जीवन में संबंधांे का महत्त्व और प्रभाव सर्वविदित है। ये संबंध ही होते हैं जो तय करते हैं जिन्दगी की दिशाओं और दशाओं को। अच्छे-बुरे संबंधों का हमारे जीवन और व्यक्तित्व पर सीधा प्रभाव पड़ता है और इसी से जीवन के विभिन्न दोराहों-चौराहों पर निर्णयात्मक असर होता है। लोक व्यवहार और संबंध ही वे प्रधान कारक हैं जिनके माध्यम से किसी भी व्यक्ति की जिन्दगी, सोच और व्यवहार के बारे में प्रत्यक्ष तौर पर जानकारी पायी जा सकती है। असल में देखा जाए तो संबंध ही वह आईना होते हैं जिनमें आदमी के पूरे व्यक्तित्व की पारदर्शी झलक प्राप्त की जा सकती है। पुराने जमाने से संस्कारों और संबंधों के आधार पर ही व्यक्ति को तौला जाता था और उसी के अनुरूप संबंधों के स्थापित होने या न होने का निर्णय हुआ करता था।
आज भी संबंधों के मामले में जहाँ कहीं परख होती है वहाँ इन्हें ज्यादा से ज्यादा तवज्जो दी जाती है और इन्हीं के अनुरूप व्यक्ति के जीवन की थाह पायी जाती है। लेकिन अब संबंधों ने नई करवट ली है और संबंधों का निर्णय अपने स्वार्थों और पूर्वाग्रहों के अनुरूप होने लगा है। पहले जहाँ निष्काम सेवा और परोपकार के साथ सामाजिक सरोकारों का संबंधों में अहम स्थान था वहाँ अब संबंधों का आधार पारस्परिक स्वार्थ केन्द्रित और कारोबारी हो चला है। संबंध भी उन्हीं से प्रगाढ़ रहते हैं जिनसे अपना वास्ता पड़ता है अथवा जो हमारे काम आ सकता है। जो हमारे किसी स्वार्थ को पूरा नहीं कर पाते उनसे हम कोई संबंध रखना नहीं चाहते, भले ही सामने वाले कितना ही चाहें। फिर यदि दोनों के काम एक-दूसरे से ही बनने वाले हों तो ऐसे में हम झटपट ऐसे संबंध बना लेने में माहिर होते हैं जैसे बरसों से वे हमारे नाते-रिश्तेदार हों या हमारे गॉड़ फादर हों।
संबंधों के इन सारे समीकरणों में हमारा पूरा ध्यान अपने स्वार्थों की पूर्त्ति पर निर्भर हुआ करता है। ऐसे में जो लोग अपने स्वार्थ के लिए संबंधों का सहारा लेते हैं अथवा संबंधों को भुनाते हैं, उन्हें अपना काम करने दीजिये। संबंधों की जो गणित अंकों के आधार पर होती है वह ज्यादा समय तक टिक नहीं पाती और काम होने तक ही संबंधों की यह बुनियाद अस्तित्व में रहा करती है, इसके बाद इसका कहीं पता भी नहीं चलता। लेकिन जो संबंध भावनात्मक और निष्काम होते हैं उनकी नींव मजबूत होती है लेकिन ऐसे संबंध नगण्य होते हैं क्योंकि जमाने में चारों तरफ जहाँ स्वार्थ और लूट-संस्कृति पसरी हुई है वहाँ संबंधों की शाश्वतता और मौलिकता हमेशा संदिग्ध ही रहा करती है। संबंधों के मामले में हमारे साथ कई तरफा व्यवहार होते हैं। रोजमर्रा की जिन्दगी में ऐसे कई लोग हमारे परिचय में आते हैं जो कभी नए होते हैं और कभी पुराने। इनमें भी मात्र दो या चार फीसदी लोग ऐसे हुआ करते हैं जिनसे हमारी नैसर्गिक घनिष्ठता होती है। शेष संबंध या तो व्यासायिक जरूरत होते हैं अथवा ओढ़े हुए अथवा अभिनय से भरे। ऐसे में लगातार कृत्रिम संबंधों के बीच जीने वाले लोगों की भी कोई कमी नहीं है।
संबंधों के मामले में आजकल सबसे बड़ी बात यह है कि ऐसे लोगों से दूरी बनाए रखें जो कपटी और लंपट हैं तथा हर बात में अपनी ओर से सौ गुना नई बातें बनाकर सलीके से परोसने के आदी हैं। क्योेंकि ऐसे लोगों से चर्चा करने का ही मतलब है अपने आप को विवादों में डालना। ऐसे लोगों की पूरी जिन्दगी बकवास करने और फालतू के विवादों की प्रसूति में लगी रहती है। इनके पूरे जीवन को देखा जाए तो बरसों से षड़यंत्रों और नापाक करतूतों, अफवाहों और झूठ-फरेब तथा अनर्गल प्रलाप करने जैसे कामों में लगे हुए हैं और इन सारी विषमताओं का अंत तभी संभव है जब यमराज महाराज अंतिम बार उनके द्वार पर आ धमकें। इसके बगैर न इनमें सुधार की गुंजाइश होती है न इन्हें सुधारने का माद्दा किसी में होता है। इनमें भी कुछ महान आत्माएँ तो ऐसी हैं जिनसे बात करने का ही धरम नहीं है। ये लोग पूरी जिन्दगी बकवास करते रहते हैं। इन लोगों से एक बार भी प्रत्यक्ष या दूरभाष से भी बात करने का अर्थ यह है कि हम कहें कुछ और ये अपनी ओर से सौ गुना मिलावट कर औरों को पेश कुछ और करें। फिर अपनी आफत ये कि किस-किस को सफाई दें कि हमने ये नहीं कहा है।
ऐसे लोगों की चवन्नियाँ ही झूठ से चलती हैं। ऐसे लोग किसी भी व्यक्ति को विवादित कर देने की सारी क्षमताओं से सम्पन्न हुआ करते हैं। विवादों और अफवाहों से बचना चाहें तो अपने इलाके के ऐसे महा भौन्दू और नर पिशाचों से दूर रहें जो बरसों से इसी काम में माहिर होकर चमड़े के सिक्के चला रहे हैं। इन लोगों का तनिक भी प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष सम्पर्क और चर्चा तक भी मुश्किल में डालने वाली होती है। समझदार लोगों से संबंधों में किसी भी प्रकार की कोई दिक्कत नहीं हुआ करती लेकिन उन लोगों से दूरी बनाये रखना जरूरी है जिनका पूरा जीवन ही षड़यंत्रों का जनक है और ये लोग रोज ही नए-नए षड़यंत्रों को जन्म देते रहते हैं। हर इलाके में ऐसे लोग होते ही हैं जिनका काम ही षड़यंत्रों मेें रमे रहना है। इन लोगों से किसी भी प्रकार का सम्पर्क रखना ही विवादित कर देने वाला होता है इसलिए जहाँ तक संभव हो अपने इलाके के ऐसे दुष्टों और षड़यंत्रकारियों से दूरी बनाए रखें और किसी भी प्रकार का कोई संबंध न रखें। ऐसे लोगों की सर्वथा सायास उपेक्षा की जानी चाहिए क्योंकि जो भी खतरें हैं वे इनके सामीप्य से ही पैदा हुआ करते हैं। इन लोगों की उपेक्षा और इनसे संवादहीनता ही वह ब्रह्मास्त्र है जिससे हम अपने आपको और समाज को इनसे बचाये रख सकते हैं।
---डॉ. दीपक आचार्य---
9413306077
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