मुंबई हमले में आरोपी पाकिस्तानी नागरिक आमिर अजमल कसाब पर आज सुप्रीम कोर्ट में फैसला आएगा। कसाब को निचली अदालत और बॉम्बे हाईकोर्ट ने मौत की सज़ा सुनाई है। कसाब ने इस सजा के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दी है। कसाब उन आंतकियों में शामिल था जिन्होंने 2008 में मुंबई पर हमला करके 166 लोगों को मार डाला था।
26 नवंबर 2008 के दिन मुंबई के होटल ताज, नरीमन हाउस और फिर सीएसटी स्टेशन पर हमले के बाद 166 लोगों की मौत हुई। पाकिस्तान से समंदर के रास्ते से आए आतंकियों ने पूरे मुंबई शहर को बंधक बना लिया। पूरी दुनिया ने आतंक का एक भयानक चेहरा देखा। मौत के इस तांडव का एक चेहरा था मोहम्मद अजमल आमिर कसाब। पाकिस्तान से आए इस आतंकी को मौका-ए-वारदात से अंधाधुंध गोलियां चलाते हुए पकड़ा गया। इस हमले में कसाब अकेला आतंकी था जिसे ज़िंदा पकड़ा गया था।
मुंबई की एक विषेश अदालत ने कसाब को 6 मई 2010 को मौत की सजा सुनाई। बंबई हाईकोर्ट ने 21 फरवरी 2011 को अपने फैसले में इस सजा को बरकरार रखा। मुंबई की एक जेल में बंद कसाब ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।
कसाब की दलील है कि उसे निचली अदालत में ठीक से जिरह करने का मौका नहीं मिला। इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में एक एमाइकस क्योरी यानी कोर्ट का सलाहकार वरिष्ठ वकील राजू रामचंद्रन को नियुक्त किया। आम तौर पर आमाइकस का काम कोर्ट की मदद करना होता है। लेकिन इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अमाइकस को इस बात की इजाजत दी की वो कसाब की तरफ से बहस करें। सुप्रीम कोर्ट ने ये संदेश दिया कि हर आदमी को न्यायलय के सामने अपना पक्ष रखने का पूरा अधिकार है।
समंदर के रास्ते मुंबई दाखिल होने के बाद कसाब अपने साथी के साथ सीएसटी स्टेशन पहुंचा। वहां कत्लेआम मचाने के बाद वो अपने एक साथी के साथ कामा अस्पताल पहुंचा। उसके बाद गोलियां चलाता हुआ वो भाग रहा था कि उसकी मुठभेड़ पुलिस से हुई। इस मुठभेड़ में उसका साथी मारा गया जबकि कसाब खुद पकड़ा गया। लेकिन कसाब की दलील है कि वो भारत के खिलाफ लड़ाई का हिस्सेदार नहीं है। उसे छोटी उम्र में भड़काऊ बातें बता कर आतंक की और बहकाया गया। वो गरीबी की वजह से आतंक का शिकार हुआ। उसे निचली अदालत में अपनी बात को ठीक से रखने का मौक नहीं मिला।
कसाब के साथ साथ दो और लोगों पर सुप्रीम कोर्ट अपना फैसला सुनाएगा। ये लोग फहीम अंसारी और सबाउद्दीन अहमद हैं। पुलिस का आरोप है कि इन लोगों ने पाकिस्तानी आतंकियों की मदद की थी। लेकिन सबूतों के अभाव में हाईकोर्ट ने उन्हें बरी कर दिया था।
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