संसाधनों का उचित उपयोग करें..
व्यक्ति के मन और परिवेश का सीधा संबंध होता है। जैसा परिवेश में घटित होता है वैसा ही मन की दीवारों पर अंकित होता है। व्यक्ति जीवन की जिन कल्पनाओं और धारणाओं का चिंतन करता रहता है वही उसे स्थूल रूप में परिवेश में देखने की लालसा होती है। व्यक्ति के चित्त और बाह्य बिम्बों में कहीं न कहीं समानता का भास होता है और उसी अनुरूप व्यक्ति का जीवन बनता-बिगड़ता है। मन के विकार न केवल तन पर बल्कि उन सभी जगह प्रतिबिम्बित होते हैं जहाँ हमारा आवागमन रहता है अथवा जहाँ अधिकांश जगह निवास। यह आवास अपने घर हो सकते हैं, अपने दफ्तर या प्रतिष्ठान हो सकते हैं अथवा अपने वे जायज-नाजायज डेरे जहाँ हम टाईमपास या वाग् विलास के लिए जमा होते रहते हैं। इसी प्रकार परिवेश की सभी क्रियाएँ व्यक्ति के पूरे जीवन पर सूक्ष्म अथवा स्थूल रूप से प्रभाव डालती हैं और व्यक्ति के जीवन में निर्णायक स्थितियाँ भी ला देती हैं।
किसी भी परिवेशीय माहौल या घटना से वहाँ रहने वाले या विचरण करने वाले लोगों की मनोवृत्ति का अच्छी तरह आभास किया जा सकता है। इसी तरह इन व्यक्तियों की भावनाओं और मनःस्थितियों से भी परिवेश की शुचिता, सकारात्मकता या नकारात्मकता का परिचय अपने आप ही मिलने लगता है। यही कारण है कि किसी भी कार्यालय या प्रतिष्ठान अथवा आवास में प्रवेश करते ही व्यक्ति को अपने आप यह महसूस होने लगता है कि वहाँ सुकून है अथवा नहीं। उस परिसर में रहने या विचरण करने वाले लोग दुष्ट किस्म के हों अथवा नकारात्मक प्रवृत्तियों वाले, कमीशनखोर या हरामखोर होंगे तो वहाँ अपने आप ऐसी गंध फैली हुई होगी जो कि अच्छे लोगों को वहाँ से जल्द से जल्द हटने के लिए प्रेरित करेगी, लेकिन इन्हीं किस्मों के समानधर्मा बुरे लोगों को इन्हीं परिसरों में सुकून व शांति प्राप्त होने लगेगी।
दूसरी बातों को छोड़ भी दें तो संसाधनों के उपयोग के मामले में भी यही सब दृष्टिगोचर होता है। आम तौर पर कई कार्यालयों, प्रतिष्ठानों और आवासों-प्रासादों में यह देखने को मिलता है कि बेवजह संसाधनों का दुरुपयोग होता रहता है और इसके प्रति वे सारे लोग बेपरवाह होते हैं जो इसके लिए जिम्मेदार होते हैं। सरकारी संसाधनों का दुरुपयोग तो हमारे यहाँ सार्वजनिक स्वीकार्य अंग हो गया है। हमारे इलाकों और परिसरों में ही देखें तो खूब लोग ऐसे हैं जो सीट पर नहीं होंगे या जरूरत नहीं होगी तब भी लाईट, पंखे जलते हुए रखेंगे, कम्प्यूटर की सीट पर कोई नहीं होगा तब भी कम्प्यूटर, प्रिन्टर, स्कैनर, मॉडम और सारे उपकरण चलते रहेंगे। ऐसे लोगों की संख्या खूब है जो अपने चैम्बर, दफ्तर और रहने के स्थानों पर बिना उपयोग के बिजली का उपयोग होते देखते रहते हैं या इन सभी को ऑन रखकर कहीं चले जाएंगे।
ऐसे संस्थानों की संख्या असंख्य है जहाँ अनगिनत बिजली उपकरण बिना काम के चलते रहकर लाखों-करोड़ों रुपयों की बिजली का खात्मा करते हुए धन की बर्बादी कर देते हैं। इसी प्रकार पानी की बर्बादी की भी यही स्थिति होती है। जो लोग अपने कार्यस्थलों पर इस प्रकार की स्थितियों के लिए जिम्मेदार हैं अथवा इन हालातों को बिना कुछ किए देखते रहने के आदी होते हैंे उनकी मनोवृत्ति का अध्ययन किया जाए तो ऐसे लोगों में कमीशनखोरी, कंजूसी और विश्वासघात इनके सबसे बड़े तीन (अव) गुण हुआ करते हैं। ऐसे लोगों में बहुत कम संख्या ऐसों की होती है जो घर में भी यही हालात बनाए रखते हैं अन्यथा निन्यानवें फीसदी ऐसे लोग स्वार्थ में ही दिन-रात रमे रहने वाले होते हैं और इनके लिए जीवन का सबसे बड़ा मकसद चाहे जिस तरह भी हो सके पैसा कमाना ही रह जाता है। धन संग्रह का जितना मोह इन लोगों को होता है उतना इनका अपने घर वालों के प्रति भी नहीं हुआ करता। इन लोगों की कितनी ही समझाइश की जाए, वे सुधरने का नाम तक नहीं लेते।
अपने आस-पास जब भी ऐसे लोगों को देखें, यह तय मान कर चलें कि ये लोग दूसरों के मुकाबले कुछ अलहदा हैं। इस किस्म के लोगों की एक यह भी विशेषता होती है कि ये विचारधारा या आदर्शों की बजाय अपने स्वार्थों को प्राथमिकता पर रखते हैं और इनके जीवन का मूल उद्देश्य हरेक उपाय करते हुए पैसा बनाना रह जाता है, फिर यह जरूरी नहीं कि यह पैसा पुरुषार्थ का ही हो। कई बार तो लगता है जैसे ये लोग पूर्वजन्म के चोर-डकैत तो नहीं हैं। इनके लिए हर तरह का पैसा स्वीकार्य है क्योंकि इन लोगों का जन्म ही पैसा कमाने के लिए हुआ है। यह भी सच है कि जिन कुकर्मों और बुरे मार्गों से यह धन संग्रह करते हैं, उसका उपयोग अपनी अव्वल दर्जे की कृपणता की वजह से खुद कभी नहीं कर पाते, बल्कि इनका धन या तो चोर चुरा लेते हैं, या बीमारी में खर्च हो जाता है अथवा दूसरे लोग हड़प लेते हैं। परिवेश में दुरुपयोग के आदी इन लोगों का बुढ़ापा भी बिगड़ जाता है। इसलिए जीवन में यह मूलमंत्र अपना लेना चाहिए कि जहाँ कहीं पानी-बिजली या अन्य संसाधनों से पाला पड़े, इनका पूरा-पूरा सदुपयोग करें। न दुरुपयोग करें, न करने दें। जहाँ कहीं बेवजह पानी-बिजली का क्षरण दिखे, तत्काल ध्यान दें और हर मामले में मितव्ययता बरतें, चाहे वह घर में हो अथवा अपने कार्यस्थल पर। जो लोग कहीं भी इन संसाधनों के दुरुपयोग को चुपचाप देखते रहते हैं, वे भी दोष के भागी होते हैं और उनका पूरा जीवन तनावों से ग्रस्त रहता है।
---डॉ. दीपक आचार्य---
9413306077
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें