गॉड फादर और कल्पवृक्ष !!!
आदमियों में कई तरह की किस्में आजकल विद्यमान हैं। कोई अद्र्ध आदमी है, कोई पूर्ण और कोई और किस्म के। इन सभी आदमियोें में दो तरह के लोग हुआ करते हैं। एक वे हैं जिनका पूरा संसार उन्हीं के इर्द-गिर्द चलता रहता है और शेष दुनिया उनके लिए सिर्फ मनोरंजन और द्रष्टाभाव से देखने भर के लिए और अपने स्वार्थों की सिद्धि के तमाम जतन करने के लिए हैै। इनका दुनिया से कोई वास्ता तभी पड़ता है जब इनके स्वार्थ का कोई काम सामने आ जाए। वरना ये कछुओं की तरह अपने ही इर्द-गिर्द परिभ्रमण करते रहते हैंं। दूसरी किस्म उन आदमियों की है जिनके लिए स्व गौण होता है और समुदाय, क्षेत्र तथा राष्ट्र सर्वोपरि होता है। ऎसे में इनकी सारी वृत्तियां राष्ट्रोन्मुखी और लोकोन्मुखी हुआ करती हैं और उनके लिए देश या समाज प्रमुख होता है न कि अपने स्वार्थ और संसाधन। जिन लोगों के लिए अपने स्वार्थ प्रमुख होते हैं वे न समाज की चिन्ता करते हैं न देश की। इनके लिए देश और समाज का कुछ भी हो जाए, कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि लोगों के चरणों में लौटने वाले, उनके किचन से लेकर बाथरूम्स तक में काम करते हुए अपने आपको गौरवशाली मानने वाले और अपने स्वार्थ की पूत्रि्त के लिए हर हद पार करने या हर तरह का समर्पण करने वालों के लिए क्या अन्तर पड़ता है कि देश आज इनके हवाले है या कल किसी और के हवाले हो जाए। इनकी हरकतें तो ऎसी ही हुआ करती हैं कि हर आदमी को भा जाती हैंं। फिर मुफ्त में सहलाना, पुचकारना और मालिश करने से लेकर चरणचम्पी करना किसे पसंद नहीं। इसलिए ये लोग देश और समाज को लेकर सारी चिन्ताओं से मुक्त रहा करते हैं।
इन्हें समझदार होने से लेकर श्मशान जाने से पहले तक अपनी और सिर्फ अपनी ही पड़ी होती है और ऎसे में उनका घर-संसार चन्द फीट और मीटर तक ही सिमटा हुआ होता है। जबकि जो लोग अपने हर कर्म में देश और समाज के कल्याण की भावना को लेकर चलते हैं उनके लिए व्यक्ति और परिवार से बड़ा समुदाय और राष्ट्र होता है और ऎसे में इन लोगों का हर कर्म उदात्त और व्यापक अर्थ लिए हुए होता है। इन लोगों का व्यक्तित्व उन्मुक्त आकाश में उड़ने वाले पंछियों की तरह होता है। जो लोग अपने जीवन का हर क्षण अपने स्वार्थ में ही रमे रहते हैं उनके लिए अपने व्यक्तित्व का कोई वजूद नहीं हुआ करता है बल्कि ये लोग रोजाना ऎसे-ऎसे लोगों की तलाश करने में लगे रहते हैं जिनकी छाया या सान्निध्य सुख पाकर ये लोग भौतिक संसार की हर वस्तु सहज ही बिना कुछ खर्च किए पा लेने का पूरा और पक्का भरोसा होता है। कई लोग इसके लिए गॉड़ फादर तलाश कर अपने आपको उनके चरणों में समर्पित कर देते हैं और फिर उनका साथ पाकर सांसारिक सुखों और ऎषणाओं के संसार में गोते लगाते रहते हैं। कई लोग अपने स्वार्थों के वशीभूत होकर उन सभी लोगों को किसी न किसी रिश्ते में बांधने का प्रयास करते रहते हैं। अपनी चलाने के फेर में ऎसे लोग कभी किसी बबूल को कल्पवृक्ष मान लेते हैं, कभी किसी झाड़ी को या कभी किसी ठूंठ को, और जितनी छाया मिल जाए, उतना पाते हुए अपने आपको गौरवान्वित महसूस करते रहते हैं।
मौलिक प्रतिभाओं से सम्पन्न व्यक्ति औरों के सहारे चलने और चलाने से परहेज रखा करते हैं और अपने जीवन में कभी भी यह इच्छा नहीं करते कि किसी गॉड फादर या कल्पवृक्ष या ढपोर शंख का सान्निध्य पाकर निहाल हो जाएं। इन लोगों को ईश्वर प्रदत्त अपनी बुद्धि व कर्मयोग पर पूरा भरोसा होता है और ऎसे में ये जो भी कर्म करते हैं वह शुद्ध और सात्ति्वक होता है तथा पूरे समाज को इनसे लाभान्वित होने के अवसर प्राप्त होते रहते हैं। आम तौर पर दूसरोें के भरोसे जीने वाले और दूसरों के पॉवर से अपने आपको बहुत कुछ समझने वाले रोबोट किस्म के लोगों को मनुष्य कहना ही अपने आप में मनुष्यता का अपमान है। ऎसे लोगों को मानव शरीर देकर भगवान भी बाद में पछतावा करने लगता है और उस समय का इंतजार करता रहता है जब इनकी वापसी हो जाए। यों देखा जाए तो और लोग भी इनकी जल्द से जल्द मुक्ति के लिए ईश्वर से प्रार्थना करते रहते हैं। यों देखा जाए तो अपने इलाके में और अपने सम्पर्क में आने वाले ढेरों लोग ऎसे हैं जिनका अपना कोई वजूद नहीं है। न ज्ञान है, न चरित्र, न इंसानियत और न ही कोई गुण। बावजूद इसके ये लोग दूसरों के सान्निध्य मेें रहते हुए अपने आपको इतना कुछ मान लेते हैं कि इनसे अनभिज्ञ लोग इन्हें अपने क्षेत्र का सर्वशक्तिमान और संप्रभु मानकर इनकी परिक्रमाएं करने को तैयार हो जाते हैं।
नालायकों और कायरों तथा विघ्नसंतोषियों को अपने पूरे जीवन में हमेशा किसी न किसी ऎसी बड़ी और गहरे भूगर्भ वाली माँद की तलाश बनी रहती है जिसमें चाहे जब घुसकर ये अपने अपराधों और षड़यंत्रों के प्रकट होने पर एकान्त सेवन कर सकें। इन लोगों के लिए हमेशा शरणस्थलों की तलाश होती है और इसके बगैर इनका जीवन के कई मकसद विफल हो जाते हैंं। जो लोग ऎसे नालायकों को अपने पास रखते हैं उनकी भी अपनी कई मजबूरियां होती हैं। उन लोगों को भी ऎसे सियारों की जरूरत पड़ती है जो अक्सर उनकी हां में हां मिलाते हुए उनके जयगान भरे संगीत को सुनाते रहें। नालायकों और कायरों की भीड़ में जहां कहीं अतिशय विनम्रता और कावड़ की तरह झुकाव देखें वहां समझ जाएं कि ये ही वे लोग हैं जो चाहे कहीं भी झुक सकते हैं, चाहे जितना नीचे गिर सकते हैं और अपने-अपने आदरणीयों के लिए सब कुछ करने को तैयार हो जाते हैं जो सामने वालों की पसंद होता है। फिर चाहे वे दिन में होने वाले काम हों या रात के अंधेरे में।
---डॉ. दीपक आचार्य---
9413306077
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