जिधर देखो उधर भिखमंगे नज़र आते हैं - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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बुधवार, 11 जुलाई 2012

जिधर देखो उधर भिखमंगे नज़र आते हैं


बात आस-पास की हो या दूर की। हर कहीं भिखारियों के दर्शन सहज ही हो जाते हैं। यों अपने देश में जब से भीख देने का संबंध पुण्य और धरम से जुड़ गया है तभी से पुरुषार्थ की बजाय भीख पर जिन्दा रहने की प्रवृत्ति कुछ ज्यादा ही पनपती जा रही है। भीख का संबंध गरीबों और अभावग्रस्तों से ही हो, यह जरूरी नहीं, आजकल कोई भी बड़े सम्मान से भीख मांगने का आदी होता जा रहा है।  जो धन-वैभव से भरा-पूरा है वह भी, आधा भरा है वह भी, और जो पूरा नंगा-खाली है उसका तो पहला अधिकार है ही। वो जमाना गुजर गया जब लोग पुरुषार्थ की कमाई में विश्वास रखते थे और परायी सामग्री या धन को छूना तक अपराध समझते थे। उस जमाने में किसी का एक पैसा या और कोई सामग्री लेना तक ऋण समझा जाता था और यह मान्यता थी कि लिया हुआ पैसा या सामग्री आखिर कभी न कभी लौटानी ही पड़ती है और इस जन्म मेंं नहीं लौटा पाये तो इसे चुकाने भर के लिए फिर जन्म लेना पड़ सकता है।

इतने ऊँचे आदर्शों भरे जनजीवन के बीच सामाजिक जीवन भी आदर्शों से भरा था और सभी लोग अपने पुरुषार्थ पर भरोसा करते थे, दूसरे की पाई तक लेना हराम समझते थे। कालान्तर में ये आदर्श मिट्टी में मिलते चले गए और आज तो इन आदर्शों का जनाजा तक निकल चुका है। अब तो हम नैतिकता और आदर्शों की मौत पर संवेदनाएं व्यक्त करते हुए घड़ियाली आँसू बहाने के सिवा कुछ नहीं कर पा रहे हैं। यों भिखारी शब्द व्यापक अर्थों से भरा हुआ है लेकिन सीधे साधे शब्दों में कह दिया जाए तो वह हर शख़्स भिखारी है जो भीख मांगता है। भीख मांगने वालों में तीन किस्मों के लोग हैं। जो जरूरतमन्द हैं उन्हें भीख मांगने का अधिकार है, दूसरे किस्म के लोग वे हैं जिनसे भीख मंगवायी जाती है। तीसरी किस्म उन लोगों की है जिन्हें भीख की कोई जरूरत नहीं है लेकिन भीख के सहारे वे अपने धन भण्डारों और संसाधनों को निरन्तर बढ़ाते रहते हुए ऎशो आराम के तमाम साधनों और संसाधनों में रमे रहते हुए प्रतिष्ठा पाना चाहते हैं।

तीसरी किस्म के भिखारियों की संख्या खूब है और इनमें से कइयों से हमारा पाला रोज पड़ता रहता है। ये भीख लेने के लिए खूब लार टपकाते हैं और वे हर काम करते हैं जो भिखारी करते हैं मगर इन लोगों को भिखारी कह दो तो फिर इतने गुस्से हो जाते हैं कि बस। दुनिया में सबसे बड़ा भिखारी वह है कि जो बिना जरूरत के भीख मांगता है। भगवान ने जो दिया है, जो मिल रहा है उसमें इन्हें संतोष नहीं है और ये चाहते हैं कि पूरी दुनिया का सुख और समृद्धि उनके पास हो। दुनिया भर की समृद्धि पर अपना हक़ जमाने के लिए ये जिन्दगी भर कई तरह के नापाक हथकण्डे अपनाते रहते हैं। ये लोग स्वीकार करें या न करें मगर दुनिया में वे सारे लोग भिखारी कहने लायक हैं जो बिना पुरुषार्थ के पैसा मांगते हैं, उपहार मांगते हैं या और कुछ। जरूरी नहीं कि ये भिखारी आम लोगों में ही हों, भिखारियों के सम्प्रदाय में अमीरों या गरीबों, बड़ों-छोटों, आम और ख़ास आदि में कोई फर्क नहीं होता।भिखारी कोई भी हो सकता है। तनख्वाह पाने वाला भी हो सकता है या दिहाड़ी वाला या बिना तनख्वाह के गुजर-बसर करने वाला भी। किसी भी पद पर होने वाला आदमी भिखारी हो सकता है। यह पुरुष भी हो सकता है और स्त्री भी, और बीच वाले भी।

भिखारी सार्वकालिक, सार्वजनीन और सर्वसुलभ होते हैं। भिखारियों में दो किस्में प्रमुख होती हैं। एक में वे आते हैं - ‘जो दे उसका भला, न दे उसका भी भला’ कहकर मस्त रहते हैं। दूसरी किस्म उन भिखारियों की है जो न शालीन कही जाती है न स्वामीभक्त। ये लोग भीख लेकर ही मानेंगे और न मिली तो काम अटका देंगे, जबरन भीख लेकर ही मानेंगे और भीख पा लेने तक किसी को पीछा नहीं छोड़ते। इस किस्म में वे लोग भी आते हैं जिन्हें मोटी-मोटी तनख्वाह मिलती है लेकिन इनका घर चलता है सिर्फ भीख से। इस भीख को गरिमा और गौरव प्रदान करते हुए ऊपरी कमाई का वरक लगाया जा सकता है। इन लोगों को तनख्वाह ही इसी बात की मिलती है कि लोगों के काम करें, मगर बेचारे इन गरीबों का पेट ही इतना बड़ा होता है कि इससे पूरा नहीं पड़ता। ऎसे में इन गरीबों को भीख देने का पुण्य कुछ तो लगता ही होगा। इनसे काम कराना होगा तो भीख तो देनी ही पडे़गी।
फिर इस किस्म के लोग हर की पौड़ी तक भी आपकी जेब काटने के लिए हाजिर रहा करते हैं। कई गलियारे ही ऎसे हैं जिन्हें हर की पौड़ी से कम नहीं माना जा सकता। खुद की कमाई सुरक्षित, और पूरा जीवन भीख के सहारे ही चल निकलता है।

आजकल तो मन्दिरों और मठों के बाहर, तीर्थों के तटों पर और गांव-शहरों व कस्बों मेें भांति-भांति के गलियारों से लेकर महानगरों तक भिखारियों का जमघट लगा हुआ है। कोई भिखारी दिखता है, कोई दिखता नहीं, पर होता है बहुत बड़ा भिखारी। भिखारियों के अपने संगठन हैं, डेरे हैं और इलाके बंटे हुए हैं। देश की काफी कुछ अर्थव्यवस्था पर भिखारियों का कब्जा है। जमाने में जहां कहीं आजकल कोई काम करना हो या कराना हो, सब तरफ कहीं चुपके से, कहीं खुले आम भीख की मांग बनी रहने लगी है। कई लोग तो ऎसे हैं जिन्हें भिखारी कह दो या कमीना कुछ भी, इन्हें तो भीख चाहिए।  इन्हें पैसा दे दो, फिर चाहे जो काम कर लो या इनसे करवा लो। आजकल हर तरफ भिखारियों का जमघट है। जमाने में रहना है तो भीख देनी पड़ेगी। बेचारे कुछ लोग ही ऎसे बचे हैं जो भिखारियोें के मायाजाल से मुक्त हैं। इन लोगों के लिए ही कबीर साहब ने कहा है - ‘मंगन से क्या मांगियें, बिन मांगे सब होय, अनहोनी ना होय, होनी होय सो होय।’

आजकल भिखारी किसी भी वेश में अपने सम्मुख कहीें भी प्रकट हो सकते हैं। जहाँ कहीं कोई भिखारी मिले, उसके प्रति श्रद्धा व्यक्त करें और सोचें कि आदमी भीख पाने भर के लिए किस कदर गिड़गिड़ाता है, अभिनय करता है और आदमीयत को बेच डालता है।


---डॉ. दीपक आचार्य---
9413306077

1 टिप्पणी:

SAFAR ने कहा…

dr. deepak ji saadar abhivadan,
bahut hi shandar post, dho dala hai aapne. badhai.
http://siddequi.jagranunction.com