रहस्यः पूर्व मुख्यमंत्री क्यों नहीं उतरे मैदान में?
प्रदेश में लगातार हार से जूझ रही भाजपा को प्रकाश पंत में जीत की किरण नजर आई है। सितारगंज विधानसभा उपचुनाव के लिए होने जा रहे चुनाव में भाजपा ने प्रकाश पंत पर दांव चलाया है। अब यह देखना है कि प्रकाश पंत पर लगाया गया दांव भाजपा को लगातार मिली हार से छुटकारा देने में सफल साबित होती या कहीं यह भाजपा के लिए हार का सिलसिला तो नहीं बन जाएगा। गौरतलब हो कि राज्य की सत्ता खोने के बाद से भाजपा को लगातार कांग्रेस से हर मोर्चे पर हार ही मिली है, यदि पिछले तीन महीनों के राजनैतिक परिदृश्य पर नजर दौड़ाई जाए तो भाजपा ने जहां राज्यसभा के लिए होने वाले चुनाव में राजधानी के एक व्यापारी अनिल गोयल पर यह जानने के बावजूद की उसके पास पर्याप्त विधायकों की संख्या नहीं है फिर भी अनिल गोयल पर दांव खेला, वहीं भाजपा के रणनीतिकारों ने दूसरी बार फिर यह गलती करी कि विधानसभा में अध्यक्ष के लिए होने वाले चुनाव में हरवंश कपूर पर दांव खेल ड़ाला, जबकि पार्टी के रणनीतिकारों को यह पहले से ही पता था कि उसके पास मात्र 31 विधायकों का ही समर्थन प्राप्त है, जबकि कांग्रेस के पास 32 तथा तीन निर्दलीय व तीन बसपाई सदस्यों सहित एक यूकेड़ी सदस्य का समर्थन है। वहीं कांग्रेस के पास एक एंग्लो इंडियन समुदाय से नामित सदस्य आर.वी. गार्डनर का समर्थन भी हासिल है। ऐसे में विधानसभा अध्यक्ष की कुर्सी पर दांव लगाने वाले भाजपा के नेताओं और कपूर समर्थकों में दरार और चौड़ी हो गई है। आज तक एक भी चुनाव न हारने वाले हरवंश कपूर पर दांव लगाने वाले भाजपा नेताओं में और कपूर खेमें में इस बात को लेकर अभी तक असंतोष है कि आखिर पार्टी ने किस रणनीति के तहत कपूर को मैदान में उतारा। वहीं विधानसभा के फ्लोर पर भी भाजपा को कांग्रेस द्वारा विश्वास मत हासिल करने के दौरान मुंह की खानी पड़ी थी। वहीं बीते महीने कांग्रेस ने भाजपा पर ऐसा धोबी पछाड़ मारा की भाजपा चारों खाने चित हो गई, हुआ यह कि कांग्रेस ने सितारगंज के विधायक किरन मण्डल पर ऐसा पासा फेंका कि वह भाजपा छोड़ कांग्रेस के हाथ के साथ हो लिए। यह भाजपा की उत्तराखण्ड में चौथी हार साबित हुई।
लगातार हार से जूझ रही भाजपा को सितारगंज उपचुनाव में मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा से दो-चार होना है, वह भी इस परिस्थिति में जब भाजपा चार बार कांग्रेस से मात खा चुकी है। राजनैतिक विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा में इस चुनाव को लेकर उहापोह की स्थिति साफ दिखाई दे रही है। भाजपा के वह नेता आज गायब दिखाई दे रहे हैं, जो कहते थे कि वे कांग्रेस के मुख्यमंत्री के सामने ताल ठोककर खड़े हैं, इनमें चाहे पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी हों अथवा पूर्व मुख्यमंत्री भुवन चंद खण्डूडी। इससे पहले यह दोनों नेता कांग्रेस के मुख्यमंत्री के सामने चुनाव लड़ने की कई बार घोषणा सार्वजनिक रूप से कर चुके थे कि वे ही मुख्यमंत्री के सामने चुनाव लड़ेंगे, लेकिन मैदान में उतरने से पहले ही यह दोनों नेता गायब हो गए और इस सीट पर होने जा रहे उपचुनाव में इन्होंने एक रणनीति के तहत प्रकाश पंत का नाम आगे कर अब अपना दांव चला दिया है। जबकि यहां से 1991 में सांसद रहे बलराज पासी को इस सीट से चुनाव लड़ाने की संगठन की योजना थी, लेकिन उनका नाम किस रणनीति के तहत पीछे कर दिया गया यह प्रश्न भाजपा के आला नेताओं के लिए पहेली बना हुआ है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि कांग्रेस के लिए यह सीट उत्तराखण्ड में जहां प्रतिष्ठा की सीट बन चुकी है, वहीं कांग्रेस के लिए यह जीवन-मरण का सवाल भी बन गई है। ऐसे में कांग्रेस इस सीट को हथियाने के लिए कोई भी दांव चल सकती है। जहां तक भाजपा का सवाल है, भाजपा के सामने अब लड़ाई 31वीं सीट के लिए है न कि 33वीं को लेकर। ऐसे में यदि कांग्रेस यह सीट हथियाने में कामयाब होती है तो वह राज्य में अपने दम पर सरकार बनाने से महज दो कदम दूर रह जाएगी। और भाजपा छहः कदम पीछे हो जाएगी। वहीं कांग्रेस जिस हिसाब राज्य में फूंक-फूंक कदम आगे बढ़ा रही है, इससे तो यह लगता है कि राज्य में भाजपा सत्ता से दूर होती जा रही है। इतना ही नहीं वह इस लड़ाई में अपने सिपाहियों को भी खोती जा रही है।
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