बिहार में इलाज के नाम पर हजारों महिलाओं का गर्भाशय निकालने का सनसनीखेज मामला सामने आया है. राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना की राशि हड़पने के लिए बिचौलियों द्वारा इलाज के नाम पर ढाई वर्षो में सोलह हजार से अधिक गरीब महिलाओं के गर्भाशय निकलवा दिए गए. यह आंकड़ा ग्यारह जिलों का है.
राज्य के सभी जिलों से आंकड़े सामने आने पर यह संख्या और अधिक हो सकती है. राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना से जुड़े उच्चस्तरीय सूत्रों के अनुसार राज्य के 11 जिलों में योजना के तहत पन्द्रह हजार से अधिक बीपीएल महिलाओं के गर्भाशय इलाज के समय निकाल दिए गए. इनमें सभी का वजाइनल व अबडोमिनल ऑपरेशन किया गया.
महिलाओं की उम्र बीस से तीस वर्ष के बीच है. अब ऐसी महिलाओं के घर में कभी भी किलकारी नहीं गूंजेगी. ये सभी गरीब बीपीएल परिवार की महिलाएं हैं. समस्तीपुर जिले में सबसे अधिक 5048 महिलाओं के ऑपरेशन के जरिए गर्भाशय निकाल दिए जाने की रिपोर्ट है. हाल ही में छत्तीसगढ़ में भी राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना के तहत कई गरीब महिलाओं के गर्भाशय (कोख) निकालने की सनसनीखेज रिपोर्ट सामने आई थी. राज्य के केवल ग्यारह जिलों बांका, गोपालगंज, जमुई, लखीसराय, मधेपुरा, मधुबनी, समस्तीपुर, सारण, शेखपुरा, सीवान व सुपौल जिले में सोलह हजार से अधिक गरीब महिलाओं के गर्भाशय निकाले गए हैं.
चिकित्सा विज्ञान में गर्भाशय निकालने संबंधी इस ऑपरेशन को ‘हिस्टरेक्टोमी अबडोमिनल’ व ‘हिस्टरेक्टोमी वजाइनल’ का नाम दिया गया है. ग्यारह जिलों के जो आंकड़े (16079) दिए गए हैं, वे दोनों विधियों के ऑपरेशन के हैं. हिस्टरेक्टोमी का मतलब होता है ऑपरेशन के जरिए किसी महिला का गर्भाशय निकालना. सूत्र बताते हैं ऐसे एक ऑपरेशन के लिए दस हजार रुपये तक खर्च आते हैं. राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना के तहत एक लाभुक पर साल में तीस हजार रुपये खर्च करने का प्रावधान है. उधर, राज्य सरकार के पदाधिकारी भी हतप्रभ हैं कि आखिर ढाई वर्षो के अंदर इतनी बड़ी संख्या में गरीब महिलाओं का गर्भाशय निकालने के लिए किसने प्रेरित किया. क्या वाकई में एक ही बार इतनी महिलाओं को गर्भाशय निकालने की अनिवार्यता हो गई थी.
राज्य में चल रही राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना के तहत बीपीएल परिवार के पांच सदस्यों के लिए अधिकतम तीस हजार रुपये की मुफ्त इलाज की व्यवस्था है. गरीब परिवारों के इलाज के लिए सूबे में 829 निजी अस्पताल सूचीबद्ध हैं. स्मार्ट कार्ड के आधार पर जब बीपीएल परिवार के लोग सूचीबद्ध अस्पतालों में इलाज कराने जाते हैं तो इसके एवज में बीमा कंपनियां अस्पतालों को राशि देती हैं.
इलाज की अधिकतम राशि तीस हजार रुपये है, जो मुफ्त में संभव हो जाती है. बस, यहीं से इस राशि का हिस्सा लेने के लिए बिचौलियों का खेल शुरू हो जाता है. बिचौलियों द्वारा मुफ्त इलाज कराने के झांसे में गरीब रोगी आ जाते हैं. इस बीच, योजना की नोडल एजेंसी श्रम संसाधन विभाग के नये सचिव अमृत लाल मीणा गर्भाशय निकाले जाने के मामले को लेकर खासे चिंतित हैं. महिलाओं के गर्भाशय निकालने की बात पूछने पर उन्होंने विभागीय पदाधिकारियों से रिपोर्ट मांगी और आखिर में ऐसे मामले की पुष्टि भी की. सचिव खुद आश्चर्यचकित हैं कि आखिर ये सब कैसे हुआ? उन्होंने गुणवत्तापूर्ण इलाज के लिए इंडियन मेडिकल एसोसिएशन से मुलाकात करने की बात कही है.
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