हमारा देश भी महान है औऱ एक अरब की आबादी वाले इस देश का नेतृत्व एक ऐसा रीढ़-विहीन नेता कर रहा है जो भारतीय राजनीति के दांव-पेंच को समझता नहीं और जो 2G से लेकर राष्ट्रमंडल घोटालों और हाल में आए कोयला घोटालों पर चुप्पी साधे रहता है और धृतराष्ट्र की तरह उसे सिर्फ अपनी पारी से मतलब है देश की अर्थव्यवस्था रसातल में जा रही है। गरीब और गरीब होते जा रहे हैं और अमीर और अमीर शायद व्यवस्था ही कुछ इस तरह की है। जो-जो नेतागण राहुल के राह का कांटा बन सकते थे, सोनिया ने उनको एक-एक करके निपटा दिया और इसका परिणाम कांग्रेस को आज नहीं भविष्य में मिलेगा। जब रावण की तरह रहा ना कुल कोउ रोवण हारा वाली स्थिति होगी। जल्द ही, वो दिन ज्यादा दूर नहीं है।
केंद्र में बैठी सरकार अपने लाभ के लिए, योजना आयोग और सीबीआई का उपयोग विरोधियों को हरकाने व अपने समर्थन पाने के लिए कर रही है। पहले की भी सरकारों ने ऐसा ही किया है इसलिए किसी एक पार्टी को दोष नहीं दे सकते, लेकिन इस देश में चूंकि ज्यादा दिन तक कांग्रेस की सरकार रही है सो उसकी जिम्मेदारी ज्यादा बनती है। चाहे केंद्र में वाजपेयी की सरकार रही हो तब आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री, चंद्रबाबू नायडू और उड़ीसा के मुख्यमंत्री, नवीन पटनायक ने अपने समर्थन की पूरी कीमत केंद्र से वसूली थी। उस समय केंद्र की सरकार में शामिल नीतीश कुमार बिहार के लिए कोई भी प्रोजेक्ट लागू नहीं करा पाए क्योंकि उन्हें तब लालू को इसका श्रेय मिलने का भय था। राजनीति का स्तर इस देश में कितना गिर चुका है।
यही नीतीश कुमार हैं जो बिहार में राष्ट्रीय उच्च पथों (नेशनल हाईवे) के निर्माण के लिए केंद्र सरकार से लगातार पिछले पांच सालों से पैसे मांग रहे थे लेकिन उन्हें कोई मदद नहीं मिली। यहां तक कि राज्य सरकार ने अपने पैसे से जिन पथों की मरम्मत करवाई उसका भी पैसा नहीं मिला। केंद्र से पैसे मांगने पर योजना आयोग झिड़की लगा देता था और राष्ट्रपति चुनाव में नीतीश की पार्टी के द्वारा प्रणव मुखर्जी को अपना समर्थन व्यक्त किए जाने के बाद स्थितियां इस कदर बदली कि योजना आयोग का उपाध्यक्षस, मोंटेक सिंह अहलूवालिया नीतीश कुमार के साथ डिनर करते हैं औऱ उन्हें सीढ़ियों से नीचे चोड़ने आते हैं तथा इसके अलावा राज्य सरकार द्वारा मांगी गई 28 हजार करोड़ की योजना को मंजूरी देने के बाद पटना में गांधी सेतु के बगल में गंगा नदी पर एक और पुल के निर्माण की मंजूरी भी दे देते हैं। यानि राष्ट्रपति चुनाव में वोट देने की कीमत नीतीश कुमार ने बखूबी वसूल कर ली।
कभी लालू यादव भी केंद्र सरकार को अपना समर्थन देकर इसकी कीमत वसूल कर चुके हैं तथा अपने विरुद्ध, चारा घोटाले में केंद्रीय जांच ब्यूरो की जांच को धीमा करवाने में कामयाब रहे थे। ये है इस देश की राजनीति की सच्चाई। विपक्षी पार्टियों में इस कदर फूट है कि वे अपनी पार्टी के वरिष्ठ नेताओं में से एक-दूसरे को ही निपटाने में लगे हुए हैं और उन्हें नहीं मालूम कि इस तरह से वे किस तरह अपनी ही पार्टी का नुकसान कर रहे हैं। आखिर देश भरोसा किस पर करे।
राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति का चुनाव नजदीक है औऱ तमाम पार्टियां राजनीति के निचले स्तर पर जा चुकी है और अपनी डफली अपना राग गाने में व्यस्त हैं और दूसरी तरफ सोनिया गांधी अपनी पुत्र के राह के कांटों को एक-एक करके हटाने में कामयाबी हासिल कर रही है। राहुल प्रधानमंत्री बने इससे किसी को ऐतराज नहीं हैं लेकिन क्या वे इसके योग्य भी हैं या नहीं? क्या यह सही नहीं होता कि प्रधानमंत्री बनने से पहले वे मंत्री पद पर रहकर कुछ दिन पार्टी और राजनीति को अच्छी तरह से सीख लेते।
हरेश कुमार
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