उत्तराखंड प्रदेश को मूलता शांत प्रदेश के रूप में जाना जाता है, लेकिन एक ही दशक में इस पहाड़ी प्रदेश की आवोहवा बदली नजर आ रही है, ये बात सूबे का बासिंदा माने या ना माने लेकिन उत्तराखंड पुलिस प्रशासन के पास ऐसी लंबी चौड़ी लिस्ट है, जिन्हें डर है कि उनकी जान खतरे में है। ऐसे में इन लोगों ने पुलिस प्रशासन से गुहार लगाई है कि उन्हें सुरक्षा के लिए सुरक्षाकर्मी दिये जाय। लेकिन गजब देखिए कि पुलिस के पास जो लंबी चौड़ी लिस्ट है, उसमें ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं है, जिसकी जान सच में आफत में हो, ऐसे में पुलिस प्रशासन के सामने भी यक्ष प्रश्न खड़ा है कि किसे सुरक्षाकर्मी दिये जाय और किसे नहीं। इतना ही नहीं इस लिस्ट में से कई लोगों को पुलिस प्रशासन ने सुरक्षा कर्मी मुहैया कर दिये है, ये सभी वो लोग हैं, जिन्हें प्रदेश के माननीयों का आशीर्वाद है या फिर ये लोग ऊंची पहुंच रखते हैं, सुरक्षा मांगने वालों में कई मीडिया जगत के लोग भी हैं, जिन्हें लगता है कि सुरक्षाकर्मी रखना उनकी शान है। लेकिन सवाल ये है कि क्या प्रदेश की मित्र पुलिस जनता के लिए है या फिर कुछ खास किस्म के लोगों के रखवाली के लिए। सूबे में पुलिसकर्मियों का इस्तेमाल कानून व्यवस्था को बनाये रखने के बजाय, ऐसे लोगों की चौकीदारी के लिए किया जा रहा है, जो खुद कानून को ताक पर रख गलत धंधों में संलिप्त है।
इतना ही नहीं ये लोग पुलिस प्रशासन से मिले पुलिसकर्मियों की आड़ में गलत धंधे भी करते हैं, ऐसी कई शिकायतें भी सामने आयी थी कि जिसमें जमीन कब्जाने में पुलिसकर्मियों की मदद ली गई थी, लेकिन पुलिस प्रशासन है कि इन लोगों के आगे नतमस्तक हो रखा है। आखिर ऐसी क्या वजह है कि पुलिस प्रशासन प्रदेश की सुरक्षा को ताक पर रख इन लोगों की चौकीदारी करने में अपनी भलाई समझ रहा है, आखिर क्यों प्रदेश के पुलिस प्रमुख को सूबे की सुरक्षा की कोई चिंता नहीं है, और किस आधार पर पुलिस प्रशासन ने मोटी चमड़ी वाले कुछ खास लोगों को सुरक्षा के नाम पर उनके घर, दफ्तर में पुलिसकर्मीयों को तैनात किया हुआ है, क्यों पुलिस प्रशासन बिना हकीकत जाने फोकट में पुलिसकर्मियों को इनकी चौकीदारी करने के लिए भेज देता है, जहां पुलिसकर्मी का आत्मसम्मान भी दांव पर लगा रहता है, जहां एक पुलिसकर्मी को अपने मूल काम की जगह दूसरे के घर का काम तक करना पड़ता है। क्यों प्रदेश के नौजावनों को पुलिस की नौकरी करने के बाद भी किसी दूसरे के घर का काम करना पड़ रहा है। मतलब साफ है कि प्रदेश का युवा अपने ही सूबे में श्श्भुलाश्श् बन कर रहा गया है, यानि कि तमाम संघर्षों के बाद भी सूबे के युवाओं को करनी दूसरे की ही गुलामी है, पहले होटलों में बर्तन माज कर की जाती थी और अब सरकारी नौकरी करने के बाद भी दूसरों के घरों की चौकीदारी की जा रही है। लेकिन सवाल ये है कि क्या प्रदेश की मित्र पुलिस का काम महज कुछ दबंग लोगों की गुलामी करना रह गया है, सवाल कई हैं लेकिन क्या पुलिस प्रशासन कभी इसका जबाव भी देगा, प्रदेश में पुलिसकर्मियों की जो गत हो रही है उससे पुलिस की निचली कतारें सुलग रही है, और ये गुस्सा कभी भी लावे का रूप धारण कर सकता है। ऐसे में समय रहते प्रदेश के पुलिस प्रमुख को इस ओर ध्यान देना जरूरी है कि प्रदेश की मित्र पुलिस किसकी है और किसके लिये है?
राजेन्द्र जोशी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें