लोक कला की विश्व प्रसिद्ध मिसाल मधुबनी पेंटिंग के जरिए बिहार सरकार ने ग्रामीण पर्यटन को बढ़ावा देने की योजना बनाई है। पर्यटक अब मिथिलांचल के गांवों में जाकर मधुबनी पेंटिंग की बारीकियों को करीब से देख और समझ सकेंगे। राज्य की इस सुप्रसिद्ध लोक कला को नई योजना से न केवल प्रोत्साहन मिलेगा, बल्कि इससे पर्यटकों की गावों तक आमद भी होगी। प्राकृतिक रंगों की चित्रकारी के बाद अब कृत्रिम रंगों के प्रयोग के दौर से गुजर रही इस लोक कला में यूं तो कई बदलाव आए लेकिन इससे इसकी प्रसिद्धि पर कोई फर्क नहीं पड़ा। अब राज्य सरकार इस प्रसिद्धि को भुनाना चाहती है।
पर्यटक मधुबनी और दरभंगा के अलावा पश्चिम चम्पारण, सुपौल, भागलपुर, सहरसा, सीतामढ़ी, बेगूसराय व समस्तीपुर के कुछ हिस्सों में जाकर इस कला के लोकप्रिय स्वरूप को देख सकते हैं। हस्तकला प्रदर्शनियों और इम्पोरियम में मधुबनी पेंटिंग लोगों को आकर्षित तो करती हैं, लेकिन वे उसकी हकीकत और कलाकारों से वाकिफ नहीं हो पाते और उन्हें इस विषय में उनके मन में उठ रहे सवालों के जवाब नहीं मिल पाते। यह तभी सम्भव है जब पर्यटकों का ध्यान मिथिलांचल के गांवों की ओर आकृष्ट किया जाए।
राज्य के पर्यटन मंत्री सुनील कुमार पिंटू ने बताया कि अब पर्यटक बिहार के गांवों में आकर कलाकारों के साथ रहकर मधुबनी पेंटिंग की बारीकियों से रूबरू हो सकेंगे। उन्होंने कहा कि 'ग्रामीण पर्यटन' के नाम से प्रारम्भ होने जा रही इस योजना को जल्द ही अंतिम रूप दिया जाएगा। शुरुआत में इस योजना को मधुबनी से प्रारम्भ किया जाएगा। मधुबनी के समीपवर्ती गांव जितवारपुर, रांटी, मंगरौनी व कोइलख में इस पेंटिंग के कलाकरों की संख्या अधिक है। इसके बाद इस योजना में मिथिलांचल के अन्य इलाकों को भी शामिल किया जाएगा।
पर्यटन विभाग के एक अधिकारी के अनुसार मधुबनी के ऐसे गांवों का चयन शुरू कर दिया गया है जहां मधुबनी शैली के चित्र बनाने वाले कलाकार रहते हैं। उन्होंने बताया कि विभाग इन कलाकारों से सम्पर्क कर अनुदान देगा और उन्हें अपने घरों को विकसित करने के लिए कहेगा। उन्होंने बताया कि कलाकारों के घरों में पारम्परिक तरीके से सजा एक कमरा बनाया जाएगा और वहां पश्चिमी व भारतीय शैली के रसोईघर व शौचालय का निर्माण कराया जाएगा। कलाकारों के घरों में ही पर्यटकों को ठहराया जाएगा तथा उनके रहने और भोजन के लिए विभाग की ओर से शुल्क निर्धारित किया जाएगा। इससे होने वाली आय पर पूरी तरह घर के मालिक का अधिकार होगा।
पिंटू कहते हैं कि इस प्रस्ताव को जल्द ही मंत्रिपरिषद की बैठक में ले जाया जाएगा और स्वीकृति मिलते ही योजना अमल में लाई जाएगी। उन्होंने कहा कि इसके अलावा लहठी उद्योग सहित अन्य कई प्रसिद्ध कलाओं को भी ग्रामीण पर्यटन योजना में शामिल किया जाएगा। कहा जाता है कि तीज-त्योहार, विवाह समारोह और कई शुभ अवसरों से प्रारंभ हुई मधुबनी कला का कालांतर में विकास होता गया और अब यह कला परिधानों और वस्त्रों में ही नहीं, घरों की दीवारों पर भी दिखाई देने लगी हैं। चित्रकारी के जानकार भी मानते हैं कि कालांतर में इसका विषय बदलता जा रहा है। इस कला को उपेंद्र महारथी के प्रयासों से अंतर्राष्ट्रीय ख्याति मिली है।
एक समय भगवान राम, जानकी, लक्ष्मण, सहित कई देवी-देवताओं तथा पौराणिक विषयों पर केंद्रित चित्रकारी ही होती थी लेकिन अब पर्यावरण संरक्षण, ग्रामीण परिवेश जैसे विषय भी इसमें शामिल किए जा रहे हैं। उल्लेखनीय है कि यह पेंटिंग जापान में भी लोकप्रिय है। वहां के बौद्धमठों, संग्रहालयों और शिक्षण संस्थाओं की दीवारों पर मधुबनी पेंटिंग कई वर्षो से उकेरी जाती रही हैं। इस कार्य के लिए मधुबनी के गांवों से सीता देवी, जगदम्बा देवी और पद्मश्री गोदावरी दत्त व लहेरियासराय की शांति देवी जैसी कलकारों को जापान के शहरों में बुलाया जाता रहा है। जापान के शिजुओका शहर की निक्को बिजुत्सु कम्पनी प्रतिवर्ष मधुबनी पेंटिंग पर आधारित कैलेंडरों का प्रकाशन करती है।
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