महाराष्ट्र में पृथ्वीराज चव्हाण सरकार पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं. सत्ता के समीकरण ऐसे बन चुके हैं कि कभी भी चव्हाण सरकार जा सकती है. मुख्यमंत्री चव्हाण को सबसे बड़ा खतरा अपनी ही पार्टी के कांग्रेसी विधायकों से बन चुका है. कांग्रेस के 42 विधायकों ने चव्हाण के खिलाफ खुलकर मोर्चा खोल दिया है. कांग्रेसी विधायक अपने ही पार्टी के मुख्यमंत्री से खासा नाराज चल रहे हैं.
राज्य के कांग्रेसी विधायकों ने पार्टी सुप्रीमो सोनिया गांधी को मुख्यमंत्री के खिलाफ एक शिकायत पत्र लिखा है. विधायकों ने एक चिट्ठी महाराष्ट्र के कांग्रेस अध्यक्ष माणिकराव ठाकरे और कांग्रेस प्रवक्ता मोहन प्रकाश को भी भेजी है.
विधायकों ने शिकायत में लिखा है कि अगर राज्य सरकार ऐसे ही काम करती रही तो हमारा अगली बार चुनाव जीत पाना मुश्किल हो जाएगा. ये विधायक चव्हाण के काम- काज के तरीके से नाराज बताए जा रहे हैं. इनका कहना है कि चव्हाण उनकी बात नहीं सुनते और उनका काम नहीं हो पाता है.
चिट्ठी पर दस्तखत करने वालों में बलदेव खोसा, गोविंद अग्रवाल, विजय वाडेट्टिवार, सुनील केदार, दिलीप सानंदा, मधु चव्हाण, अब्दुल सत्तार और राजेंद्र शेखावत जैसे विधायक शामिल हैं. महाराष्ट्र के एनसीपी मंत्रियों ने भी पार्टी अध्यक्ष शरद पवार के सामने मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण की शिकायतों का पिटारा खोलकर रख दिया. बताया जाता है कि शनिवार को वे पवार के सामने यह बोलने से भी नहीं चूके कि 'साहेब, जरूरत न हो तो ये (राज्य) सरकार भी गिरा दो.'
पवार दिल्ली से मुंबई पहुंचने के बाद अपने निवास 'रामालय' में पार्टी प्रदेशाध्यक्ष मधुकर पिचड के साथ महाराष्ट्र के अपने पांचों प्रमुख मंत्रियों के साथ चर्चा कर रहे थे. सूत्रों के अनुसार, सीएम को लेकर उपमुख्यमंत्री अजित पवार तथा वरिष्ठ मंत्रियों छगन भुजबल, आर.आर.पाटील, सुनील तटकरे और जयंत पाटील सभी की शिकायत एक जैसी थी. मुख्यमंत्री कार्यालय से कोई फाइल आगे नहीं बढ़ती. मंत्रिमंडल में बिना चर्चा के महत्वपूर्ण निर्णय ले लिए जाते हैं. एनसीपी के मंत्रियों के खिलाफ जारी मुहिम में सीएम का परोक्ष समर्थन होने का भी दावा किया गया.
सूत्रों के अनुसार वहां समीकरण कुछ और बन रहे हैं. कांग्रेसी विधायकों की नाराजगी एनसीपी प्रमुख शरद पवार की कांग्रेस के साथ चल रही नाराजगी से भी जोड़ा जा रहा है. गौरतलब है कि पवार केंद्र में प्रणव मुखर्जी के बाद दूसरे नंबर की लड़ाई लड़ रहे हैं. उनका कहना है कि केंद्र सरकार में एक सहयोगी पार्टी होने के नाते केंद्र में दूसरे नंबर की कुर्सी उसे मिलनी चाहिए. हालांकि सोमवार की मीटिंग में एनसीपी इस मुद्दे पर कोई फैसला नहीं ले सकी.
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