बिहार में लगता है नागों का अनोखा मेला. - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।

सोमवार, 9 जुलाई 2012

बिहार में लगता है नागों का अनोखा मेला.


आपने नाग पंचमी के मौके पर नाग पूजन के विषय में सुना और देखा होगा परंतु बिहार के समस्तीपुर जिले में नाग पंचमी के मौके पर नाग की पूजा करने की अनोखी प्रथा है। इस दिन नाग के भगत (पुजारी, भक्त) गंडक नदी या पोखर में डुबकी लगाकर नदी से सांप निकालते हैं और उसकी पूजा करते हैं। या यूं कहिये कि नदी के किनारे सांपों का मेला लगता है। 

समस्तीपुर के विभूतिपुर प्रखंड के सिंघिया और रोसड़ा गांव में भगत जहां गंडक नदी में डुबकी लगाकर सांप निकालते हैं वहीं सरायरंजन में एक प्राचीन पोखर से सांप निकालकर उसकी पूजा करते हैं। इस दौरान इस स्थानों पर नाग पंचमी के दिन लोगों का मजमा लगता है।

नाग पंचमी रविवार को इस इलाके में धूमधाम से मनाया गया। इस मौके पर इस अनोखी परम्परा को देखने के लिए बिहार के ही लोग नहीं बल्कि अन्य राज्यों के लोग भी यहां पहुंचते हैं और इस अभूतपूर्व नजारे को देखते हैं।
गंडक के तट पर सैकड़ों भगत जुटते हैं और फिर नदी में डुबकी लगाकर नाग सांप को नदी से निकाल आते हैं। वे कहते हैं कि सांप उनको कोई नुकसान नहीं पहुंचाता।

सिंघिया गांव में यह काफी प्राचीन प्रथा है। इस इलाके में यह प्रथा करीब 300 वर्ष से चली आ रही है। वे बताते हैं कि उनके भगवान नाग होते हैं। वे कहते हैं कि वे पिछले 25 वर्षों से यहां जुटते हैं और सांप निकालते हैं। भगतों द्वारा निकाले गए सांपों को नदी के किनारे ही बने नाग मंदिर या भगवती मंदिर में ले जाया जाता है और फिर उनकी सामूहिक रूप से पूजा कर उन्हें दूध और लावा खिलाकर वापस नदी में छोड़ दिया जाता है। इस दौरान सांप को दूध और लावा देने के लिए गांव के पुरूष और महिलाओं की भारी भीड़ भी यहां लगी रहती है। पूजा के दौरान वहां कीर्तन और भजन का भी कार्यक्रम चलते रहता है। यह परम्परा अब इन गांवों में सभ्यता बन गई है। वे कहते हैं कि नाग पंचमी के दिन नागों की पूजा करने से केवल खुद की नहीं बल्कि गांव और क्षेत्र का कल्याण होता हैं।

गाँव वालों का कहना है कि इससे सांप को कोई नुकसान नहीं होता है। यह तो भगवान और भक्त का एक दूसरे के प्रति समर्पण की भावना है। जो भी व्यक्ति यहां अपनी मुराद मांगते हैं उसकी सभी मुरादें पूरी हो जाती हैं। वे कहते हैं इसे कई लोग सांपों के प्रदर्शन की बात कहते हैं परंतु यह गलत है। यहां कोई प्रदर्शन नहीं होता बल्कि पूजा होती है। ये अलग बात है कि दूर-दूर से लोग इस पूजा को देखने के लिए यहां एकत्र होते हैं।

कोई टिप्पणी नहीं: