पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने उन चर्चाओं पर विराम लगा दिया है, जिसमें कहा जा रहा था कि उन्होंने 2004 में सोनिया गांधी के प्रधानमंत्री बनने पर ऐतराज जताया था।
कलाम को सोनिया गांधी के प्रधानमंत्री बनने पर कोई ऐतराज नहीं था। कलाम तो राजनीतिक पार्टियों के भारी दबाव के बावजूद उन्हें प्रधानमंत्री पद की शपथ दिलाने के लिए पूरी तरह तैयार थे। कलाम के मुताबिक सोनिया ही उनके सामने संवैधानिक रूप से मान्य एकमात्र विकल्प थीं। कलाम ने यह खुलासा अपनी नई किताब 'टर्निंग पॉइंट्स' में किया है। कलाम की यह किताब 'विंग्स ऑफ फायर' का दूसरा संस्करण है। किताब जल्द ही पब्लिश होने वाली है। इस किताब में कलाम ने कई यादें साझा की हैं। इसमें सोनिया गांधी के प्रधानमंत्री पद ठुकराने का जिक्र भी किया गया है। किताब में कलाम ने यूपीए सरकार के साथ तनाव भरे रिश्तों का भी जिक्र किया है।
कलाम ने किताब में लिखा है कि मई 2004 में हुए चुनाव के नतीजों के बाद सोनिया गांधी उनसे मिलने आई थीं। राष्ट्रपति भवन की ओर से उन्हें प्रधानमंत्री बनाए जाने को लेकर चिट्ठी तैयार कर ली गई थी। उन्होंने कहा है, 'यदि सोनिया गांधी ने खुद प्रधानमंत्री बनने का दावा पेश किया होता, तो मेरे पास उन्हें नियुक्त करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था।' उन्होंने किताब में आगे लिखा है, '18 मई 2004 को जब सोनिया गांधी मनमोहन सिंह को लेकर आईं, तो मुझे आश्चर्य हुआ। सोनिया गांधी ने मुझे कई दलों के समर्थन के पत्र दिखाए। मैंने उनसे कहा कि उनकी सुविधा के मुताबिक वह शपथ दिलाने को तैयार हैं।
सोनिया ने बताया कि वह मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री के पद पर मनोनीत करना चाहती हैं। ये मेरे लिए आश्चर्य का विषय था और राष्ट्रपति भवन के सचिवालय को चिट्ठियां फिर से तैयार करनी पड़ीं।' कलाम के इस खुलासे से पहले अक्सर बीजेपी और दूसरी पार्टियां यह प्रचारित करती रहती थीं कि सोनिया गांधी प्रधानमंत्री तो बनना चाहतीं थीं, लेकिन राष्ट्रपति कलाम ने उनके विदेशी मूल का मुद्दा उठाकर कह दिया था कि उन्हें संवैधानिक मशविरा करना होगा, इसके बाद सोनिया गांधी ने मनमोहन सिंह का नाम सुझाया था।
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