उत्तराखण्ड की राजनीति के भीष्म पितामह कहे जाने वाले एनडी तिवारी के दामन पर आज कोर्ट के फैसले के बाद ऐसे दाग लग गए जिन्हे धो पाना उनके लिए बेहदमुश्किल डगर होने के साथ उनकी राजनैतिक जीवन की गाथा पर भी प्रश्न चिन्ह लगा दिया। दिल्ली हाइकोर्ट के फैसले के बाद तिवारी की राजनैतिक पारी अब विवादो में घिरती हुई नजर आ रही है। कांग्रेस पूर्व मे ही तिवारी से किनारा करने के साथ साथ उन्हे अकेला छोड़ चुकी है, और 2014 के चुनाव को देखते हुए इस बात की सम्भावाएं बेहद कम है कि कांग्रेस तिवारी को गले लगाकर उत्तराखण्ड में राजनैतिक नुकसान नहीं होने देना चाहती। वर्ष 2008 में रोहित शेखर ने अर्जी डालकर दिल्ली हाइकोर्ट में एनडी तिवारी ही उनके पिता हैं, जिसके बाद से लेकर इस मामले में न्यायालय में सुनवाई चल रही थी। अप्रैल 2012 में दिल्ली हाइकोर्ट के दो जजों की डिविजन बैंच ने तिवारी को खून के नमूने देने के निर्देश दिए थे जिस पर 29 मई को पुलिस प्रशासन की मदद से देहरादून में एनडी तिवारी , रोहित शेखर उज्जवला शर्मा के नमूने लिए गए थे और दिल्ली हाइकोर्ट मे डीएनए रिपोर्ट आने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। जैविक पुत्र के विवाद को लेकर एनडी तिवारी वर्ष 2008 से अब तक इस लड़ाई को कोर्ट में लड़ रहे थे और तिवारी के विवादों को जन्म हैदराबाद में राजभवन के दौरान खुलकर देश के सामने आया था। हैदराबाद के सीडी कांड में तिवारी की प्रतिष्ठा पूरी तरह दांव पर लग गई थी और तब कांग्रेस हाइकमान ने तिवारी को हैदराबाद के राज्यपाल पद से हटाकर उनसे दूरियां बना ली थीं। तभी से एनडी तिवारी देहरादून स्थित एफआरआइ के बंगले ‘‘अनंत वन‘‘ में अपना जीवन व्यतीत कर रहे थे।
उत्तराखण्ड की राजनीति में तिवारी को यहां की जनता का ऐसा आशीर्वाद प्राप्त था कि तिवारी का कुमाऊं में बेहद बोलबाला था। लोकसभा चुनाव से लेकर विधानसभा चुनाव में 2002 में उत्तराखण्ड की सत्ता के शीर्ष नेता के रूप् में उदयमान होने के बाद तिवारी ने राज्य के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर पांच साल तक विकास कार्य को किया गया। इतना ही नहीं हरिद्वार, उधमंसिंहनगर, सितारगंज, में उद्योगांे को स्थापित कर वहां रोजगार के नए अवसर पैदा किए गए लेकिन हरीश रावत कैम्प लगातार पांच साल तक तिवारी के खिलाफ राजनैतिक षड़यंत्र करता रहा लेकिन इस षडयंत्र के बाद भी तिवारी पूरे पांच साल तक प्रदेश में सत्ता को चलाने का काम करते रहे। 2007 के विधानसभा चुनाव में सत्ता परिवर्तन के बाद तिवारी को हैदराबाद के राज्यपाल पद पर कांग्रेस हाइकमान द्वारा बैठा दिया गया और उसके बाद से तिवारी के दामन पर चरित्र हनन के आरोप लगने शुरू हो गए। चरित्र हनन के आरोप लगते ही तिवारी विवादो में घिरते गए और उनका राजनैतिक कद कमजोर होता चला गया। उत्तराखण्ड की जनता के साथ देश की जनता के बीच भी जो छवि तिवारी की थी उस पर नकारात्मक सोच उतपन्न होती चली गई। उज्जवला शर्मा के पुत्र रोहित शेखर ने एनडी तिवारी को अपना जैविक पिता बताते हुए हाइकोर्ट में वाद दायर किया। कई सालों तक कोर्ट में चले वाद के बाद न्याय का फैसला आने के बाद रोहित शेखर ने कहा कि उनका विश्वास शुरू से ही न्याय पालिका पर था और अपने हक के लिए उन्होने न्याय के मंदिर में जो गुहारलगाई थी आज इतने सालों बाद उस पर फैसला आया है और इस फैसले के बाद देश के अन्य राजनेताओं को भी सचेत हो जाना चाहिए कि वह देश के अंदर चरित्र हनन की राजनीति के बजाए विकास की राजनीति पर ध्यान दें। उन्होने कहा कि एनडी तिवारी को अपना पिता बनाने के लिए उन्हें इतने सालों तक जो यातनाएं झेली हैं उसे कभी भी नहीं भुलाया जा सकता। हाई कोर्ट के डीएनए टैस्ट की जांच रिपोर्ट आने के बाद अब तिवारी का अगला कदम क्या होगा इसे लेकर देश भर के राजनेताओं की निगाहें उस पर लगी हुई हैं । पुलिस प्रशासन ने सुरक्षा की दृष्टि से तिवारी के आवास के आस पास सुरक्षा का घेरा बड़ा दिया है ।
वहीँ पूर्व मुख्य मंत्री तिवारी के विशेष कार्याधिकारी ए डी भट्ट ने निर्णय आने के बाद उनके पत्र को पढ़कर सुनाया जिसमें तिवारी ने कहा था कि किसी भी व्यक्ति को उसके जीवन को उसके तरह से जीने का हक है तिवारी ने आरोप लगाया कि उन्हें बदनाम करने के लिए एक सोची-समझी साजिश का शिकार बनाया गया है। उन्होंने कोर्ट के फैसले का सम्मान करते हुए कहा, ‘‘ मैं विवादों से दूर रहना चाहता हूं और इस मामले को ज्यादा तूल नहीं देना चाहता था। यह निजी मामला है, इसे तूल नहीं दिया जाना चाहिए। मेरी सहानुभूति रोहित शेखर के साथ है।
राजेन्द्र जोशी
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