गुजरात की एक विशेष अदालत ने राज्य में 2002 के दंगों के दौरान नरोदा पाटिया मुहल्ले में नरसंहार के लिए भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की पूर्व मंत्री मायाबेन कोडनानी और बजरंग दल के नेता बाबू बजरंगी सहित 32 लोगों को बुधवार को दोषी करार दिया। इस नरसंहार में 97 लोगों को मार डाला गया था। अहमदाबाद की विशेष अदालत ने 29 लोगों को मामले से बरी भी कर दिया। यह पहला मौका है, जब गुजरात दंगों के किसी मामले में किसी पूर्व मंत्री को दोषी करार दिया गया है।
फैसले का स्वागत करते हुए मानवाधिकार कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड ने कहा, "सत्य की जीत हुई है।" एक वकील ने कहा कि कोडनानी सहित दोषी ठहराए गए सभी लोगों को भारतीय दंड संहिता की धारा 302 (हत्या) और धारा 120बी (साजिश) सहित विभिन्न धाराओं के तहत आरोपित किया गया था। इन मामलों में अधिकतम मृत्युदंड सुनाया जा सकता है।
यह नरसंहार 27 फरवरी, 2002 के गोधरा रेल अग्निकांड के एक दिन बाद हुआ था। गोधरा रेल अग्निकांड में 59 लोग जिंदा भस्म हो गए थे। दंगे पर आमादा भीड़ ने नरोदा पाटिया में हमला बोलकर 97 लोगों को मार डाला था। गवाहों ने न्यायालय में कहा था कि कोडनानी ने भीड़ को उकसाया था। कोडनानी क्षेत्रीय विधायक और तत्कालीन महिला व बाल विकास मंत्री थीं।
सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले की तथा गुजरात दंगों से सम्बंधित अन्य मामलों की जांच के लिए 2009 में एक विशेष जांच दल (एसआईटी) गठित किया था। इन दंगों में 1,000 लोग मारे गए थे, जिनमें अधिकांश मुसलमान थे। बाबू बजरंगी, नरोदा पाटिया के पीड़ितों पर हमला करने वाली भीड़ का नेतृत्व करने का आरोपी था। तहलका द्वारा किए गए स्टिंग ऑपरेशन में उसे नरसंहार में अपनी संलिप्तता स्वीकारते हुए कैमरे में कैद कर लिया गया था।
मामले में आरोपी 64 लोगों में से तीन का सुनवाई के दौरान निधन हो गया। बाकी 61 आरोपियों के खिलाफ हत्या, आगजनी और दंगा करने के लिए मुकदमा चलाया गया। अधिकांश आरोपी जमानत पर रिहा हैं।
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