अव्यवस्थाओं पर यात्री ने मुख्यमंत्री को लिखा पत्र...
उत्तराखण्ड की चारधाम यात्रा को जारी हुए दो महीने पूरे हो चुके हैं, लेकिन यात्री भगवान भरोसे यात्रा करने को मजबूर हैं। तमाम जोखिमों के बावजूद यात्री अपनी मन की मुराद पूरी कर चारधाम यात्रा भी पूरी कर रहे हैं। इस यात्रा के दौरान उत्तराखण्ड के बाहर से आने वाले यात्रियों के मन पर क्या बीती होगी और उत्तराखण्ड की कौन सी छवि वे अपने साथ लेकर गए होंगे यह बताना तो मुश्किल है, लेकिन एक बात सरकार को यह सोचने पर मजबूर कर देती है कि इस बार चारधाम यात्रा के दौरान जितनी मौतें हुई उतनी पहले कभी नहीं हुई। कुछ ही दिनों में राज्य में मानसून आने वाला है और बीते वर्ष राज्य में हुई भारी वर्षा से सबक लेते हुए राज्य सरकार ने अभी तक आपदा प्रबंधन के कोई पुख्ता इंतेजामात भी नहीं किए हैं। आने वाली बरसात कितने लोगों की जान लेगी यह बताना भी मुश्किल है लेकिन सरकार के आपदा प्रबंधन के दावे जरूर खोखले नजर आ रहे हैं।
चारधाम यात्रा से लौटने के बाद एक स्थानीय श्रद्धालु वेद भदोला ने बताया कि चार धाम यात्रा मार्ग के चौड़ीकरण के बाद मलवा आज भी सड़कों पर ज्यों का त्यों पड़ा है जो यातायात में व्यवधान तो पैदा कर ही रहा है वहीं इससे उड़ने वाली धूल से यात्रियों का दम घोट रहा है। भदोला का मानना है कि वैसे यह चारधाम मार्ग पर मलवा यात्रा आरंभ होने से पहले उठा लिया जाना चाहिए था, जो कि रात्रि को उठाया जा सकता था, क्योंकि उस समय यातायात नहीं होता है लेकिन सड़क बनाने वाली संस्था इस ओर आंखें मूंदे बैठी है।
उन्होंने चार धाम मार्ग पर फैली अव्यवस्थाओं से क्षुब्ध होकर एक पत्र मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा को भी भेजा है। उन्हांेने बताया कि यात्रा मार्ग पर कितने वाहनों का एक दिन में परिचालन होना चाहिए और इनकी कितनी संख्या होनी चाहिए इस पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है। उन्होंने बताया कि चारों धामों के गंतव्य पर पहुंच जाने के बाद सबसे विकट समस्या वाहनों के पार्किंग को लेकर है। पार्किंग पर अव्यवस्थाएं अटी पड़ी हैं। केदारनाथ धाम जाने के लिए गौरीकुण्ड और सोनप्रयाग में पार्किंग व्यवस्थाओं का सबसे बुरा हाल है। रामपुर से सीतापुर और सोगप्रयाग होते हुए वाहन गौरीकुण्ड से जा पाते हैं। रामपुर से गौरीकुण्ड तक 10 किमी का रास्ता तय करने में वाहनों को पांच घंटे का समय लग रहा है, लेकिन गौरीकुण्ड में यात्रियों को वाहन से उतरने में पार्किंग न होने के कारण वाहनों में बैठे यात्रियों को मात्र दो या तीन मिनट ही मिलते हैं। ऐसे में यदि बसों में 27 वृद्ध यात्री हों तो क्या वे इतने कम समय में बसों से उतर सकते हैं। वहीं चार धाम यात्रा मार्ग पर होटलों की मनमानी से भी यात्रियों को दो-चार होना पड़ता है। अधिकांश होटल स्वामी होटलों के आरक्षित होने की बात कर यात्रियों को मनमाने दरों पर कमरे उपलब्ध कराते हैं। इस पर उनका सुझाव था कि चारधाम यात्रा शुरू होने से पहले यात्रा मार्ग पर स्थित होटलों को वर्गीकृत कर उनकी दरंे तय कर दी जानी चाहिए ताकि यात्रियों की जेबों पर डाका न डाला जा सके। चारधाम यात्रा मार्ग पर भोजनालयों की मनमानी और भोजन हाईजैनिक है कि नहीं इसे भी कोई देखने वाला नहीं है। जिससे यात्रियों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इतना ही नहीं राज्य के चारधाम यात्रा के दौरान अजैविक कचरे का भी इस्तेमाल धड़ल्ले से किया जा रहा है। पॉलिथिन, मिनरल वॉटर की बातलें, प्लास्टिक के गिलास यात्रा मार्ग पर स्थित तमाम कस्बों सहित यात्रा मार्ग में बिखरे पड़े दिखाई देते हैं। इनके निस्तारण के लिए कोई व्यवस्था कहीं भी नहीं दिखाई दी। पूरे यात्रा मार्ग पर कहीं भी स्वास्थ्य केंद्र देखने को नहीं मिले, लेकिन प्रत्येक धाम से आठ-दस किमी पहले सुविधाओं की सूचनाएं देते बोर्ड जरूर दिखाई दिए, लेकिन यह सुविधाएं कहां है यह बताने वाला कोई नहीं।
मुख्यमंत्री को दिए पत्र में कहा गया है कि अभी बहुत दिनों पुरानी बात नहीं है, जब आपके राज्य के पूर्ववर्ती मुख्यमंत्री ने हरिद्वार महाकुंभ के सफल आयोजन पर नोबल पुरस्कार मिलने की बात कही थी और अब अगले वर्ष नंदादेवी राजजात यात्रा को राज्य सरकार विश्व स्तरीय आयोजन बनाने की भी कोशिश कर रही है। लेकिन हर साल चलने वाली यात्रा को लेकर राज्य सरकार में इतनी लापरवाही क्यों है यह विचारणीय है।
(राजेन्द्र जोशी)
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