हे आजादी ! अब तुम 65 साल की हो गयी हो। शायद तुम्हें अपनी बढ़ती हुई उम्र का अहसास नहीं होगा। लोग तुम्हारी उम्र का अहसास कराते हैं और साल में एक बार तुम्हारी चढ़ती उम्र की चर्चा कर बैठ जाते हैं। जब तुम्हारी पैदाईश हुई थी, तब लोग कहते थे - अभी तो बेचारी पैदा ही हुई है, क्या कारनामे दिखाएगी। जब तुम कुछ बड़ी हुई तो वे यह कह कर खामोश हो गये कि अभी तो उम्र ही क्या हुई है। समझ तो आते-आते आएगी। और आज जब तुम देखते-देखते 65 साल की हो गई हो, तो लोग कहते हैं कि आजादी बेचारी अब बहुत बूढ़ी हो गयी है।
स्वतंत्रता.... तुम्हारा यौवन देखते-देखते ही बीत गया। बाँस की तरह लम्बी हुई और खपची की तरह झुक कर लचीली कावड़ ही हो गयी। खैर छोड़ो, तुम्हारी उम्र से क्या लेना-देना। उम्र ही सब कुछ नहीं होती ,उम्र के साथ व्यक्ति के भीत्तर का मन भी उसी अनुपात में ढलता रहता है तो उम्र का एहसास होता है। अपनी उम्र के इन पैंसठ वषार्ें में तुमने देखा होगा कि तुम्हारे आस-पास कितने गरीब लोग आकर इकट्ठे हो गये हैं। हर वर्ष गरीबों की भीड़ बढ़ती गई और तुम उसमें इस तरह घिर गई कि तुम्हारे रूप-यौवन के बारे में विचार करने का वक्त ही नहीं मिला।
तुम्हें चाहने वाले करोड़ों लोग अब भी गरीबी की रेखा के नीचे पड़े हुए हैं यानि कि वे गरीबी को ओढ़ते-बिछाते सो रहे हैं। गरीबी ! तुम जहाँ खड़ी थी, आज भी वहीं अंगद के पाँव की तरह खड़ी हो। तुम्हारे चट्टान की तरह अडिग, दृढ़, अटल स्वरूप को निरखने के लिए गरीबों की भीड़ एकत्रित हो गई है। उफ ! यह भीड़ ! जैसे किसी बाजीगर ने डुगडुगी बजा कर इकट्ठी कर ली है। शायद तुम 65 साल की उम्र में पहुंच कर भी हर एक के लिए मनोरंजन की वस्तु बन कर रह गई हो। स्वतंत्रता ! तुम करोड़ों के लिये अच्छे ख़ासे मनोरंजन का साधन होकर रह गई हो। तुम्हारी दास्तान सुनाते-सुनाते करोड़ों गरीब लोग खुले आसमान तले भूखे ,प्यासे और नंगे सो जाते हैं।
दादियाँ और नानियाँ अपने पौतों व दोहितों को सुलाने के लिए थपकियाँ देते हुए परियों की कहानियाँ सुनाती थी। वे दूध-बतासों के सपने देखते सो जाते थे। यह हालत सिर्फ बच्चों की ही नहीं करोड़ों इंसानों की भी हैं। ये सभी स्वतंत्रता की आशा में जी रहे हैं। स्वतंत्रता ! सुना है तुम्हारा कुछ भ्रष्ट लोगों ने अपहरण करके तुम्हें झाड़-पोंछ कर अपने ड्राइंग रूप में सजाकर रख दिया है। हम आजादी की 66 वीं वर्षगांठ मनाने जा रहे हैं। इस दरम्यान देश ने कई उतार-चढ़ाव देखे। अगर देश में भ्रष्टाचार चरम सीमा तक पहुंचा तो विज्ञान और तकनीकी क्षेत्र ने नई बुलंदियों को छुआ है। हे स्वतंत्रता ! तुमने अपनी उम्र में क्या देखा, यह हम भी जानना चाहते हैं। तुम राजमहलों में निवास करती हो , शायद इसीलिए तुम्हें इन राजमहलों के अन्तःपुर की कहानियों और किस्से मालूम हों। फुरसत मिले तो तुम इन कहानियों को सुनाना, हम भी इन्हें गौर से सुनने को बेताब हैं।
तुम राजपथ त्याग कर जनपथ पर कब आ रही हो? अगर आओ, तो हमारी बस्ती में भी आना। लोग तुम्हारे दर्शनों के प्यासे हो रहे हैं। खैर ... तो स्वतंत्रता तुम 65 साल की हो गयी हो। तुम्हें सालगिरह पर हार्दिक मंगलकामनाएँ और ढेर सारी बधाई हो।
---अनिता महेचा---
कलाकार कॉलोनी,
जैसलमेर -345001
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