सर्वोच्च न्यायालय ने आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के उस आदेश के क्रियान्वयन पर रोक लगाने की मांग करने वाली केंद्र सरकार की याचिका नामंजूर कर दी है जिसके तहत धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए निर्धारित 4.5 प्रतिशत आरक्षण रद्द कर दिया था।
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति के.एस. राधाकृष्णन और न्यायमूर्ति जे.एस. खेहर की पीठ ने बुधवार को आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगाने से इंकार करते हुए कहा कि दिसम्बर 2011 में आधिकारिक ज्ञापन के जरिए अन्य पिछड़ा वर्गों (ओबीसी) के लिए निर्धारित 27 प्रतिशत आरक्षण में से 4.5 प्रतिशत आरक्षण धार्मिक अल्पसंख्यकों को देना संविधान के अनुच्छेद 15 के अनुरूप नहीं है।
कोर्ट ने सरकार से पूछा है कि आखिर इस आरक्षण का आधार क्या है यानी धार्मिक आधार पर आरक्षण कैसे लागू किया गया? कोर्ट के मांगने पर मंगलवार को केंद्र सरकार ने अपने फैसले के समर्थन में कुछ दस्तावेज जमा कराए थे लेकिन सुप्रीम कोर्ट उन दस्तावेजों से संतुष्ट नहीं हुआ। आज उसने आरक्षण न देने के हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाने से साफ इनकार कर दिया। इससे पहले हाई कोर्ट ने ओबीसी कोटे के तहत अल्पसंख्यकों के लिए 4.5% आरक्षण देने के आदेश को खारिज कर दिया था। इसके खिलाफ सरकार सुप्रीम कोर्ट गई थी। इस फैसले से आईआईटी में चुने गए 325 छात्रों का भविष्य अधर में लटक गया है। इन छात्रों का चयन पिछड़ों के आरक्षण में अल्पसंख्यकों के कोटे के तहत किया गया था। चूंकि हाई कोर्ट उस कोटे को खारिज कर चुका है और सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट का फैसला जारी रखा है ऐसे में इन छात्रों के चयन पर पेंच फंस गया है।
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को केंद्र सरकार से कहा था कि वह उन सभी दस्तावेजों को अदालत के समक्ष पेश करें, जिनके आधार पर केंद्र सरकार 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण में से 4.5 प्रतिशत आरक्षण अल्पसंख्यकों को देना चाहती है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से पूछा था कि साढ़े चार फीसदी सब कोटा किस आधार पर दिया गया है। केंद्र सरकार ने इसके जवाब में लगभग 800 पृष्ठों के दस्तावेज दाखिल किए। इसमें मुस्लिमों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति पर न्यायमूर्ति राजिंदर सच्चर समिति की रिपोर्ट और रंगनाथ मिश्रा आयोग के निष्कर्ष व मंडल आयोग की रपटें शामिल हैं। केंद्र सरकार ने 1993 की वह सूची भी पेश की है, जिसमें मुस्लिम पिछड़ी जातियों को आरक्षण के लिए ओबीसी श्रेणी में रखा गया है।
दस्तावेजों में इस ओर भी इशारा किया गया है कि केरल व कर्नाटक में मुस्लिम पिछड़ी जातियों को भी इसी तरह से आरक्षण दिया गया है। सुप्रीम कोर्ट केंद्र के दिए इस जवाब से संतुष्ट नहीं हुई और उसने हाई कोर्ट के फैसले पर रोक से इनकार कर दिया। आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने 28 मई को अपने फैसले में केंद्र सरकार द्वारा पिछले साल मुसलमानों को दिए गए 4.5 प्रतिशत आरक्षण को रद्द कर दिया था। कोर्ट ने कहा था कि आरक्षण में आरक्षण की व्यवस्था के लिए जारी किया गया आधिकारिक ज्ञापन धार्मिक आधार पर था, न कि संवैधानिक आधार पर।
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