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शनिवार, 22 सितंबर 2012

जो काम नहीं किया हो ....


उसका श्रेय न लें, न दें !!


श्रेय पाने की होड़ आजकल चारों ओर मची है। हर कोई पाना चाहता है पूरा का पूरा श्रेय, चाहे वह उसका हकदार हो या न हो। काम कोई करे, श्रेय पाने वालों की भीड़ अचानक कहीं से पैदा हो जाती है। श्रेय पाने मात्र को जिन्दगी का अहम मकसद मानने वाले लोग श्रेय की प्राप्ति के लिए वह हर हथकण्डे अपनाने में पीछे नहीं रहते जो उन्हें सहज ही श्रेय दिलाने भर को काफी होते हैं। इस सिर्फ श्रेय को पाने के लिए आज के आदमी उन तमाम रास्तों पर चल पड़ते हैं जहां कहीं न कहीं किसी न किसी सुराख से रोशनी का कोई कतरा दिखाई पड़ने लगता है। आजकल आदमी काम से कहीं ज्यादा महत्त्व श्रेय को देता है और इस वजह से लक्ष्य में भटकाव की पूरी छाया आदमी के व्यक्तित्व और कर्तृत्व में आभासित होती है। श्रेय पाने वालों की भीड़ के बीच आज भी कई लोग ऎसे हैं जिनके लिए श्रेय गौण है और कर्म प्रधान। ऎसे लोग हर कार्य को अपने कत्र्तव्य की पूत्रि्त के रूप में लेते हैं, इन्हें इसके परिणामोें और श्रेयों से कुछ भी लेना-देना नहीं होता। इसलिए ये लोग स्वान्तः सुखाय अपनी ही मस्ती में जीते हैं। इन लोगों को यह भी फर्क नहीं पड़ता कि उनके तथा उनके कामों के बारे में और लोग क्या सोचते हैं, क्या कहते हैं। निष्ठा से कर्म करना और निरपेक्षता पूर्वक जीवनयापन करने वाले ये लोग कभी भी श्रेय पाने वालों की कतार में नहीं दिखाई देते, बल्कि भीड़ से दूर  एकान्तसेवन के आदी हो जाते हैं तथा अपनी भीतर की शाश्वत मस्ती का अनुभव करते रहते हैंं।

इन लोगों के लिए न कभी गॉड़फादर की तलाश रही होती है, न किसी यश-प्रतिष्ठा पाने के चोंचलों की। अन्दर और बाहर सभी तरफ से मस्त और बिंदास जीवन जीते हुए अपने ही आनंद में रमे रहने वाले ये लोग न किसी की चापलुसी कर सकते हैं न चरणवंदना। श्रेय पाने के तमाम हथकण्डों और स्टंटों से दूर जीवन का असली आनंद तो ये ही लोग प्राप्त करते हैं। बल्कि अपने पूरे जीवन में इनके हाथ से होने वाले अच्छे कर्मों तक का श्रेय लेना ये कभी भी पसंद नहीं करते हैं, और यही स्थिति उन्हें भीड़ से अलग करती है। आम तौर पर माना यह जाता है कि हर अच्छा कार्य पुण्य के रूप में परिवर्तित होकर आत्मा के साथ जुड़ जाता है और वर्तमान से लेकर भावी जन्मों तक इसके अच्छे परिणाम सामने आते रहते हैं बशर्तें कि अच्छे कर्म का कोई श्रेय नहीं लिया जाए। किसी भी अच्छे कार्य, भलाई के काम को करने के बाद उसका श्रेय पा लिये जाने अथवा श्रेय प्राप्ति का कोई सा प्रयास कर लिए जाने मात्र से उसका फिर पुण्य में रूपान्तरण संभव नहीं हो पाता है तथा वह क्षणिक सुख प्रदान करने के बाद यहीं रह जाता है। चाहे उस अच्छे काम के लिए कहीं से धन्यवाद मिल जाए अथवा उसके बदले पारिश्रमिक या उपहार। श्रेष्ठ कर्म के बदले कुछ न कुछ प्राप्त हो जाने की अवस्था में नेक कर्म करने वालों के लिए यह उतना फलदायी नहीं रह पाता जितना अपेक्षित होता है। यही कारण है कि अच्छे कर्म का श्रेय प्राप्त करने की कामना नहीं रखने वाले लोग इस जन्म में भी मस्त रहते हैं और अगले जन्मों में भी। इन लोगों को श्रेय पाने के लिए वे जतन नहीं करने पड़ते जिनकी वजह से सामान्य मनुष्य के जीवन में उद्विग्नता और अशांति के भाव अक्सर पैदा होते रहते हैं।

इसके विपरीत बहुसंख्य लोग अपनी पूरी जिन्दगी में श्रेय पाने के लिए खूब जतन करते रहते हैं। इसके लिए लोग ताउम्र समझौते करते हैं, अनचाहे लोगों की परिक्रमाएं और चरणवंदन करते हैं, अपने श्रम, समय और ऊर्जाओं का अपव्यय करते हैं और उन सारी विधाओं को अपनाते हैं जिन्हें षड़यंत्रों, स्टंट और हथकण्डों में शुमार किया होता है। श्रेय पाने भर के लिए टिड्डों की तरह टूट पड़ने वाले आदमियों की कमी न हमारे अपने इलाके में है, न बाहर। कैसा भी काम हो, करने और करवा देने के हवाई वादों में लोगों को नचाने वाले ऎसे-ऎसे महारथी हमारे सम्पर्क में आते-जाते रहते हैं जो हर दृष्टि से दुष्टताओं का जखीरा हुआ करते हैं मगर कमा-खाने लायक बना डालने की गरज से ईश्वर भी इन पर कृपा करते हुए इन्हें बातों का बादशाह बना डालता है ताकि ये किसी पर बोझ नहीं रहें और अपनी उदरपूत्रि्त आसानी से करते हुए जिन्दगी काट सकें। पहले ऎसे लोग बहुत कम हुआ करते थे जिनकी बातें और काम-काज दोनों हवा मेें हुआ करते थे। तिस पर कोई सा काम हो, पूरे आत्मविश्वास से वादा कर लेंगे। फिर लगा तो तीर नहीं तो तुक्का। इन लोगों के लिए दोनों हाथों में लड्डू होता है।

ये लोग श्रेय पाने के मामले में सबसे आगे रहते हैं। इन्हें किसी के काम से मतलब नहीं रहता बल्कि इन्हें श्रेय पाने की ही पड़ी होती है चाहे काम कोई क्यों न करे। हर तरह के काम करवा देने की डींगे हांकने वाले इन लोगों की निगाह या तो प्रतिफल पाने की रहा करती है अथवा श्रेय पाने की। इन दोनों को पाने के लिए वे हरसंभव प्रयासों में तब तक लगे रहते हैं जब तक इनमें से एक की प्राप्ति न हो जाए। कई मर्तबा काम दूसरों की मेहरबानी से हो जाते हैं लेकिन उनका भी श्रेय ऎसे आदतन लोग ले जाते हैं जो पराये श्रेय को चुराने के आदी होते हैंं। समाज, परिवेश या क्षेत्र हो अथवा और कोई चौराहों, तिराहे, गलियारे। इन सभी स्थानों पर बेवजह श्रेय पाने वालों का जमघट लगा हुआ है। जिन्दगी भर परायों का श्रेय चुराते रहने वाले इन लोगों की यह आदत अंतिम समय तक बनी रहती है। इन्हीं बेवजह जमा होते रहने वाले श्रेयों को लेकर इनका अंतिम समय इतना भारी हो चुका होता है कि जब ये ऊपर जाते हैं तब भी अपने साथ पुण्य की बजाय श्रेय के बोझ की गठरी ले जाते हैं। फिर वे कई जन्मों तक इसका भार ढोते हुए मनुष्य जन्म पाने का इंतजार करते रहते हैं।


---डॉ. दीपक आचार्य---
9413306077

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