कोल ब्लॉक आवंटन के बाद अब सीबीआई ने ऑफसोर माइनिंग यानी समुद्र में खनिज निकालने के लिए आवंटित किए गए ब्लॉक मामले में सोमवार को प्राथमिक रिपोर्ट दर्ज कर ली है। आरोप है कि पिछले साल समुद्र के लिए ब्लॉक आवंटन में गड़बड़ी हुई है। कुल 62 समुद्री ब्लॉक के आवंटन में से करीब आधे यानी 28 ब्लॉक चार कंपनियों को ही दे दिए गए। ये चारों कंपनियां इंडियन रेवेन्यू सर्विसेज के उस पूर्व अधिकारी के बेटे और भाई की हैं जो खुद खनन मंत्रालय में ऊंचे पद पर रह चुका है।
सीबीआई ने जांच में पाया कि ये चार कंपनियां आवंटन की शर्तें पूरी नहीं करती थीं बावजूद इसके इन्हें ब्लॉक दे दिए गए। दिल्ली की इन कंपनियों में से दो कंपनियों के नाम आरवीजी मैटल्स एंड अलॉय प्राइवेट लिमिटेड और आरवीजी मिनिरल प्राइवेट लिमिटेड हैं। सीबीआई को जांच में ये भी पता चला है कि इन चारों कंपनियों के मालिकों से हथियारों के दलाल अभिषेक वर्मा से नजदीकी संबंध हैं। सीबीआई ने अभिषेक वर्मा को इस मामले में सरकारी गवाह बना लिया है। सूत्रों के मुताबिक अभिषेक वर्मा ने सीबीआई के ऑफसोर ब्लॉक के आवंटन में कई अहम जानकारियां भी दी हैं। सूत्रों के मुताबिक खनन मंत्रालय के अधीन आने वाले इंडियन ब्यूरो ऑफ माइंस यानी आईबीएम ने ये सारे आवंटन किए। अब तक की जांच में ये बातें सामने आई हैं कि आईबीएम के अधिकारियों ने इन कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए सारा खेल किया।
बंगाल की खाड़ी और अरब सागर के तल में छुपे खनिज और कच्चे तेल को तलाशने के लिए मंत्रालय ने टेंडर आमंत्रित किए थे। पिछले साल शुरू हुई इस प्रक्रिया में कुल 377 अर्जियां आई थीं। उन अर्जियों पर बाकायदा स्क्रीनिंग कमेटी की मीटिंग भी हुई और 62 ऑफसोर ब्लॉक आवंटित कर दिए गए।
सूत्रों के मुताबिक अब तक की जांच में ये बात सामने आई है कि ये सारी गड़बड़ी स्क्रीनिंग कमेटी की मीटिंग में ही हुई है। कमेटी ने जिन चार कंपनियों को 28 ऑफसोर ब्लॉक आवंटित किए उसने स्क्रीनिंग कमेटी की मीटिंग में ही सारी कंपनियों को पीछे छोड़ दिया। सीबीआई अब इस बात की जांच कर रही है कि आखिर इन चारों कंपनियों ने ये ब्लॉक हासिल कैसे किए जबकि ब्लॉक के लिए अर्जी करने वाली कई बड़ी कंपनियां भी मैदान में थीं। सीबीआई अब जल्द ही इस मामले में इन चारों कंपनियों और खनन मंत्रालय के अधीन आने वाले इंडियन ब्यूरो ऑफ माइंस के अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर सकती है।
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