अपने पैरांे पर खड़े होने की कोशिश करती कांग्रेस को बैसाखियां समझा रही महत्व
डीनर डिप्लोमेसी और बड़े नेताओं में मुलाकातों के दौरों ने सितारगंज में अपने वर्चस्व की लड़ाई लड़ रहे विजय बहुगुणा की पेशानी पर बल ला दिया है। इन मुलाकातों का क्या परिणाम होगा यह तो भविष्य पर निर्भर है, लेकिन कई धु्रवों के एक साथ मिलने के इस सिलसिले ने प्रदेश की राजनीति को तो जरूर प्रभावित किया है। एक जानकारी के अनुसार सोमवार को कांग्रेस के केंद्रीय राज्यमंत्री हरीश रावत और भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्री व राज्यसभा सांसद भगत सिंह कोश्यारी के बीच लगभग एक घंटे की मुलाकात ने प्रदेश की राजनीति में नए समीकरणों की दिशा में एक कदम आगे बढ़ना बताया है। वहीं मनमाफिक मंत्रालय न मिलने, सरकार में मंत्री रहते हुए वह सम्मान न मिलने के चलते डा. हरक सिंह रावत, यूकेडी के प्रीतम सिंह तथा बसपा के सुरेन्द्र राकेश के बीच हुए डीनर में क्या कुछ पका और नेताओं ने क्या कुछ खाया इसका पता अभी नहीं चल पा रहा है, लेकिन यह जरूर है कि सत्ता की आंच में रखी इस हांडी में कुछ न कुछ तो जरूर पका है। इसकी महक का आभास अभी भले ही प्रदेशवासियों को न हो पाए, लेकिन राजधानी के राजपुर रोड़ स्थित उस क्लब के मेजबानों को तो जरूर हो गया है जो इस हांडी में पके भोजन को परोस रहे थे। हालांकि राज्य के अधिकांश मंत्री व कांग्रेस के चुनिंदा नेता सितारगंज उपचुनाव में मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा की दांव पर लगी प्रतिष्ठा को बचाने के लिए दिन-रात एक किए हुए हैं, लेकिन यहां भी चुनाव में वह रंगत नहीं जो होनी चाहिए थी। कांग्रेस के तमाम नेताओं को दरकिनार करते हुए बहुगुणा के लिए उनकी किचन कैबिनेट लगी हुई है, चर्चाओं के अनुसार बहुगुणा की किचन कैबिनेट को राज्य के उन तमाम नेताओं पर कतई भरोसा नहीं है कि वह बहुगुणा के लिए ईमानदारी से काम करेंगे, यही कारण है कि बहुगुणा के चुनाव में इलाहाबाद और लखनऊ के दर्जन भर वह नेता हैं जिन्होंने रीता बहुगुणा जोशी के लिए बीते विधानसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में काम किया था। इतना ही नहीं इस चुनाव में उनके पुत्र साकेत बहुगुणा खुद बारीकी से नजर रखे हुए हैं, तो विजय बहुगुणा की पत्नी सुधा बहुगुणा के हाथों में वित्तीय अधिकार सौपंे गए हैं, वहीं चुनाव की रणनीति के लिए रीता बहुगुणा व शेखर बहुगुणा अपने दांव चल रहे हैं।
इधर बहुगुणा से नाराज नेता अपना दांव चल रहे हैं तो उधर सितारगंज में बहुगुणा को विजयी बनाने के लिए उनके परिजन अपने दांव चला रहे हैं। चुनाव आठ जुलाई को होने हैं और इस बीच राज्य में राजनीति पल-पल रंग बदल रही है। बैसाखियों के सहारे सरकार चला रही कांग्रेस अपने पैरांे पर खड़े होने की कोशिश में है तो दूसरी ओर बैसाखियां भी अपना महत्व सरकार को समझाने की कोशिश कर रही है। डिनर डिप्लोमेसी और चाय सहित चुनाव के इस दौर में क्या कुछ नया होगा अभी नहीं कहा जा सकता, लेकिन राजनैतिक विश्लेषकों की माने तो कुछ न कुछ तो जरूर ऐसा है कि जिससे सियासी तापमान घट-बढ़ रहा है।
(राजेन्द्र जोशी)
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