सूरज से दूरी न बनाए रखें... - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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मंगलवार, 31 जुलाई 2012

सूरज से दूरी न बनाए रखें...

वरना छा जाएगा जीवन में अँधियारा !!!


जो सूरज पूरे विश्व को प्रकाशमान करता है उससे हम दूरी बनाने लगे हैं। यह हमारा और आने वाली पीढ़ियों का दुर्भाग्य ही है कि हम सन राईज की बजाय सन सेट देखने में ज्यादा रुचि दिखाने लगे हैं। जो लोग अंधेरों को पसन्द करते हैं वे जरूर मलीन और मैले विचारों से भरे हुए होते हैं। भले ही वे साफ धुले हुए वस्त्र पहनें, आभूषणों और सौन्दर्यप्रसाधनों से लदे रहें, इत्र-फुलैल चुपड़कर गंध फैलाएं और ब्यूटी पार्लरों में जाकर अपने सौन्दर्य को बहुगुणित करने के लाख जतन करते रहें, मगर सूरज से सायास दूरी रखने का सीधा सा मतलब है अंधेरा पसन्द करना। व्यक्ति अपने पूरे जीवन में शरीर से वही व्यवहार करना चाहता है जो उसके मन में होता है। यह मन पूर्व जन्म के संस्कारों, चेतन और अवचेतन में छिपी हुई विचार श्रृंखलाओं, कल्पना ग्रंथियों और सम-सामयिक उद्दीपनों से प्रेरित होकर ही संचालित होता है। इसलिए कोई भी व्यक्ति अपने जीवन में जिन चीजों को पसन्द या नापसन्द करता है, उसका मूल उसके अन्तस में बीज रूप में छिपा हुआ होता है। यह मन ही है जो इन बीजों को अंकुरण के लिए उत्प्रेरित करता है और ज्ञानेन्द्रियों व कर्मेन्द्रियों के सहारे उन अमूर्त्त विचारों को मूर्त्त रूप प्रदान करता है। बेलगाम मन पर अंकुश रखने वाले लोग विवेक बुद्धि का इस्तेमाल करते हुए अपने काम करते हैं जबकि बहुत से लोग ऐसे होते हैं जिन्हें मन अपने हिसाब से चलाता है और वे बिना कुछ प्रतिक्रिया किए अपने आप चलते रहते हैं। मन के वशीभूत होकर चलने वाले ऐसे लोगों की संख्या आजकल खूब है।

पिछले कुछ समय से गांव-कस्बों से लेकर महानगरों तक भयंकर रोग पसरता जा रहा है। जो सूर्य ब्रह्माण्ड के कोने-कोने को प्रकाशित करता हुआ रोजाना नवचेतना और जीवन ऊर्जा का संचार करता है उस सूरज से लोग सायास दूरी बनाने लगे हैं। यह दूरी इस बात को इंगित करती है कि हम अपनी परम्परागत जड़ों और संस्कृति तथा सभ्यता से पृथक हो चुके हैं और हमारी स्थिति बाढ़ में इधर-उधर लक्ष्यहीन होकर भटकने वाले तिनकों की तरह हो गई है। पंच महाभूतों और नैसर्गिक ऊर्जाओं के पुनर्भरण के लिए हर प्राणी के लिए अन्य तत्वों की ही तरह सूरज की निगाह पाने की अनिवार्यता स्वयंसिद्ध है। लेकिन आजकल लोग कृत्रिम ब्यूटी संसाधनों के इतने दीवाने हो गए हैं कि गोरेपन में निखार लाने और शरीर को सन बर्न से बचाने के लिए सूरज की रश्मियों से अपने आपको बचाकर चलने में विश्वास रखने लगे हैं। सौन्दर्याभिलाषी लोग इसके लिए पूरे जिस्म को जात-जात के कपड़ों से लपेट कर चलने लगे हैं। कइयों को तो सूरज से इतना डर घुस गया है कि पूरा शरीर ढक लेते हैं और नकाबपोश की तरह विचरण करने के आदी हो गए हैं। इन्हें लगता है कि सूरज की दृष्टि पड़ गई तो उनकी सुन्दर सी देह काली पड़ जाएगी और सन बर्न का खतरा तो है ही। एक जमाना था जब सूरज को नमस्कार और अर्घ्य चढ़ाए बगैर दिन की शुरूआत तक नहीं होती थी। एक जमाना आज का है जब सूरज से कैसे बच कर रहा जाए, इस बात को लेकर सारे जतन किए जा रहे हैं । जिन लोगों के जीवन का सर्वोपरि मकसद ब्यूटी पाना और दिखाना रह गया है वे शायद यह भूल गए हैं कि पुराने जमाने का नैसर्गिक सौन्दर्य इतना मुँह बोलता था कि पीढ़ियां दंग रह जाया करती थी। और आज रोजाना महंगे, विदेशी कॉस्मेटिक्स का लेप लगाने और सारे शरीर को ममी की तरह अवेर कर रखे जाने के बाद भी शाम को चेहरे का नूर उतर जाता है। कइयों का सवेरे उठते ही दर्शन पा लिया जाए तो फिर भूतों और पागलों को देखने की जरूरत ही नहीं पड़े। सौन्दर्य पाने की अंधी दौड़ में हमने अपने वास्तविक सौन्दर्य को कितना पीछे छोड़ दिया है उसका अंदाजा हमें नहीं है।
      
सूरज से दूरी रखने के लिए जतन करने वाले लोगों के मनोविज्ञान को समझा जाए तो यह उनके दैनंदिन व्यवहार से ही अच्छी तरह जाना जा सकता है कि मानवीय गुणों, घर-गृहस्थी और सामाजिक लोक व्यवहारों से कहीं ज्यादा उनका लक्ष्य सौन्दर्यशाली दिखना ही रह गया है और इसके लिए जो सूरज की अवमानना कर सकते हैं, वे जीवन में किसी भी हद तक जा सकते हैं। ऐसे लोगों को सौन्दर्य का भ्रम भले ही हो जाए, सूरज की रोशनी से वंचित लोगों का जीवन कभी सुखी नहीं रह सकता। सूरज की रोशनी में शरीर को निखारने और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने का अचूक सामर्थ्य होता है जो उन लोगों को पूरा प्राप्त नहीं हो पाता जो अपने आपको लपेट कर रॉल मॉडल की तरह दिखते हैं। इन लोगों को विटामिन-डी के साथ ही प्रकृति और सूरज से प्राप्त होने वाली विभिन्न प्रकार की जीवनीशक्ति तक पूरी प्राप्त नहीं हो पाती है और इसका सीधा असर पड़ता है उनके मन-मस्तिष्क और शरीर पर। ऐसे लोगों को बुढ़ापा जल्दी आने लगता है, बाल जल्द सफेद होते हैं, कम समय में ही चेहरे पर झुर्रियां आ जाती हैं और लाख कोशिशों के बावजूद कोई न कोई रोग इन्हें घेर ही लेता है। सूरज अपने आप में नेत्र ज्योति, बुद्धि और तेज-ओज का दाता है। सूरज से कन्नी काटने वाले लोगों में इन तीनों की कमी स्वतः आ जाती है। इनका शरीर भले गोरे होने का गर्व-अहंकार व्यक्त करता रहे, मगर ऐसे लोगों के जीवन में आनंद और आरोग्य का क्षरण आरंभ हो जाता है और बाद में ऐसी स्थिति आती है कि इन्हें कोई न कोई गंभीर बीमारी घेर लेती है। आजकल बड़े-बड़े प्रतिष्ठानों, दफ्तरों और संस्थानों आदि में हर कहीं खिड़कियों का कोई उपयोग नहीं रह गया है। सारी खिड़कियां बन्द कर, परदे लगा कर ऐसा बन्दोबस्त कर दिया जाता है कि सूरज की रोशनी का कोई कतरा तक प्रवेश नहीं कर पाए। ऊपर से एसी। इन हालातों में असंख्य लोग ऐसे पाए जाते हैं जिन्हें दिन भर में मुश्किल से दो-चार मिनट सूरज की निगाह में आने का मौका मिलता होगा। वरना सारे के सारे सूरज से इतनी दूरी बनाये रखते हैं कि सूरज की रोशनी और उनका मेल होना कभी-कभार संयोग से ही संभव है। इनमें छोटे से लेकर बड़े-बड़े वे सारे लोग आ गए हैं जिन्हें दुनिया चलाने का भ्रम है। 

सूरज की रोशनी से वंचित रहने वाले ऐसे लोगों की जिन्दगी देखें तो साफ पता चलेगा कि इन लोगों में उन सारे तत्वों की कमी है जो सूरज से प्राप्त होती है। इनकी आँखें समय से पहले ही जवाब दे देती हैं, चेहरे का ओज समाप्त हो जाता है, कोई गंभीर बीमारी घर कर लेती है और बुद्धि का तो कहना ही क्या। जो लोग सूरज से दूर होते हैं उनकी बुद्धि स्वाभाविक रूप से मलीन हो जाती है क्योंकि सूरज से दूरी का सीधा का अर्थ है अंधेरों के पसन्दगी। जो लोग सूरज की निगाह से बचने के आदी होते हैं उनमें बौद्धिक मलीनता के साथ ही निर्णय लेने की स्वाभाविक क्षमता समाप्त हो जाती है। ऐसे लोग थक भी जल्दी जाते हैं और कई प्रकार के व्यसनों से घिर जाते हैं। दिन उजाले के लिए है और सूरज इतना उजाला दे ही देता है कि आसानी से परिवेश की ताजी हवाओं के साथ खिड़कियां खुली रखकर काम किया जा सके। नैसर्गिक तत्वों की निरन्तर आवाजाही होती रहने से मनुष्य का मन-मस्तिष्क ताजा रहता है और प्राकृतिक तत्वों की भरपूर आपूर्त्ति भी लगातार बनी रहती है। लेकिन हम प्रकृति से दूरी बनाए रखने को स्टेटस सिंबोल मान बैठे हैं और निःशुल्क उपलब्ध नैसर्गिक तत्वों और प्रकृति के उपहारों को ग्रहण करने को हीन मान बैठे हैं। इससे दोहरा नुकसान हो रहा है। एक तो मनुष्य की उन क्षमताओं का पूरा उपयोग नहीं हो पा रहा है जो भगवान ने उसे दी है क्योंकि ताजगी के बिना बासी हवाओं और कृत्रिम रोशनी का उपयोग वेंटिलेटर की ही तरह है। दूसरा पर्याप्त रोशनी के होते हुए फैशनपरस्ती और अपने आपको बड़ा या प्रतिष्ठित दिखाने भर की गरज से बिजली का बेवजह अपव्यय राष्ट्र को कंगाल करने में लगा हुआ है। सूरज को सम्मान दें, उसकी निगाह में रहने को सौभाग्य मानें वरना जीवन में अंधियारा तो आएगा ही, उसे कोई नहीं रोक सकेगा। न ब्यूटी पॉर्लर, न डॉक्टर और दवाइयां।


---डॉ. दीपक आचार्य---
9413306077

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