आपने अब तक कई तरह के विद्यालयों के बारे में देखा और सुना होगा जिनमें विभिन्न विषयों की शिक्षा दी जाती हो। आमतौर पर आजकल लोगों ने अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए उपकार की भावना का त्याग कर दिया है। ऐसे में बिहार के गया जिले के बोधगया में पिछले पांच साल से एक ऐसा विद्यालय है जो बच्चों को परोपकार की शिक्षा दे रहा है। विश्व प्रसिद्ध पर्यटक स्थलों में से एक और बौद्ध संप्रदाय के लिए पवित्र भूमि माने जाने वाले बोधगया में कुशल चीत नामक बौद्ध भिक्षु निरंजना नदी के तट पर स्थित 'बुद्ध ज्ञान आश्रम' में बच्चों को परोपकार और सदाचार की शिक्षा देने में जुटे हैं।
वर्ष 2008 से चल रहे इस शिक्षा केंद्र में प्रत्येक रविवार को कक्षाएं चलती हैं, जिनमें मुख्य रूप से परोपकार की बातें सिखाई जाती हैं। रविवार को यहां सैकड़ों बच्चे इकट्ठे होते हैं और शांत चित्त होकर उपदेशों का अनुश्रवण कर इस मार्ग पर चलने की कोशिश करते हैं। इस क्रम में बच्चों को साधना भी कराई जाती है।
बौद्ध भिक्षु चीत ने बताया कि इस विद्यालय में पहली से 10वीं कक्षा तक के बच्चों आते हैं जिन्हें मुख्य रूप से सदाचार की शिक्षा देते हुए झूठ नहीं बोलने, शिष्टाचार का पालन करने, असहायों की सहायता करने तथा गलत संगतियों से होने वाली हानियों के विषय में बताया जाता है। छात्रों को यह बताया जाता है कि सदगुणों से मिलने वाली तरक्की ही वास्तविक और टिकाऊ होती है। वह बताते हैं कि यहां शिक्षा ग्रहण करने वाले अधिकांश बच्चे स्थानीय और गरीब तबके के होते हैं जो किसी न किसी विद्यालय के भी विद्यार्थी होते हैं। प्रत्येक रविवार को सुबह 11 बजे तक परोपकार की शिक्षा दी जाती है जबकि शनिवार को विद्यार्थियों को साधना कराई जाती है।
परोपकार की शिक्षा ले रहे नौवें वर्ग के छात्र साकेत कुमार कहते हैं कि जब से वह यहां आने लगे हैं उन्हें खुद में ही परिवर्तन लग रहा है। साधना और परोपकार की शिक्षा की वकालत करते हुए उन्होंने कहा कि इससे मन में भटकाव तो दूर होता ही है इससे आत्मनियंत्रण या संयमित होने की भी अनोखी शक्ति मिल जाती है। वह कहते हैं लोग अब इस स्थान को ही बुद्ध ज्ञान विद्यालय कहने लगे हैं। 10वीं के छात्र आर्यन ने बताया कि भिक्षु की शिक्षा से कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी नहीं घबराने की प्रेरणा मिलती है तथा ऐसी शिक्षा आत्मावलोकन की शक्ति देती है। उसने कहा कि अब वह कभी झूठ नहीं बोलता और लोगों के कल्याण के प्रति उन्मुख हुआ है। ऐसा नहीं कि इस आश्रम में केवल छात्र ही परोपकार का ज्ञान लेने आते हैं, लड़कियां भी काफी संख्या में यहां आकर ज्ञानवर्धन कर रही हैं।
एक छात्रा कहती है कि आज ऐसे विद्यालय सभी इलाकों में होने चाहिए जिससे सभी नवयुवकों को ऐसी शिक्षा मिल सके। भिक्षु चीत कहते हैं कि उनका प्रयास है कि ग्रामीण परिवेश में रहने वाले बच्चों को सदाचार की शिक्षा मिल सके। उनका स्पष्ट कहना है कि जब मन साफ होगा तो तन, दिल, दिमाग सभी स्वच्छ होंगे। आज इस संस्थान में 300 से ज्यादा बच्चे परोपकार की शिक्षा ग्रहण करने आते हैं। स्थानीय लोग भी इस विद्यालय की प्रशंसा करते नहीं थकते। उनका कहना है कि नक्सल प्रभावित गया जिले के ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चों की सोच में इस विद्यालय ने परिवर्तन लाना शुरू कर दिया है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें