भोपाल गैस कांड के पीड़ितों को अमेरिका के एक कोर्ट के फैसले से झटका लगा है। कोर्ट ने कहा है कि भोपाल गैस हादसे के बाद हुए पर्यावरण संबंधी नुकसान या प्रदूषण से संबंधित दावों के लिए यूनियन कार्बाइड कॉर्पोरेशन (यूसीसी) या इसके पूर्व चेयरमैन वॉरेन एंडरसन जिम्मेदार नहीं हैं।
मैनहैटन के कोर्ट ने मुकदमे को खारिज करते हए फैसला दिया कि प्लांट से पैदा हुए कचरे के डिस्पोजल के लिए यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड (यूसीआईएल) जिम्मेदार है, न कि मुख्य कंपनी यूनियन कार्बाइड कॉर्पोरेशन। कोर्ट के मुताबिक, देनदारी राज्य सरकार की है।
गौरतलब है कि दिसंबर 1984 में इस कंपनी के प्लांट से जहरीले केमिकल मिथाइल आइसो साइनेट के रिसाव की वजह से भोपाल में 3,000 से ज्यादा लोगों की जानें चली गई थीं। याचिकाकर्ता जानकी बाई साहू और अन्य कंपनी पर आरोप लगाया था कि जहरीले पदार्थों के जमीन में रिसने की वजह से मिट्टी और पीने का पानी प्रदूषित हो रहा है। आकलन के मुताबिक, जहरीले तत्वों के प्रभाव की वजह से धीरे-धीरे हजारों दूसरे लोगों की भी मौत हुई।
अदालत ने अपने आदेश में कहा, 'यूसीआईएल ने यूसीसी से कचरे का निपटान करने और गैर पर्यावरणीय व्यापारिक मामलों जैसे रणनीतिक योजना आदि के बारे में सलाह-मशविरा किया था। हालांकि, सबूत में ऐसा कुछ भी दर्शाने के लिए नहीं है कि याचिकाकर्ता ने जिस बारे में शिकायत की है उस कार्रवाई के लिए यूसीसी की मंजूरी की आवश्यकता है।' 'इस बात को दर्शाने के लिए कोई सबूत नहीं है कि यूसीआईएल ने यूसीसी की तरफ से कीटनाशकों का निर्माण किया, यूसीसी की तरफ से अनुबंध किया या और व्यावसायिक लेन-देन किया या अन्य रूप में यूसीसी के नाम पर काम किया।'
1994 में यूसीसी ने यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड में अपनी हिस्सेदारी बेच दी। इसके बाद यूसीआईएल ने इसका नाम बदलकर ऐवरेडी इंडस्ट्रीज इंडिया लिमिटेड (ईआईआईएल) रख दिया। 1998 में अपने भोपाल प्लांट स्थल का पट्टा खत्म कर दिया और संपत्ति मध्य प्रदेश सरकार को सौंप दी। फैसले के बाद यूनियन कार्बाइड कॉर्पोरेशन ने कहा, 'अदालत का फैसला न सिर्फ यूसीसी के खिलाफ याचिकाकर्ता के दावे को खारिज करता है बल्कि इस बात को भी साफ करता है कि यूसीसी की उस संबंध में कोई जवाबदेही नहीं है और इस बात को स्वीकार करती है कि उस जगह के स्वामित्व और जवाबदेही का मामला मध्य प्रदेश सरकार का है।'
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