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सोमवार, 25 जून 2012

पद पा लेना अलग बात निभाना अलग !


हम जो हैं वही दीखें यह मौलिकता है जबकि हम जो हैं वही न दिखे और इसकी बजाय हमारे दूसरे चेहरे दिखें तो इसका यही अर्थ है कि हम हमारी मौलिकता को भुला चुके हैं और सांसारिक आडम्बरों के इन्द्रधनुषों ने हमें इतना घेर लिया है कि हम हमारी पहचान भुला चुके हैं और बाहरी आवरणों ने हमें घेर लिया है। दुनिया में भगवान की सर्वाेत्कृष्ट कृति कोई है तो वह मनुष्य ही है। ईश्वर ने मनुष्य के रूप में अवतार लेकर जगत का कल्याण किया है और दुष्टों का संहार कर धर्म की स्थापना की है। पूर्णावतार, अंशावतार, लीलावतार आदि के रूप में भगवान की लीलाओें से शास्त्र और पुराण भरे हुए हैं। इसके अलावा कई दैवीय कार्य भगवान मनुष्यों के माध्यम से पूर्ण करवाता है। इस दृष्टि से मनुष्य पृथ्वी पर देवता का प्रतिनिधि है और उसका अंश है।

मनुष्य के लिए जीवनचर्या की अपनी आचार संहिता है जिस पर चलकर धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन पुरुषार्थ चतुष्टय को प्राप्त करता है और जीवन की यात्रा पूर्ण कर अगले मुकाम के लिए प्रस्थान कर जाता है। मनुष्य के जन्म लेने से लेकर मृत्यु तक उसकी सारी गतिविधियां कैसी होनी चाहिएं इस बारे में वेदों और धर्म शास्त्रों में सटीक एवं साफ-साफ निर्देश दिया हुआ है। जीवन निर्वाह की आदर्श आधारशिला पर चलकर मनुष्य अपने जीवन को धन्य कर सकता है और इतिहास में अमिट पहचान कायम कर सकता है लेकिन ऐसा वे बिरले ही कर सकते हैं जो सेवाव्रती हों तथा जगत के उत्थान के लिए पैदा हुए हैं। इतिहास उन्हीं का बनता है जो परोपकार और सेवा का जज्बा लेकर जीवन जीते हैं। उनका नहीं जो पद, प्रतिष्ठा, धनसंग्रह और व्यभिचार के साथ ऐशो आराम को ही सर्वस्व मानकर डूबे रहते हैं।

दुनिया में दो तरह के व्यक्ति होते हैं। एक वे हैं जिनकी वजह से उनका पद, परिवेश गौरवान्वित होता है। ऐसे व्यक्तियों का अपना निजी कद बहुत ऊँचाइयों पर होता है। दूसरे वे हैं जिनका अपना कोई कद नहीं होता बल्कि पूर्वजन्म के किन्हीं अच्छे कर्मों के फलस्वरूप अच्छे ओहदों पर जा बैठे हैं या अच्छा धंधा कर रहे हैं। अपने आस-पास ऐसे लोगों की संख्या कोई कम नहीं है जिन्हें देखकर हर कोई यह कहेगा कि अमुक आदमी इस पद पर कैसे बैठ गया या इसमें इतनी काबिलियत तो है नहीं और पद मिल गया। ऐसे में कितनी ही अच्छी कुर्सी प्राप्त क्यों न हो जाए, कोई भी यह स्वीकार करने को तैयार न होगा कि इसके पीछे आपकी मेधा या त्याग है। बड़े-बड़े राजनेता, अफसर और बिजनैसमेन आपको ऐसे मिल जाएंगे जिनके जीवन को देखकर आप सहसा यही कहेंगे कि पहले जन्म के किसी पुण्य का लाभ मिल रहा है वरना यह ओहदा उनके बस का नहीं है अथवा वे इसके लायक नहीं हैं।

आपने अब तक कितने ही राजनेताओं, आईएएस, आईपीएस, आरएएस, आरपीएस और ऐसे कितने ही पदनामों वाले लोगों की भीड़ देखी होगी लेकिन इसमें पद के अनुरूप योग्यता और व्यक्तित्व वाले कितने लोग आपने देखे। शायद दो चार फीसदी ही। पद पा लेना ही जीवन की सफलता नहीं है बल्कि पद के अनुरूप योग्यता और लोक सेवा की भावना ज्यादा जरूरी है। मजा तो तब है जब आपके व्यक्तित्व के आगे पद हमेशा बौना नज़र आए और लोग यह कहें कि कुर्सी से व्यक्ति नहीं बल्कि इस व्यक्ति के कारण यह कुर्सी धन्य है। ऐसा नहीं है तो मानकर चलें कि संसार के करोड़ों पशुवत प्राणियों की भीड़ में आप भी सदियों तक किसी न किसी रूप-आकार में नज़र आते रहेंगे।


---डॉ. दीपक आचार्य---
9413306077

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