गाँव-ढाणियों और पालों-फलों तक पसरना चाहिए उपभोक्ता आन्दोलन
समग्र सामाजिक विकास के लिए उपभोक्ता चेतना अनिवार्य
समाज का विकास इसकी प्रत्येक इकाई पर निर्भर है। हर इकाई के लिए गुणवत्तायुक्त सेवाएं, सुविधाएं और रोजमर्रा की जिन्दगी के काम आने वाली वस्तुओं की शुद्धता जरूरी है। यों देखा जाए तो दुनिया का हर व्यक्ति किसी न किसी रूप में उपभोक्ता हैै और उसे अपने कामों के लिए औरों पर निर्भर रहना पड़ता है। इन सभी उपभोक्ताओं के लिए परस्पर बेहतर सेवाओं और सामग्री की जरूरतों को पूर्ण करने के लिए सभी पक्षों को मानवीय संवेदनाओं, सामूहिक विकास की सोच तथा ‘आत्मवत् सर्वभूतेषु’ की भावना से काम करने की जरूरत है। उपभोक्ता चाहे किसी भी प्रकार के हों, इन सभी का दायित्व है कि अपनी सेवाओं में गुणवत्ता को बरकरार रखें और इस प्रकार की सेवाएं प्रदान करें कि हर कोई उपभोक्ता सामग्र्री और सेवाओं से संतुष्ट रहे।
लोक भागीदारी से ही संभव है बदलाव
सरकारों ने उपभोक्ताआंे के हितों को देखते हुए उपभोक्ता कानून बना रखे हैं और कई संस्थाएं हैं जो उपभोक्ताओं के अधिकारों की रक्षा करने के लिए प्रयत्नशील रहती हैं। भारत में उपभोक्ता कानून बन जाने के बाद इनके व्यापक प्रचार-प्रसार को बीड़ा उठाया गया। इसी का परिणाम है कि आज आम लोगों को उपभोक्ताओं के हकांे और कर्त्तव्यों के बारे में जानने-समझने का मौका मिला है। देश भर में हजारों लोग ऐसे हैं जो एकल तथा संस्थागत प्रयासों से उपभोक्ताओं के हितों में निरन्तर जुटे हुए हैं। सरकारी संस्थाएं भी अपने दायित्व निभा रही हैं।
सामाजिक स्तर पर भी हों प्रयास
असल में कानून तो खूब हैं। ऐसे में उपभोक्ता चेतना जागृत करने और उपभोक्ताओं के अधिकारों के व्यापक प्रचार-प्रसार के लिए समर्पित कार्यशैली अपनाने की जरूरत है और सामाजिक स्तर पर भी इस दिशा में लोगों की सशक्त भागीदारी की अपेक्षा है। उपभोक्ता चेतना को शोषण एवं अन्याय से मुक्ति पाने की दिशा में उपभोक्ता कानून महत्वपूर्ण कारक हैं। लोगों को चाहिए कि उपभोक्ताओं के कर्त्तव्यों एवं अधिकारों के प्रति जागरुकता दर्शाएं और इसके व्यापक प्रचार-प्रसार के लिए आगे आएं।
जागरुकता प्रसार के समर्पित प्रयास हों
उपभोक्ता चेतना मौजूदा समय की प्राथमिक आवश्यकता है और आज इससे संबंधित नियमों और कानूनों तथा उपभोक्ताओं के अधिकारों के बारे में जन-जन को जागृत करने की जरूरत है। राज्य सरकार ने उपभोक्ता हितों की रक्षा और उपभोक्ताओं के कल्याण के लिए ख़ास प्रयास किए हैं और इन प्रयासों को तीव्रतर करने का दायित्व सम्बद्ध विभागों के साथ ही जन प्रतिनिधियों एवं समाज के जागरुक लोगों का है।
दूरदराज तक पहुंचे पैगाम
उपभोक्ताओं के अधिकारों तथा कर्त्तव्यों के बारे में व्यापक लोक जागरण के लिए व्यापक स्तर पर अभियान चलाए जाने की आवश्यकता है। ख़ासकर देश के पहाड़ी, सीमावर्ती तथा जनजाति क्षेत्रों में उपभोक्ताओं को उनकी अपनी भाषा-शैली में समझाने तथा अपने हकों के लिए जागृत करने पर ध्यान केन्द्रित करने में समन्वित व समर्पित भूमिका जरूरी है। मौजूदा समय में आम उपभोक्ताओं को समय पर उचित दाम में गुणवत्तादायी सामग्री प्राप्त हो, इस पर ख़ास ध्यान दिए जाने की जरूरत है। विकासशील समुदाय एवं देश के उपभोक्ता आन्दोलन की आवश्यकता महत्वपूर्ण है। ऐसे में उपभोक्ता न्यायालयों के निर्णयों में ‘‘स्टे’’ प्राप्ति के अधिकारों को भी जोड़ा जाना चाहिए। वर्तमान में विज्ञापन युग की चकाचौंध में हरेक उपभोक्ता को अपनी आंखें पूरी तरह खुली रख कर उपभोक्ता का फर्ज निभाना होगा।
ग्रामीणों को उनकी बोली में समझाइश की जरूरत
उपभोक्ता चेतना से जुड़े विभागों एवं सम्बद्ध संगठनों के प्रतिनिधियों की भूमिका इस दिशा में काफी बढ़ जाती है जिन्हें विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में उपभोक्ताओं को अपने अधिकारों एवं कर्त्तव्यों के प्रति जागृत करने पूरे मन से आगे आकर उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के बारे में परिचित कराना चाहिए। हालांकि इस दिशा में ग्राम्यांचलों में हाल के वर्षों में खूब प्रयास हुए हैं किन्तु व्यापक आन्दोलन के रूप में शत-प्रतिशत जनचेतना एवं लोक भागीदारी के बिना इसका पूरा फायदा लिया जाना संभव नहीं है। इस दृष्टि से उपभोक्ता चेतना से सम्बद्ध विषयों पर सरल एवं सुबोधगम्य शैली में प्रचार सामग्री तैयार करने और उपभोक्ता चेतना से जुड़े विषयों पर नियमित गोष्ठियों के आयोजन की आवश्यकता है।
सरल भाषा में प्रचार साहित्य कारगर
उपभोक्ता संरक्षण कानून-1986, उपभोक्ता न्यायालय की कार्यप्रणाली, खाद्य पदार्थों में मिलावट रोकने के उपायों, बाट एवं माप निरीक्षण, डिब्बा बंद वस्तुओं के बारे में पैकेज एक्ट आदि पर आम लोगों में जानकारी संवहित की जानी जरूरी है। इसी प्रकार उपभोक्ता चेतना के लिए प्रेरणादायी साहित्य के सृजन की आवश्यकता भी है जिससे कि लोक जागरण के लिए इन रचनाओं का बेहतर उपयोग संभव हो सके। बात उपभोक्ता आन्दोलन की हो या और किसी सामाजिक सरोकार की, आम लोगों तक सरकारी योजनाओं और कार्यक्रमों से संबंधित जानकारियों का संवहन किया जाकर सामाजिक परिवर्तन लाया जा सकता है। आज जरूरतमन्द व्यक्ति को उसके अनुकूल योजनाओं से जोड़ देना ही सबसे बड़ा फर्ज है और सभी जागरुक लोगों को सदैव इस बात के लिए प्रयत्नशील रहना चाहिए।
---डॉ. दीपक आचार्य---
9413306077
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें