पूर्व केन्द्रीय मंत्री दिवंगत अर्जुन सिंह की आत्मकथा प्रकाशित हुई है। किताब का नाम है 'अ ग्रेन ऑफ सैंड इन द आवरग्लास ऑफ टाइम.' इस किताब में कई ऐसे खुलासे हैं, जिस पर सवाल भी उठ रहे हैं और बहस भी बढ़ रही है।
अर्जुन सिंह ने लिखा है कि राजीव गांधी के कार्यकाल में उन्हें हटाने के लिए ज्ञानी जैल सिंह और कुछ कांग्रेसियों ने पूरी प्लानिंग कर रखी थी। कांग्रेस की अंदरुनी राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाने वाले अर्जुन सिंह नेहरुवादी विचारधारा के समर्थक और गांधी परिवार के वफादार रहे। यानी अर्जुन सिंह कांग्रेस और गांधी परिवार के तमाम फैसलों के गवाह थे। उनके संस्मरण 'अ ग्रेन ऑफ सैंड इन द आवरग्लास ऑफ टाइम' में इन रिश्तों और राजनीति के कुछ खुलासे चौंकाने वाले हैं।
अर्जुन सिंह ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि बात 1987 के मध्य की है। विदेश मंत्रालय से रिटायर्ड हो चुके के.सी. सिंह ने मुझसे मुलाकात का वक्त मांगा। मैंने समय दे दिया। वे मेरे पास एक ऊटपटांग सूचना लेकर आए कि तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह प्रधानमंत्री राजीव गांधी को उनके पद से हटाने वाले हैं। वे जानना चाहते थे कि क्या मैं राजीव की जगह लेने को तैयार हूं।
किताब में लिखा है कि अर्जुन सिंह ने ये बात राजीव गांधी को बता दी और राजीव गांधी ने उनसे कहा कि आपने सही किया, अगर ये शख्स दोबारा आपसे मिलने के लिए वक्त मांगे तो पहले मुझे बता दीजिएगा। अर्जुन सिंह ने लिखा है इंटेलिजेंस एजेंसियों ने उन्हे के.सी. सिंह से मिलने की सलाह दी। दूसरी मुलाकात में भी के.सी. सिंह ने यही सवाल पूछा। अर्जुन सिंह लिखते हैं, के.सी. सिंह ने बताया कि कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेताओं ने राष्ट्रपति की इस बात पर हामी भर दी है कि सही वक्त पर सामूहिक कार्रवाई होगी। हमारी बातचीत टेप हो रही थीं। मैनें कांग्रेस नेताओं के नाम पूछे। अर्जुन सिंह ने ये भी लिखा है कि वो उन नेताओं के नाम नहीं बताएंगे। इस विवादास्पद खुलासे की सच्चाई से के.सी. सिंह ने इन्कार किया है। अर्जुन सिंह ने अपनी किताब में पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव के बारे में लिखा है।
अर्जुन सिंह का कहना कि राजीव गांधी की हत्या के बाद मैं, एम.एल. फोतेदार और विंसेंट जॉर्ज ने पार्टी अध्यक्ष के लिए सोनिया गांधी के नाम पर विचार किया। अर्जुन सिंह के मुताबिक वो सबसे पहले सीताराम केसरी के पास ले गए। सीताराम केसरी से हरी झंडी मिलने के बाद अर्जुन सिंह, केसरी और फोतेदार नरसिम्हा राव के पास पहुंचे।
अर्जुन सिंह ने लिखा है, हमारा सुझाव सुनकर राव कुछ मिनट तक शांत भाव भंगिमा लिए मौन रहे, फिर अचानक गुस्से से चीख पड़े और उनके शब्दों के मायने कुछ इस तरह से थे. 'क्या यह जरूरी है कि कांग्रेस पार्टी के साथ ऐसी रेलगाड़ी की तरह पेश आया जाए जिसके सारे डिब्बे नेहरू-गांधी खानदान के इंजन से खींचे जाते रहेंगे या कोई अन्य विकल्प नहीं है? राव के गुस्सा जाहिर करने के अंदाज को देखकर मैं ठगा सा रह गया। राव को लगा कि उन्होंने बहुत कम वक्त में बहुत ज्यादा कह दिया और नेहरू खानदान के विरोध की अपनी भावना को जल्दबाजी में उजागर कर दिया। उन्होने संभलते हुए पूछा- इस सुझाव से कोई नुकसान नहीं होने वाला, लेकिन क्या वो इसे स्वीकार करेंगी।
अर्जुन सिंह ने इस किताब में अपनी वफादारी तो साबित कर दी है, लेकिन उन लोगों की भूमिका पर भी सवाल उठ खड़े हुए हैं जो उनकी गुडलिस्ट में नहीं थे। तय है कि अर्जुन सिंह की किताब से कई घटनाओं पर नई बहस छिड़ गयी है। अर्जुन सिंह की किताब बाबरी मस्जिद की घटना का जिक्र है। इस दौरान उन्होंने नरसिम्हा राव पर नीरो जैसी भूमिका में रहने का आरोप लगाया। अयोध्या की हलचल पर प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव की भूमिका का भी अर्जुन सिंह की किताब में विस्तार से जिक्र है। अयोध्या कांड पर प्रधानमंत्री नरसिम्ह राव सभी को खुश करने की कोशिश में थे। एक मौके पर तो उन्होने आरएसएस प्रमुख से खुद जाकर मिलने का फैसला कर डाला। मैंने इस प्रस्तावित कदम पर आपत्ति जताई और कहा कि इससे सरकार की बड़ी बदनामी होगी। अब तक मेरे और प्रधानमंत्री के मतभेद सार्वजनिक हो चुके थे।
अर्जुन सिंह ने 6 दिसंबर के पहले हुई हर हलचल का किताब में विस्तार से जिक्र किया है। उनका दावा है कि नरसिम्हा राव ने पूरे मामले को गंभीरता से नहीं लिया। अर्जुन सिंह ने ये भी लिखा है उन्होने इस बात की चेतावनी पहले ही दे दी थी कि किसी भी वक्त बाबरी मस्जिद का ढांचा गिराया जा सकता है। अर्जुन सिंह लिखते हैं, 'मैंने मुक्तसर से प्रधानमंत्री आवास पर दोपहर में फोन लगाया। मुझे बताया गया कि वो किसी से बात नहीं कर सकते। उन्होने खुद को एक कमरे में बंद कर लिया है और हमें निर्देश दिए गए हैं कि उन्हें किसी भी स्थिति में डिस्टर्ब नहीं किया जाए।
मेरे दिमाग में अचानक नीरो की वो मशहूर छवि कौंध गई कि जब रोम जल रहा था वह बांसुरी बजा रहा था।
अर्जुन सिंह और नरसिम्हा राव के मतभेद जगजाहिर थे। अर्जुन सिंह को इस बात का भरोसा था कि गांधी परिवार से उनकी वफादारी कभी ना कभी रंग जरूर लाएगी, लेकिन 2009 में कैबिनेट लिस्ट से अर्जुन सिंह का नाम गायब था। अर्जुन सिंह ने लिखा है कि इससे उन्हे भीतर तक चोट लगी थी। बेशक अर्जुन सिंह के लिए मानना मुश्किल था कि उनकी पारी अब खत्म हो चुकी है। अर्जुन सिंह अब नहीं है, ये बात और है कि पन्नों में दर्ज सियासत की कहानियों के साथ कई नए खुलासे होंगे, एक सच के पहलू सामने आएँगे।
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