उन्हें अपनी मेमोरी से हटाएँ !!
जो लोग समाज के शत्रु हैं और समाज की जड़ों को खोखला करने में जुटे हुए हैं उन्हें अपने से सायास दूर रखें क्योंकि अपने आस-पास ऎसे ही लोग होने चाहिएं जिन्हें हम अच्छा मानते हैं या जो समाज के लिए भलाई करने वाले और अच्छे हैंं। जो लोग बुरे हैं, बुरे बर्ताव करने वाले हैं और जिनके जीवन का लक्ष्य ही बुराइयों के बूते आगे बढ़ना है, आदर्शों और मूल्यों को रौंदते हुए जो लोग सफलता का झण्डा फहराने को आमादा हैं, उनके लिए यह जरूरी है कि हम उन्हें उतना दूर रखें कि आँच तक न आए। समाज में ऎसे खूब लोग हैं जो सारी मर्यादाओं और अनुशासन को तिलांजलि देते हुए आगे बढ़ते हैं और ऎसे में वे वह सब कुछ कर गुजरते जाते हैं जो किसी आदमी को शोभा नहीं देता। हमारे अपने क्षेत्र में, अपने आस-पास ऎसे खूब सारे लोगों का बाहुल्य है जिनकी हरकतों को देख लगता है कि आखिर हम कहां फंस गए ऎसे-ऎसे घिनौने और वीभत्स सड़ियल चेहरों के बीच। जिनकी शक्ल का कोई नूर नहीं है, जिनका जिस्म बेड़ौल है और कहीं से ये मनुष्य नहीं दिखते। फिर भी उनके पास किसी भी तरह कमा-खाने और जमा करने का जो हुनर है वही उन्हें जमाने में प्रतिष्ठित कर देता है और प्रतिष्ठा भी ऎसी कि उनके गहरे श्वेत-श्याम इतिहास से वाकिफ होने के बावजूद कोई कुछ कहने की हिम्मत नहीं कर पाता।
जीवन में सत्संग और सज्जनों के सान्निध्य से बढ़कर कुछ भी ज्यादा नहीं है। सत् संग ही है जो जीवन को तारता और तराशता है। इसके विपरीत दुर्जनों का संग मनुष्य को गर्त में उतार देने के लिए खूब काफी है। हमारे पूरे जीवन में असंख्य मौके ऎसे आते हैं जब हमें आदमी की साफ पहचान हो जाती है। ऎसे में हमें अपने अनुभवों के आधार पर यह प्राथमिकताएं तय करते हुए उन्हीं लोगों को अपने आभामण्डल के करीब रखना चाहिए जिन्हें हम सज्जन मानते हैं। लेकिन इस धु्रवीकरण में हम दुर्जनों को भी सूचीबद्ध करते चले जाते हैं और किसी न किसी स्वरूप में ये दुर्जन और दुष्ट बुद्धि लोग भी हमारे अवचेतन में घुसपैठ कर लिया करते हैं। इन स्थितियों में हमें सत्संग का पूरा आनंद प्राप्त नहीं होता। सत्संग और जीवन का सम्पूर्ण आनंद पाने के लिए यह जरूरी है कि उन सभी लोगों को हमारी मेमोरी से डिलीट करें जो हमारे काम के नहीं हैं अथवा समाज के लिए किसी भी प्रकार से उपयोगी नहीं हैं। यों भी ऎसे लोग उस प्रजाति की खरपतवार से कम नहीं है जो पशुओं के लिए भी किसी तरह उपयोगी न होकर नाकारा ही है।
दिमाग के किसी भी कोने में जब तक इन वायरसों का अस्तित्व रहेगा तब तक हमें शुद्ध-बुद्ध होने में कई तकलीफें आती रहेंगी। इसलिए जरूरी है कि उन सभी दुष्ट लोगों को हमारे स्मृति पटल से बाहर किया जाए जो घातक और नकारात्मक छवि से भरे हुए हैं। दुष्टबुद्धि और पशु बुद्धि लोगों या नर पिशाचों का स्मरण भी पाप देने वाला है इसलिए यदि जीवन में आनंद और सुकून की प्राप्ति करनी है तो अपने स्मृति संसार को शुद्ध रखें और इसमें किसी भी प्रकार के गंदे और सड़ियल लोगों का अंश मात्र भी स्मरण नहीें होना चाहिए। ऎसा होने पर ही हमें शुद्धता और शुचिता के साथ जीवन जीने का आनंद प्राप्त होगा। दिमाग में घुसपैठ कर बैठे इस कूड़े-कचरे के रहते हुए हमें कभी सुगंध का अहसास नहीं हो सकता बल्कि जब-जब भी सुगंध के कतरे आएंगे, तब-तब यह कचरा दुर्गन्ध के भभके भी देता रहता है। इसलिए जीवन में सुकून और सुगंध चाहें तो उन सभी लोगों को स्मृति से निकाल बाहर फेंके, जो नफरत करने लायक हैं। क्योंकि ऎसे लोग नफरत करने के लिए ही पैदा हुए हैं। इन दुष्टबुद्धि लोगों को सुधारने के लिए अपनी ऊर्जा और शक्ति का अपव्यय कभी न करें क्योंकि इनके बीज तत्व और संस्कार ही ऎसे हें कि जिनका मानवता से दूर-दूर तक का कोई रिश्ता नहीं है। सिर्फ मनुष्य शरीर धारण कर लेने मात्र से मनुष्य हो जाना संभव नहीं है।
---डॉ. दीपक आचार्य---
9413306077
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