिलना चाहिए था वह नहीं मिल पा रहा है। वहीं कई समाचार पत्रों व इलेक्ट्रानिक मीडिया तक के वरि’ठ पत्रकारों ने इस अधिकारी की मीडिया से बेरूखी की जानकारी मुख्यमंत्री तक को दे देने की जानकारी भी प्राप्त हुई है। इतना ही नहीं एक जानकारी के अनुसार इस अधिकारी की कार्यप्रणाली से विभागीय अधिकारी व कर्मचारी भी खासे नाराज बताये जा रहे है और उन्होने इसके साथ असहयोंगात्मक रवैया भी अख्तियार कर लिया है। वहीं मुख्यमंत्री कार्यालय से मिली जानकारी के अनुसार मुख्यमंत्री सचिवालय इसके स्थान पर किसी अन्य अधिकारी की खोज में जुट गया
है क्योंकि मुख्यमंत्री को आगामी महीनों में विधानसभा चुनाव लड़ना है और राज्य में एक लोकसभा का उपचुनाव भी होना है, ऐसे में मुख्यमंत्री के नजदीकी लोग नहीं चाहते कि चुनाव के दौरान मीडिया इस अधिकारी के कारण मुख्यमंत्री को ही कहीं निशाना न बना डालें और उनकी भी खंण्डूरी की तरह वह दुर्गति न हो जो उनकी कोटद्वार विधानसभा चुनाव में हुई थी।
चर्चाओं के अनुसार राजधानी से निकलने वाले तमाम साप्ताहिक समाचार पत्रों के संपादक तथा उनके संवाददाता भी सूचना महानिदेशक के कार्यो से काफी खफा बताये गये हैं उन्होने भी इनके विरूद्ध आन्दोलन का बिगुल बजा दिया है। इतना ही नहीं विज्ञापनों में भी बड़ा मतभेद सामने आया है स्थानीय समाचार पत्रों तथा राष्ट्रिय समाचार पत्रों को विज्ञापन देने में बरती जा रही असमानता को लेकर भी समाचार पत्रों के प्रकाशकों में रोष व्याप्त हो गया है उनका कहना है महानिदेशकों के तुगलकी फरमान के चलते राजधानी से निकलने वाले मात्र चार समाचार पत्रों को ही वरियता देना स्थानीय व रा’ट्रीय समाचार पत्रों के साथ अन्याय है। इनका कहना है कि इन चारों समाचार पत्रों को बीते महीने उतने विज्ञापन दिये गये जितने विज्ञापन राजधानी व राज्य से प्रकाशित होने वाले समाचार पत्रों को एक वर्ष में भी नहीं मिले।
जर्नलिस्ट यूनियन आफ उत्तराखण्ड के प्रदेश उपाध्यक्ष सहित तमाम पत्रकार संगठनों ने बताया कि यदि महानिदेशक सूचना का यही रवैया रहा तो वह दिन दूर नहीं जब समाचार पत्र सरकार के पक्ष में खड़ा होना बन्द कर देंगे। इससे सरकार की जो किरकिरी होगी उसका जिम्मेदार महानिदेशक सूचना ही होगें।
(राजेन्द्र जोशी)
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