बुद्ध स्मृति पार्क में अब नियमित रूप से पूजा-पाठ होगी. इसके लिए राज्य सरकार के आमंत्रण पर बोधगया से तीन बौद्ध भिक्षुओं को बुलाया गया है. ये तीनों बौद्ध भिक्षु (भंते) ‘बुद्धं शरणं गच्छामि’ का पाठ पढ़ाने के साथ नियमित रूप से पूजा-पाठ कराएंगे. बौद्ध पर्यटकों को ध्यान में रखकर पाटलिपुत्र का द्वार खोलने का प्रयास किया जा रहा है.
पारंपरिक तरीके से बुद्ध स्मृति पार्क में बौद्ध भिक्षुओं की सभा आयोजित करने की भी योजना है. माना जा रहा है कि बौद्ध भिक्षुओं द्वारा बुद्ध स्मृति पार्क में पूजा-पाठ शुरू कर दिए जाने के बाद चीन, थाईलैंड, जापान, श्रीलंका और कंबोडिया के धर्मावलंबी भी यहां पधारेंगे.
पर्यटकों के लिए आकषर्क का केन्द्र बुद्ध स्मृति पार्क को पर्यटकों के लिए आकषर्क का केन्द्र बनाया जा रहा है. हाल ही में बिहार दौरे पर आए सिंगापुर के पूर्व विदेश मंत्री को भी बुद्ध स्मृति पार्क खूब भाया था. सूत्रों के अनुसार फिलहाल बुद्ध स्मृति पार्क में विधिवत रूप से नियमित पूजा-पाठ कराए जाने की तिथि और समय तय नहीं किया गया है. पार्क को चारों तरफ सतरंगी विद्युतीय आवरण से ढंका जाएगा. चाहरदिवारी के चारों तरफ जब इन्द्रधनुषी रंग बिखेरा जाएगा तब पार्क की छटा देखते ही बनेगी. तकनीकी शब्द में इसे फसाद कहा जाता है. उल्लेखनीय है कि श्रीलंका और बोधगया से लाए गए बोधिवृक्षों के बीच बुद्ध की मूर्ति की स्थापना की गई है.
बुद्ध के पुरावशेष
बुद्ध पूर्णिमा के दिन राजगीर, बोधगया और वैशाली से आए बौद्ध गुरु ने वृक्ष का पूजन किया था. बुद्ध पूर्णिमा (बुद्ध के 2556 वें जन्म दिवस) के अवसर पर बुद्ध के पुरावशेष और ‘पवित्र अवशेष’ को आम जनता के दर्शन के लिए खोल दिया गया. फिलहाल दो सौ फीट ऊंचे बने स्तूप ‘पाटलिपुत्र करुणा’ का बाहर से भी दीदार किया जा सकता है. बौद्ध गुरु दलाई लामा ने 27 मई 2010 को ही बुद्ध स्मृति पार्क का उद्घाटन कर दिया था. बुलेट प्रूफ शीशे के अंदर श्रीलंका, थाइलैंड, बर्मा, म्यांमार, जापान और कोरियाई बुद्धिस्ट देशों से बुद्ध के पुरावशेष स्तूप में रखे गए हैं.
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