बिहार विभूति स्व. बी. पी. मंडल पर विशेष. - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शनिवार, 25 अगस्त 2012

बिहार विभूति स्व. बी. पी. मंडल पर विशेष.


आज स्व बी पी मंडल, बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री व पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष, की ९४वे जयंती है, जो बिहार सरकार द्वारा राजकीय समारोह के रूप में उनके पैत्रिक गाँव मुरहो, मधेपुरा और राजधानी पटना में बनाया जाता है. स्व बिन्देश्वरी प्रसाद मंडल उस महान स्वंत्रता सेनानी और यादव जाति के विभूति स्व रासबिहारी लाल मंडल के पुत्र थे, जो ज़मींदार होते हुए भी कांग्रेस के पार्टी के बिहार से स्थापना सदस्यों में एक थे, अंग्रेजों से लोहा लिए और १९११ में बिहार, बंगाल और उत्तर प्रदेश के अग्रणी यादवों को साथ लेकर अखिल भारतीय गोप जातीय महासभा (जिसे बाद में यादव महासभा कहा गया) की स्थापना की. रासबिहारी बाबू के अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ाई पर तत्कालीन प्रसिद्ध अख़बार अमृता बाज़ार पत्रिका ने १९०८ में अपने सम्पादकीय में उनकी तारीफ की, और दरभंगा महराज ने उन्हें 'मिथिला का शेर' कह कर संबोधित किया. १९१८ में बनारस में ५१ वर्ष की आयु में जब रासबिहारी बाबू का निधन हुआ तो वहीँ बी पी मंडल का जन्म हुआ. रासबिहारी लाल मंडल के बड़े पुत्र भुब्नेश्वरी प्रसाद मंडल थे जो १९२४ में बिहार-उड़ीसा विधान परिषद् के सदस्य थे, तथा १९४८ में अपने मृत्यु तक भागलपुर लोकल बोर्ड (जिला परिषद्) के अध्यक्ष थे. दूसरे पुत्र कमलेश्वरी प्रसाद मंडल आज़ादी की लड़ाई में जय प्रकाश बाबू वगैरह के साथ गिरफ्तार हुए थे और हजारीबाघ सेन्ट्रल जेल में थे औत १९३७ में बिहार विधान परिषद् के सदस्य चुने गए.

बी पी मंडल १९५२ में मधेपुरा विधान सभा से सदस्य चुने गए. १९६२ पुनः चुने गए और १९६७ में मधेपुरा से लोक सभा सदस्य चुने गए. १९६५ में मधेपुरा क्षेत्र के पामा गाँव में हरिजनों पर सवर्णों एवं पुलिस द्वारा अत्याचार पर वे विधानसभा में गरजते हुए कांग्रेस को छोड़ सोशिअलिस्ट पार्टी में आ चुके थे. बड़े नाटकीय राजनैतिक उतार-चढ़ाव के बाद १ फ़रवरी,१९६८ में बिहार के पहले यादव मुख्यमंत्री बने. इसके लिए उन्होंने सतीश बाबू को एक दिन के लिए मुख्यमंत्री बनवाए. अतः सतीश बाबू को एक दिन के लिए मुख्यमंत्री बनाने वाले स्व बी पी मंडल ही थे. बी पी मंडल ६ महीने तक सांसद थे, और बिहार सरकार में स्वास्थ्य मंत्री भी थे. वे राम मनोहर लोहिया जी एवं श्रीमती इंदिरा गाँधी की इच्छा के विरुद्ध बिहार में पहले पिछड़े समाजके मुख्यमंत्री बनने जा रहे थे. परन्तु विधानसभा में बहुमत के बावजूद तत्कालीन ब्राह्मण राज्यपाल रांची जाकर बैठ गए और मंडल जी को शपथ दिलाने से इस आधार पर इंकार कर दिया कि बी पी मंडल बिहार में बिना किसी सदन के सदस्य बने ६ महीने तक मंत्री रह चुके है. परन्तु बी पी मंडल ने राज्यपाल को चुनौती दी और इस परिस्थिति से निकलने के लिए तय किया गया की सतीश बाबू एक दिन के लिए मुख्यमंत्री बन कर इस्तीफा देंगे जिससे बी पी मंडल के मुख्यमंत्री बनने में राज्यपाल द्वारा खड़ा किया गया अरचन दूर किया जा सके. अब इंदिरा गाँधी और लोहिया जी सभी मंडल जी के व्यक्तित्व से डरते थे और नहीं चाहते थे की सतीश बाबू इस्तीफा दें. परन्तु सतीश बाबू ने बी पी मंडल का ही साथ दिया.

आगे की कहानी और दिलचस्प है. उन्ही दिनों बरौनी रिफायनरी में तेल का रिसाव गंगा में हो गया और उसमें आग लग गयी. बिहार विधान सभा में पंडित बिनोदानंद झा ने कहा कि शुद्र मुख्यमंत्री बना है तो गंगा में आग ही लगेगी! साक्ष्य तो इस प्रकरण का बिहार विधानसभा के रिकार्ड में है - बात पहले बिहार विधान सभा की है, जब स्व बी पी मंडल ने आपत्ति की थी कि यादवों के लिए विधान सभा में 'ग्वाला' शब्द का प्रयोग किया गया. सभापति सहित कई सदस्यों ने कहा की यह असंसदीय कैसे हो सकता है क्योंकि यह शब्दकोष (Dictionary) में लिखा हुआ है. स्व मंडल ने कुछ गालियों का उल्लेख करते हुए कहा कि ये भी तो शब्दकोष (Dictionary) में है, फिर इन्हें असंसदीय क्यों माना जाता है. सभापति ने स्व मंडल की बात मानते हुए, यादवों के लिए 'ग्वाला' शब्द के प्रयोग को असंसदीय मान लिया.

लेकिन उन दिनों किन जातिवादी हालातों में बाते हो रही थी, इसका अंदाज़ मुश्किल है."

१९६८ में उपचुनाव जीत कर पुनः लोक सभा सदस्य बने. १९७२ में मधेपुरा विधान सभा से सदस्य चुने गए. १९७७ में जनता पार्टी के टिकट पर मधेपुरा लोक सभा से सदस्य बने. १९७७ में जनता पार्टी के बिहार संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष के नाते लालू प्रसाद को कर्पूरी ठाकुर और सत्येन्द्र नारायण सिंह के विरोध के बावजूद छपरा से लोक सभा टिकट मंडल जी ने ही दिया. १९७८ में कर्णाटक के चिकमंगलूर से श्रीमती इंदिरा गाँधी के लोक सभा में आने पर जब उनकी सदस्यता रद्द की जा रही थी, तो मंडल जी ने इसका पुरजोर विरोध किया. १.१.१९७९ को प्रधान मंत्री मोरारजी देसाई ने बी पी मंडल को पिछड़ा वर्ग आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया, जिस जबाबदेही को मानल जी ने बखूबी निभाया. इनके दिए गए रिपोर्ट को लाख कोशिश के बावजूद सर्वोच्च न्यायलय में ख़ारिज नहीं किया जा सका. खैर, उसके बाद की घटनाएं तो तात्कालिक इतिहास में दर्ज है और जो हममें से बहुतों को अच्छी तरह याद है.

स्व बी पी मंडल जी की मृत्यु १३ अप्रैल.१९८२ को ६३ वर्ष की आयु में हो गयी.


फेसबुक मित्र सूरज यादव के वाल से साभार.

1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

डॉ अनुग्रह नारायण सिंह को पूरा देश बिहार विभूति के नाम से जानता था| बिहार-विभूति का भारत की आजादी में सहभागिता रही थी। उन्होंने महात्मा गांधी एवं डा. राजेन्द्र प्रसाद के साथ राष्ट्रीय आन्दोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थे। अनुग्रह बाबू आधुनिक बिहार के निर्माता थे।