तभी हो पाएगी तरक्की
जीवन में निरन्तर आगे बढ़ने के लिए सिर्फ हम अकेलों का ही आगे बढ़ना जरूरी नहीं है बल्कि उन सभी वस्तुओं में भी नित नयापन आना जरूरी है जिनका हमारे रोजमर्रा के जीवन में काम पड़ता है और इनके बगैर हमारे कई कामों में दिक्कतें आती रहती हैं। मनुष्य के जीवन में नित नवीन उत्साह, उल्लास से भरा परिवेश और अच्छे माहौल की मौजूदगी ही आधी से अधिक सफलताओं को प्राप्त करा देती हैं। हर क्षण ताजगी के लिए ताजी बातें और ताजी सामग्री जरूरी है और जो व्यक्ति हमेशा नया सोचते और करते हैं उनकी जिन्दगी तरक्की की मुख्य धारा को पा जाती है और ये लोग जमाने भर को अपनी मुट्ठी में कैद रखने का सामर्थ्य पा जाते हैं। अपने पूरे जीवन में यह आदत बना लें कि रोज का काम रोज हो जाए और कोई ऐसा काम नहीं बचे जिसे पुराना काम कहा जाए। स्वयं के लिए संभव नहीं हो तो इसे दूसरों को फॉरवर्ड कर दें और उन्हीं कामों को अपने आप रखें जिन्हें उसी दिन पूरा कर सकते हैं अथवा निर्धारित समयावधि में पूर्णता प्रदान कर सकते हैं।
इस आदत से हमारे जीवन में ताजगी बनी रहती है और तनावों का नामोनिशान नहीं रहता। कहने का अर्थ यह कि बेवजह किसी भी काम को लंबित न रखें। इसी प्रकार किसी भी विचार को कार्यरूप में बदलने में भी अनावश्यक देरी नहीं की जानी चाहिए क्यांेकि जो विचार हमारे दिमाग में आता है वह आकार पाने तक दिमाग में ही पड़ा रहता है और दिन में कई मर्तबा उसकी याद आती रहती है। किसी भी एक ही विचार के बार-बार अवचेतन से चेतन और फिर चेतन से अवचेतन मस्तिष्क में लौटते रहने की स्थितियों से मानसिक तनाव और शारीरिक रुग्णता का अनुभव होता है। इसलिए जो विचार हमारे दिमाग में हैं अथवा जिन कामों को हम सोचते हैं उन्हें जितना जल्दी हो सके पूरा करके अपने मस्तिष्क को खाली रखने का प्रयास करें ताकि अपने लायक कोई और विचार उसमें आने की संभावनाएं बनी रहें और दिमाग का बॉक्स भरा हुआ नहीं मिले। यह तय मान कर चलना होगा कि मस्तिष्क जितना खाली होगा उतना व्यक्ति का मानसिक धरातल और सोचने की क्षमताएं तथा पूर्वाभाव का सामर्थ्य उतना ही अधिक होगा। मस्तिष्क का स्वच्छ, रिक्त और स्वस्थ रहना हर व्यक्ति के लिए जरूरी है।
अपने मन-मस्तिष्क और शरीर की प्रसन्नता के लिए यह भी जरूरी है कि हमारे आस-पास का वातावरण और सोच-विचार तथा कामों की प्रकृति भी नवीन और ताजी हो ताकि हमें ताजगी भरा माहौल मिले और हर कार्य आशातीत सफलता के साथ पूर्णता को प्राप्त कर सके। इसके लिए यह आवश्यक है कि हमारे आस-पास कोई भी ऐसी सामग्री नहीं रहें। जो सामग्री अवधिपार हो जाती है वह अपने आप नकारात्मक ऊर्जाओं का विकिरण प्रारंभ कर देती है और यह अपनी तरक्की में सबसे बड़ी बाधाएं पैदा करते हैं। हमें यह पता भी नहीं चलता कि हमारी प्रगति में बाधक तत्व कौन से हैं और किन कारणों से अपेक्षित सफलता प्राप्त नहीं हो पा रही है। जबकि इनके लिए सर्वाधिक जिम्मेदार वे ही वस्तुएं होती हैं जिनका हमारे जीवन के लिए कोई उपयोग नहीं रह गया है अथवा अवधिपार हो गई हैं। अवधिपार दवाइयों की ही तरह इनका हमारे जीवन-स्वास्थ्य पर घातक प्रभाव पड़ने लगता है और सफलताओं की बजाय हमारा सामना समस्याओं से होने लगता है।
आजकल इंटरनेट का जमाना है जहां बहुत सारा काम-काज ईमेल से होने लगा है। ऐसे में यह देखना चाहिए कि हमारी वैबसाईट या यूजर नेम, ईमेल आईडी से पुरानी तिथियों की गंध न आए। जो भी ईमेल आईडी या वैब साईट अथवा ब्लॉग बनाएं उनमें तिथि या वर्ष प्रदर्शन यथासंभव नहीं होना चाहिए क्योंकि यह साल भर बाद पुराने हो जाते हैं और ऐसे में हम पुराने वर्ष को अपने साथ घसीटते रहते हैं और तब हम पुरानी तिथि या वर्ष में बंध कर रह जाते हैं और हमे अपेक्षित सफलता प्राप्त नहीं हो पाती है। इसलिये ई मेल यूजर नेम मेें जहां तक संभव हो ऐसे रखें जिनसे पुरानी तिथियांें और पुराने साल की झलक न मिलती हो। पुरानी तिथियों को दर्शाने वाले ईमेल जड़ता और स्थिरता के द्योतक होते हैं। इसी प्रकार अपने घर में पुरानी तिथि या वर्ष दर्शाने वाले कैलेण्डर भी न रखें। कई लोग भगवान की तस्वीर या दूसरी प्राकृतिक छवियों या पसन्दीदा चित्रों को सहेज रखने के मोह में पुराने कैलेण्डरों को लगाए रखते हैं। इससे भी हम पुरानी तिथियों से आगे सरक नहीं पाते और अपना कोई न कोई महत्त्वपूर्ण कार्य इन पुराने वर्षों का रुका पड़ा रह सकता है। इसलिए छवियों का मोह हो तो कैलेण्डर या वर्ष दर्शाने वाले हिस्सों को हटा कर इन्हें रखें।
अपने आस-पास और गांव-शहर में अवधिपार हो चुके बैनर्स, पोस्टर्स और बोर्ड्स का होना भी इलाके की तरक्की को बाधित करता है। नित नवीन और ताजगी चाहिए तो वही रखें, वही दिखाएं जो सम सामयिक है। जिन इलाकों में पुरानी सामग्री प्रदर्शित रहती है वहाँ का विकास स्वतः रुक जाता है और कोई न कोई बाधाएं आती रहती हैं जिनसे तरक्की का प्रवाह समय के साथ गति नहीं पकड़ पाता और किसी न किसी बहाने रुक जाता है। ऐसी कोई भी अनुपयोगी वस्तु अपने पास या आस-पास नहीं होनी चाहिए जिसका भविष्य के लिए कोई उपयोग न हो। अपने उपयोग में आने वाली सामग्री ही अपने पास रखें। बेवजह भण्डार न कर रखें। बेवजह ज्यादा सामग्री हो जाए तो उसे योग्य व्यक्ति को दे दें अथवा कहीं दान कर दें। या उसे अपने यहाँ से हटा कर नष्ट कर दें। इसी प्रकार भवनों में भी आगे ही आगे पर भी निर्माण का वर्ष अंकित नहीं करें क्योंकि इसके निर्माण वर्ष के बाद यह आने वाले समय के लिए पुराना ही हो जाता है और जो भी इसे देखता है उससे मकान के पुराने होने का बोध स्वतः जग जाता है भले ही हम घर को कितना ही आकर्षक क्यों न बनाए रखें।
अपने घर या दफ्तर अथवा फॉर्म हाउस कहीं पर भी पुरानी तिथियों को दर्शाने वाले कैलेण्डर, पोस्टर्स और ऐसी सामग्री नहीं रखी जानी चाहिए। जो भी सामान हो वह उपयोग में आने लायक हो। साफ तौर पर यह मान लेना चाहिए कि अपने यहां ऐसी कोई सामग्री नहीं हो जिसका उपयोग नहीं हो तथा फालतू पड़ी हो। ऐसा करके ही हम घर और दफ्तर को नकारात्मक ऊर्जाओं से मुक्त रख कर सकारात्मक माहौल पैदा कर सकते हैं और इसका सीधा संबंध हमारे रोजमर्रा के काम-काज पर भी पड़ेगा जिसका प्रत्यक्ष लाभ भी हमें ही प्राप्त होगा। इसी तरह हमारा घर, दफ्तर या प्रतिष्ठान हो, वहां बीते दिन के अखबारों की मौजूदगी नहीं होकर उसी दिन के अखबार दृश्यमान स्थल पर होने चाहिएं और पुराने अखबार ऐसी जगह रख दिए जाएं जहां किसी बाहरी व्यक्ति की निगाह न पहुंचे। मैग्जीन्स भी समयावधि बीत जाने के बाद वहां से हटा कर अलग रख दी जानी चाहिएं और इनकी जगह नई पत्रिकाएं रखी होनी चाहिएं। जिन फाइलों का निस्तारण हो चुका है उन सभी को बस्ते में बांध कर रख दिया जाना जरूरी है अन्यथा पुरानी फाईलें बेवजह टेबल पर होने से इनकी भीड़ बनी रहेगी और इन पुरानी अवधि की तथा उपयोग हो चुकी फाईलों से काम-काज में तनाव बना रहेगा। अपना कक्ष और अपनी टेबल दोनों ही साफ रहनी चाहिएं और उनकी दराजों में भी ऐसा कोई कागज तक नहीं होना चाहिए जिसका काम हो चुका है अथवा अवधिपार हो गये हैं। पुरानी तिथियों के बेवजह पड़े हुए कागज भी अपनी गति को रोकने में अहम् भूमिका का निर्वाह करते हैं। जीवन में नयापन और ताजगी लाएं तथा अवधिपार सामग्री को अपने से दूर करें, तभी जीवन का असली व शाश्वत आनंद पाया जा सकता है।
---डॉ. दीपक आचार्य---
9413306077
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