देश की स्वतंत्रता के लिए क्रांति की मशाल जलाने वाले खुदीराम बोस को जहां फांसी दी गई थी, वह स्थल तो आज भी सुरक्षित है, लेकिन जहां उनका दाह संस्कार किया गया था, वह स्थान सरकार की उपेक्षा का शिकार है। कहा जाता है कि शाम को यह स्थल मयखाने में तब्दील हो जाता है।
मुजफ्फरपुर जेल की जिस कोठरी में खुदीराम बोस को रखा गया था, वह वर्ष में केवल एक दिन उनके शहादत दिवस के मौके पर ही खोला जाता है, वह भी रात को। मुजफ्फरपुर जेल के अधीक्षक विश्वनाथ प्रसाद ने बताया, ''खुदीराम बोस जहां रहते थे और जहां उन्हें फांसी दी गई थी, उस स्थान की साफ-सफाई और रंग-रोगन वर्ष में एक बार कराई जाती है और उनकी शहादत को याद किया जाता है। केंद्रीय कारा की जिस कोठरी में अंग्रेजों ने खुदीराम बोस को रखा था वह पूजनीय स्थल के रूप में सुरक्षित है। यह देश की धरोहर है और सम्मान है, जिस कारण इस कोठरी में किसी अन्य कैदी को नहीं रखा जाता।''
जेल की उस कोठरी को वर्ष में एक बार ही खोले जाने के बारे में पूछने पर उन्होंने कहा कि यही परम्परा है, जिसका निर्वहन वह भी कर रहे हैं। देश में अंग्रेजों के खिलाफ क्रांति की लौ जलाने वाले खुदीराम बोस को 11 अगस्त 1908 को मुजफ्फरपुर जेल में फांसी दी गई थी। वहीं, खुदीराम बोस का जहां अंतिम संस्कार किया गया था, वह स्थान हालांकि अब भी सरकार की उपेक्षा का शिकार है। आलम यह है कि वीरान पड़े इस स्थल पर शाम में खुलेआम शराब बेचे जाते हैं।
अब बुद्घिजीवी इस पर व्यंग्य करते हुए कहते हैं, 'यहां शहीदों की चिता पर हर वर्ष मेले तो नहीं लगते, लेकिन हर दिन यहां जाम जरूरत टकराए जाते हैं।' खुदीराम बोस का अंतिम संस्कार मुजफ्फरपुर जेल से करीब दो किलोमीटर दूर चंदवारा में किया गया था। बिहार के निर्दलीय विधायक किशोर कुमार ने पिछले वर्ष विधानसभा में यह मामला उठाया था, लेकिन फिर भी स्थिति में सुधार नहीं हुआ।
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