डॉन से नेता बने अरुण गवली को मुंबई की एक विशेष अदालत ने शिवसेना पार्षद कमलाकर जामसांडेकर की हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा सुनाई है। यह पहला मौका है जब गवली किसी आरोप में दोषी ठहराया गया और सजा दी गई है। हालांकि, गवली पर हत्या, फिरौती और डकैती के कई मामले दर्ज हैं।
अदालत ने इस मामले में 12 आरोपियों को दोषी ठहराया था, जबकि 3 अन्य आरोपियों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया। एक अन्य आरोपी बाला सुरवे की पिछले महीने मौत हो गई थी। घाटकोपर से शिवसेना के पार्षद कमलाकर जामसांडेकर की 2 मार्च, 2007 में उनके घर में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी।
कमलाकर जामसांडेकर का सदाशिव सुरवे नामक एक आदमी के साथ अपने इलाके में कोई प्रॉपर्टी विवाद था। सदाशिव इसी की वजह से अरुण गवली के 2 आदमियों प्रताप गोडसे और जामसांडेकर का मर्डर करने को बोला। दोनों ने सदाशिव को अरुण गवली से मिलवाया। जवाब में गवली ने 30 लाख की सुपारी मांगी। जब सदाशिव ने हामी भर दी, तो गवली ने अपने साथी प्रताप गोडसे से कहा कि जामसांडेकर के मर्डर के लिए कोई नए शूटर ढूंढो, ताकि हम पर किसी का शक न जाए।
गोडसे ने इन नए शूटरों को ढूंढने का जिम्मा श्रीकृष्ण गुरव नामक अपने दूसरे साथी को सौंपा। श्रीकृष्ण ने फिर नरेंद्र गिरी और विजयकुमार गिरी नामक शूटर ढूंढे और दोनों को ढाई-ढाई लाख रुपये देने का वायदा किया। अडवांस के रूप में दोनों को प्रताप गोडसे और अजित राणे ने 20- 20 हजार रुपये दिए।
क्राइम ब्रांच के अनुसार, विजय कुमार गिरी ने अपने एक और साथी अशोक कुमार जायसवार के साथ कमलाकर जामसांडेकर पर करीब 15 दिन तक वॉच रखा और इसी के बाद 2 मार्च, 2007 को जामसांडेकर का उनके घर में कत्ल कर दिया गया। गवली उस केस में एक साल बाद पकड़ा गया। तब के क्राइम ब्रांच चीफ राकेश मारिया, अडिशनल सीपी देवेन भारती, इंस्पेक्टर दिनेश कदम, धनंजय दौंड, नीनाध सावंत, योगेश चव्हाण की टीम ने अरुण गवली को गिरफ्तार करने से पहले बहुत होमवर्क किया और फिर इसी के बाद यह टीम उसके घर पहुंची थी।
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