जो फूँकते रहते हैं हाथियों के कान !!!
यह जरूरी नहीं कि मनुष्य की सभी इन्दि्रयाँ स्वस्थ और कर्मशील ही बनी रहेंं। कई कर्मेन्दि्रयों और ज्ञानेन्दि्रयों पर खुद के नकारात्मक और उच्चाकांक्षी व्यक्तित्व का कोहरा छाया होता है तो कुछ जमाने की प्रदूषित हवाओं के कारण पैदा हो जाने वाली भुरभुरी सीलन, कभी परिवेश की जहरीली हवाएं तो कभी बाहरी तत्वों का अनुचित दखल। ये सारे कारण ही अहम् हैं जिनकी वजह से हमारे कर्म और व्यवहार में इन्दि्रयों का संतुलन गड़बड़ा जाता है और यह गड़बड़ी ही है जो हमारे पूरे व्यक्तित्व को बेड़ौल और विचित्र बना डालती है। यह असंतुलन फिर हमारे मन-मस्तिष्क और दिल की गहराइयों से लेकर हमारे प्रत्येक कर्म और चाल-चलन पर गहरा असर डालते हुए हमारी बॉड़ी लैंग्वेज तक की बुनियाद को हिला देता है। आंतरिक मनोवृत्तियाँ ही शरीर के अंगों और उपांगों से प्रतिबिम्बित होती हैंं। यों कहें कि हमारे मन की मलीनता और कुटिलता के साथ क्रूर व्यवहार, शोषक वृत्ति और घृणित सोच ही हमारे अंगों और उपांगों को विकृतियों के साथ ढाल देती है। यही कारण है कि व्यक्ति की चाल से चलन का गहरा रिश्ता हुआ करता है। जीवन व्यवहार के मनोविज्ञान से जानकार लोग इसीलिए व्यक्ति की दिखावट और शरीर की सँरचना को देखकर ही उसकी मानसिक स्थितियों का अंदाजा लगा देते हैं।
कुछ मामलों में यह अध्ययन और निष्कर्ष अपवाद हो सकता है किन्तु बहुधा व्यक्ति की मलीनता उसके व्यवहार और आँगिक भावों एवं मुद्राओं के प्रदर्शन से स्पष्ट परिलक्षित हो ही जाती है। आज समुदाय से लेकर पूरे परिवेश तक में ऎसे-ऎसे कुटिलमना और षड्यंत्रकारियों का जमघट लगा हुआ है जिनका पूरा जिस्म ही चलता-फिरता तोपखाना या कि डंपिंग यार्ड लगता है। इन लोगों का जन्म ही इसलिए हुआ है ताकि ये पूरी दुनिया की खबर रखते हुए दुनिया को अपने इशारों पर नचाने का भ्रम पैदा कर सकें। भले ही ये लोग दूसरों के इशारों पर बन्दरों की नाच करते रहेंगे, लेकिन अक्सर ये महा बुद्धिमान और कुटिल राजनीतिज्ञ की तरह हर क्षण इसी उधेड़बुन में लगे रहते हैं कि उनका महानतम अस्तित्व कैसे सिद्ध हो, किस तरह उनकी भूमिका को समुदाय या परिवेश में सराहा जाए, कैसे भेड़ों और सियारों की भीड़ में सबसे बड़ी और होशियार भेड़ और चालाक लोमड़ के रूप में उनकी पहचान कायम हो। आजकल ऎसे लोगों की पूरी दुनिया में भरमार है। फिर अपना इलाका तो अपने आप में विचित्र और विलक्षण है ही, ऎसे में इन विलक्षण और कुटिलबुद्धियों की भरमार न हो तो हमें कौन गौरव का अहसास कराएगा? ये कुटिल बुद्धि और विघ्नसंतोषी स्वभाव वाले लोग हर किस्म के जानवर और नरपिशाचों के गुण रखते हैं। इनमें और सारे पशुओं के गुण तो होते ही हैं, सर्वाधिक स्वभाव मूषकों से लिया हुआ होता है।
इस मायने में चूहों को इनका गुरु कहा जाए तो किसी को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। विचित्र वेशभूषा और रंग बदलने में माहिर ये लोग उन सभी क्षेत्रों में अपनी जगह बना लिया करते हैं जहाँ अपने लाभ का कुछ भी दिख जाए।
दूसरों का करोड़ों का नुकसान करके भी ये लोग अपना मात्र सौ-पचास का फायदा करने के लिए सदैव इतने तत्पर रहते हैं कि बस। इनकी जिन्दगी का हर क्षण उन्हीं सुराखों की तलाश में लगा रहता है जिनमें घुसकर ये हर मनचाहा माल उड़ा कर अपनी तरह खींच ला सकें। हमारे आस-पास खूब सारे मूषकों की विराट फौज है जिनमें कई प्रत्यक्ष तो खूब सारे परोक्ष मूषक हैं जिनका काम ही टोह में लगे रहना और मौका मिलते ही माल उड़ाने के सारे जतन कर डालना रह गया है। ये मूषक किसी भी परिस्थिति में जीने और काम सफलता पाने के सारे हुनरों में माहिर हैंं। मौका मिलते ही ये अपनी थूंथन से सब कुछ सोंख लेने से लेकर खींच कर ले आने तक में सिद्ध हैं। यही नहीं तो कहीं आपदा में फंस जाने या पकड़े जाने पर अपनी पूँछ को चँवर के रूप में हिला-हिलाकर भी फतह पा लेते हैं। मूषकों की एक प्रजाति तो हाथियों के साथ रहते-रहते उन सारी कलाबालियों में प्रवीण हो गई है जो महावत के बूते में ही होती हैं। यों भी हाथियों के कान कच्चे होते हैं। वे बाहर से दिखने में भले ही कैसे भी लगें, होते कच्चे ही हैं। यों भी जो जितना बड़ा होता है वह उतना ही ज्यादा कान का कच्चा होने लगता है क्योंकि कोई उनके कान खींचने वाला नहीं होता या कि वे ऎसे लोगों को साथ रखने से कतराते हैं जो कान खींचने में कोई शरम नहीं रखते हैं। वैसे भी हाथियों के कान खींचना किसी मामूली आदमी के बस में नहीं होता। पर हाथियों की परिक्रमा और जयगान करते रहने वाले और हाथियों की लीद को सूंघकर ताकत पाने वाले ये मूषक वह सब कुछ कर सकते हैं जो और कोई नहीं कर सकता। कभी हाथियों की सवारी करने से लेकर हाथियोंं के टोले में पीछे-पीछे घूमने से लेकर हाथियों को टॉर्च की रोशनी में यहां से वहां ले जाने तक की सारी कलाओं का प्रदर्शन करने का दमखम इन मूषकों में है। मूषकों के लिए कोई सीमा रेखा या पाला नहीं होता, चाशनी और लड्डूओं के फेर में ये कभी भी किसी आकस्मिक क्षण पाला बदल डालते हैं। इन मूषकों के लिए न कोई अपना है न पराया बल्कि सभी तरह के हाथी तभी तक अच्छे हैं जब तक उनमें मद झरता रहे। मद झरना बंद नहीं हुआ कि मूषकों को पलायन भी शुरू हो जाता है। इन मूषकों को इनके घरवाले तक भी अपना मानने की भूल नहीं करते।
ये मूषक ही हैं जो हाथी के पूरे जिस्म के साथ चाहे जैसी अठखेलियां करने को स्वतंत्र और स्वच्छन्द हैं। हाथियों और मूषकों का यह सनातन रिश्ता तभी से है जब से गजमुख का अवतार हुआ और उन्हें सवारी की जरूरत पड़ी। ये मूषक ही हैं जो कभी महावत की शक्ल पाकर तो कभी अनुचरों के भेस में हाथियों से वो सब कुछ करवा लेते हैं जो हाथियों या उनके वंशजों ने बीते युगों में कभी नहीं किया। मूषकों के पास महावतों जैसा अंकुश भले ही न हो, उनके पास तरह-तरह के मंत्रों की ताकत जरूर हुआ करती है। जिस किस्म का कोई काम हो या हाथी को जिस तरफ मोड़ना हो, ये मूषक हाथी के कान में मंत्र फूंक देते हैं। इन सच्चे-झूठे मंत्रों से हाथी को कोई मतलब नहीं होता बल्कि ये मूषक ही चलाते, फिराते और दौड़ाते हैं इन हाथियों की पूरी की पूरी जमात को। जिस मकसद से मंत्र फूंका जाता है, हाथी उसी दिशा में गतिविधियां शुरू कर देते हैं। हाथियों और मूषकों के बीच मंत्रों के श्रवण का यह परंपरागत सिलसिला ही है जो अब तक दुनिया को चला रहा है। हमारे यहां भी न हाथियों की कमी है, न मूषकों की। जरा गौर से उनकी हरकतों को देखें तो अपने आप पता चल जाएगा कि कौन मूषक किस हाथी के कान फूँक रहा है। मूषकों और हाथियों की यह दौड़ जनपथ से लेकर राजपथ तक चल रही है। भगवान हाथियों के कानों को महफूज़ रखे और सलामत रखे मूषकों के मंत्रों का तिलस्म।
---डॉ. दीपक आचार्य---
9413306077
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