भाजपा के लिए जरूरी खण्डूडी उपचुनाव में क्यों हुए गैर जरूरी?
उत्तराखण्ड विधानसभा चुनाव के दौरान बेहद जरूरी बताए गए भुवन चंद खण्डूडी अब सितारगंज विधानसभा उपचुनाव में गैर जरूरी हो गए हैं। पार्टी ने खण्डूडी को मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के खिलाफ प्रत्याशी के रूप में खड़ा करना तो रहा दूर, लेकिन उनके प्रभाव का इस्तेमाल नामांकन तक में करना भी जरूरी नहीं समझा।
किरन मण्डल को कांग्रेस द्वारा तोड़े जाने के के कारण भाजपा के लिए नाक का सवाल बन चुकी सितारगंज विधानसभा सीट पर पार्टी द्वारा मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा की टक्कर के नेता को उतारे जाने की संभावना व्यक्त की जा रही थी। इन टक्कर के नेताओं में पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी एवं पूर्व मुख्यमंत्री भुवन चंद खण्डूडी का नाम सबसे उपर लिया जा रहा था। सूत्रों का मानना है कि पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी वर्तमान में राज्यसभा में सांसद हैं, लिहाजा उनको इस चुनाव से दूर रखने में ही भाजपा ने अपनी भलाई समझी, लेकिन मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के खिलाफ उनके कद के मुताबिक पूर्व मुख्यमंत्री भुवन चंद खण्डूडी को भाजपा ने क्यों प्रत्याशी बनाने में कोताही बरती यह सवाल भाजपा के लोगों को भी साल रहा है। वहीं चुनाव मैदान में न उतारे जाने के बावजूद उनके प्रभाव का इस्तेमाल भाजपा प्रत्याशी प्रकाश पंत द्वारा नामांकन के अवसर पर भी जरूरी नहीं समझा गया। नामांकन के अवसर पर पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी सहित पार्टी के सभी राज्य स्तरीय दिग्गज वहां मौजूद रहे, मगर कुछ ही महीनों पहले तक भाजपा के लिए जरूरी बताए जा रहे भुवन चंद खण्डूडी नामांकन व उसके बाद आयोजित जनसभा में कहीं नजर नहीं आए। खण्डूडी की इस गैर मौजूदगी पर अब तरह-तरह के सवाल उठने लगे हैं। खण्डूडी विरोधियों का कहना है कि जो व्यक्ति मुख्यमंत्री रहते हुए कोटद्वार में अपनी ही सीट न बचा पाया और भारी मतों से हार गया, वह नेता भंवर में फंसी प्रकाश पंत की नैय्या को कैसे पार लगाएगा। प्रकाश पंत के नामांकन के समय खण्डूडी के गायब रहने के बारे में कुछ भाजपाईयों का कहना है कि यहां पर सवाल खण्डूडी के जरूरी या गैर जरूरी होने का नहीं बल्कि कांग्रेस प्रत्याशी के साथ ममरे-फुफेरे भाई के रिश्ते का होना है।
राजनैतिक विश्लेषकों का तो यह भी मानना है कि पूर्व मुख्यमंत्री खण्डूडी ने जानबूझकर अपने को इस चुनाव से अलग रखा है, ताकि उनके प्रभाव का असर उनके भाई कांग्रेसी प्रत्याशी विजय बहुगुणा पर न पड़े। विश्लेषकों का तो यहां तक कहना है कि भाजपा में सितारगंज उपचुनाव को लेकर इस तरह की रणनीति बनाई गई कि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे। इनका कहना है कि पार्टी ने केवल प्रतीकात्मक रूप से प्रकाश पंत को प्रत्याशी बनाया है, इससे पार्टी के एक गुट को प्रकाश पंत को किनारे लगाने में सहूलियत होगी क्योंकि बेदाग छवि के प्रकाश पंत अब तक भाजपा में मुख्यमंत्री पद के दावेदारों के कतार में शामिल हो रहे थे, ऐसे में उनको किनारे लगाने के लिए इससे अच्छा अवसर उनके पास नहीं था, वहीं पूर्व मुख्यमंत्री खण्डूडी ने भी अपने को इस चुनाव से सक्रिय रूप में किनारे कर अपने फुफेरे भाई को ही लाभ देने का काम किया है। अब यह देखना है कि नाक का सवाल बन चुका यह उपचुनाव भाजपा को संजीवनी देता है या आत्महत्या का मौका।
(राजेन्द्र जोशी)
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