जमाने भर की गंदगी जमा करते हैं ये !!!
जो काम गिद्ध और सूअर भी नहीं कर पाते हैं वह मनुष्य कर लेता है। मनुष्यों के भरे-पूरे समुदाय में निन्दकों की एक प्रजाति हुआ करती है जिसका काम ही निन्दा करना होता है। ये गुण इनमें शैशव से ही आने शुरू हो जाते हैं और युवा तथा प्रौढ़ होने तक चरम परिपक्वता पा लेते हैं। फिर जवानी की तरह इनमें उतार नहीं होता बल्कि ज्यों-ज्यों उमर बढ़ती जाती है, निन्दा करने की तासीर और अधिक प्रगाढ़ होती जाती है और मौत के करीब पहुँचने तक निन्दा का यह हुनर भी अपने उत्कर्ष को प्राप्त होता रहता है। ईश्वर ने जमाने भर को साफ सुथरा रखने के लिए जबर्दस्त खाद्य श्रृंखला का सृजन किया हुआ है। इसी के अनुरूप गिद्ध और सूअर भी हैं जो गंदगी को साफ करने में इतने माहिर हैं कि मौका पाते ही झटपट सब कुछ उदरस्थ कर लेते हैं।
इनकी गैर मौजूदगी में अपने आस-पास और गांवों-कस्बों-शहरों में कितनी गंदगी और बदबू के भभके हवाओं में तैरकर लोगों को परेशान करते रहते, इसकी कल्पना तक भी नाक भौं सिकोड़ने वाली होती है। निन्दक प्रजाति के लोग हर समुदाय, हर कार्यक्षेत्र और हर इलाके में होते हैं। अपने इलाके में भी किसम-किसम के निन्दक हैं। कई मोटे पेट वाले, कई भौंदू, कई व्यसनी और कई सूटेड़-बूटेड़। इन निन्दकों की शारीरिक सँरचना भी ऐसी बेड़ौल हो जाया करती है कि दूर से ही लगता है जैसे ईश्वर के हाथों कहीं न कहीं कोई फिनिशिंग बाकी कर गई है। कोई नाक रगड़ते हुए गालियाँ बकने का आदी है, कोई बाल नोंचते हुए जी भर कर चिल्लाने का, तो कोई जहाँ मिल जाए पुराने इतिहास को बाँचता हुआ अपनी ही शेखी बघारता रहता है, कोई पराये समोसों और कचोरियों के साथ चाय की चुस्कियों पर डींगे हाँकता है तो कोई जहाँ दिख जाए, वहीं शुरू हो जाता है अपनी नॉन स्टॉप निन्दा पुराण का वाचन करने।
इन निन्दकों की भी कई-कई मजेदार किस्मे हैं जिनको देखकर ही हँसी के फव्वारे फूटने लगते हैं। कई निन्दकों को यह भी पता नहीं चलता कि वे क्या बक रहे हैं, उन्हें तो सिर्फ बकना है और वे इसके सिवा कुछ जानते ही नहीं। जहाँ मौका मिलेगा बकना शुरू कर देंगे और साथ में जोर-जोर से चिल्लाते हुए। इनका हमेशा यही भरम होता है कि जो बातें जानवरों की तरह चिल्ला-चिल्ला कर कही जाती हैं उनका असर कुछ ज्यादा ही होता है। हमारे इलाके में ऐसे कई चिल्लाऊ किस्म के गैण्डाछाप निन्दक हैं जिन्होंने अपने जीवन में अंतिम उत्तरार्द्ध तक पहुँचने के बाद भी चिल्लाना और बकवास करना नहीं छोड़ा है। कई निन्दक फेरी वालों की तरह, कई प्रोपेगण्डिस्टों की तरह, कई उन्मादी और अर्द्ध या पूर्ण विक्षिप्त की तरह बकवास करने के आदी हो गए हैं। इसी तरह कई किस्मों के निन्दक हमारे क्षेत्रों में हमारी आँखों के सामने रोजाना शहर परिक्रमा करते रहते हैं।
निन्दकों का सबसे बड़ा गुण यह है कि वे चाहते हुए भी कोई पुरुषार्थ कभी नहीं कर सकते, न इनमें पुरुषार्थ की कोई योग्यता ही हुआ करती है। हराम के पैसों पर मौज उड़ाना इनके जीवन का सर्वोपरि लक्ष्य हुआ करता है। इनकी पूरी जिंदगी पराये पैसों से चलती है, खुद भी पराये लोगों पर पलते हैं। कभी परजीवी तो कभी अमरबेल की तरह इनकी जिन्दगी की गाड़ी चलती रहती है। खुद ये कोई अच्छा काम नहीं कर पाते हैं मगर जो लोग अच्छे काम करते रहते हैं उन पर इनकी पैनी नज़र कभी चूकती नहीं। एक ख़ासियत इनकी यह भी होती है कि ये बुरे लोगों पर कोई टिप्पणी करने से परहेज रखते हैं। पराये पैसों और बुद्धि पर मौज उड़ाने वाले ये पुरुषार्थहीन लोग जिन्दगी भर एक ही काम करते रहते हैं-लोगों निन्दा करना। जैसे यही उनकी आजीविका के निर्वाह का साधन क्यों न हो।
हर क्षेत्र में ऐसे निन्दकों का एक गिरोह अपने आप बन जाता है जहाँ सारे शहर भर की ताजी गंदगी रोजाना जमा होती रहती है जैसे ये नगर परिषदों के डस्टबिन या डंपिंग स्पॉट ही हों। पूरे इलाके में क्या नया है, कौन क्या कर रहा है, किसे क्या करना चाहिए? इन सारी फिजूल बातों का अप डेट डेटा बेस इन स्थानों पर ही होता है जिसका विश्लेषण और मेन्यूप्लेशन करना ही निन्दकों के जीवन का अहम् हिस्सा और जीवन निर्वाह की ऊर्जाओं का अक्षय स्रोत हुआ करता है। दिमाग पर थोड़ा जोर देने की जरूरत भर है, फिर अपने आप हमारे सामने वो चेहरे फिल्म की तरह दिखते नज़र आएंगे जो अपने शहर के मोबाइल डंपर्स हैं। कल्पना करें कि हमारे इलाके में कूड़ादान या कूड़ा डालने के नियत स्थान न हों तो गंदगी के मारे हालत कैसी हो जाए? बस यही बात निन्दकों के लिए भी है। अगर ये निन्दक किस्म के पशु-बुद्धि मनुष्य हमारे बीच नहीं होते तो जमाने भर की गंदगी कहाँ जमा हो पाती, और कहाँ इस गंदगी को मिलते डंपिंग स्पॉट?
अपने ही इलाके में आस-पास ही ऐसे कूड़ेदानों के रहते हमारा परिवेश कितना स्वच्छ रह पा रहा है इसकी कल्पना से ही हमें सुकून मिलता है। भगवान इन निन्दकों को लम्बी उमर दे जो हमारे लिए पीआर का काम करते हुए जमाने भर की गंदगी को अपनी बनाकर इस्तेमाल करने में लगे हुए हैं। कुछ लोग तो इन निन्दकों के कारण ही लगातार चर्चाओं में रहते-रहते लोकप्रियता के चरम को पा लेते हैं।
---डॉ. दीपक आचार्य---
9413306077
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें