नक्सलियों ने मेंढा लेखा मॉडल के खिलाफ अभियान छेड़ दिया है। वन अधिकार अधिनियम के तहत यह मॉडल आदिवासियों को बांस की खेती करने का अधिकार प्रदान करता है। भाकपा (माओवादी) की गढ़ चिरौली मंडल समिति ने मॉडल को खारिज कर दिया है। इस मॉडल ने पिछले साल उस समय देश के लोगों का ध्यान अपनी तरफ खींचा था, जब तत्कालीन पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने महाराष्ट्र में गढ़चिरौली जिले के मेंढा लेखा गांव में वन भूमि पर सामुदायिक अधिकार आदिवासियों को सौंपे थे।
समिति ने हाल में मेंढा लेखा गांव में पर्चे बांटे जिनमें कहा गया है, यह (वन अधिकार अधिनियम) वन माफिया के जरिए वनों को लूटने की सरकार की चाल है। पर्चों में कहा गया है कि वनों पर आदिवासियों को उनके मूल अधिकारों से वंचित करने के लिए ब्रिटिश काल में वन अधिनियम लागू किया गया था।
माओवादियों ने आरोप लगाया कि मेंढा लेखा आंदोलन अपने लक्ष्य से भटक गया है और दावा किया कि यह उनके संघर्ष की वजह से है कि सरकार आदिवासियों को प्रति बांस तीन पैसे की बजाय 35 रुपये देने के लिए विवश हुई। बहुत से ग्रामीणों को पर्चे मिले हैं, लेकिन उन्होंने माओवादियों के डर से मीडिया से बात करने से इनकार कर दिया। माओवादियों ने कार्यकर्ता मोहन हीराबाई और आदिवासी नेता देवजी तोफा पर सरकार के हाथों में खेलने का आरोप लगाया।
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