मंगलमूर्ति भगवान विनायक से सीखें ! - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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बुधवार, 26 सितंबर 2012

मंगलमूर्ति भगवान विनायक से सीखें !


जीवन व्यवहार के आदर्श !!


आज का दिन पूरी दुनिया में मंगलमूर्ति व सर्वप्रथम पूजे जाने वाले भगवान गणेशजी को समर्पित हैं। भगवान विनायक की आराधना से शुरू होने वाले हर कार्य निर्विघ्न व सफलता के साथ पूर्ण होते हैं। भगवान गणपति के अवतार पाने से लेकर उनकी सारी लीलाओं के मर्म को आत्मसात करने की आज जरूरत है। भगवान विनायक की विविध उपचारों से पूजा जरूर करें पर साथ ही उनके शरीर व कर्मयोग को भी जानें। भगवान गणपति का स्थूल शरीर व प्रत्येक अंग-उपांग हमें किसी न किसी प्रकार से संदेश देता है। इसमें यह भी संकेत छिपा हुआ है कि मनुष्य को अपने प्रत्येक अंग का समुचित, मितव्ययी व मंगलदायी प्रयोग करना चाहिए। ऎसा होने पर जीवन के प्रत्येक कर्म में माधुर्य की अजस्र सरणियां बहने लगती हैं तथा मनुष्य का संसार के प्रति दृष्टिकोण बदल कर लोक मंगलकारी, बहुजन हिताय-बहुजन सुखाय हो जाता है। मंगलमूर्ति भगवान श्री गणेशजी के हर अंग से प्रेरणा का संचार होता है। जरूरत यह है कि हम इन संकेतों को समझें और इसके अनुरूप आचरण करें। समग्र जीवन में इन संकेतों का रहस्य एक बार आत्सात कर व्यवहार में आना शुरू हो जाता है तब अपना पूरा जीवन तो मंगलमय हो ही जाता है, अपने सम्पर्क में आने वाले लोगाें पर मंगलवृष्टि होने लगती है। मंगलमूर्ति का विशाल पेट यह बताता है कि जो बातें आप तक पहुंचती रहती हैं, उन्हें वापस किसी और को परोसने की बजाय अपने पेट में ही पचा लेने की क्षमता रखेंं। ऎसा होने पर जीवन में रोजमर्रा सामने आने वाली ढेरों समस्याओं का समाधान अपने आप हो जाता है क्योंकि जो बातें सुनी जाती हैं उन्हें कोई भी  सामान्य आदमी अपने पास रख नहीं पाता। उसे इन बातों को दूसरों के सुनाने की आतुरता तीव्रता के साथ बनी होती है।

फिर यही बातें जब आगे से आगे बढ़ती हैं तब कई नए मसाले इसमें मिश्रित होते जाते हैं। कही गई व दूसरों को परोसी जाती रहने वाली बातें न मौलिक रह पाती हैं न अपनी शुद्धता ही बचाये रख पाती हैं। यही स्थिति कलह, कपट, द्वेष व कुटिलता के साथ संघषार्ें को जन्म देती है। अपने तक पहुंचने वाली बातों या प्रतिक्रियाओं को अपने स्तर पर दफन कर दिया जाए, तो कोई बात आगे बढ़ ही नहीं पाती। इसलिए  भारी रहें तथा बातों को पेट में ही रख पाने का सामथ्र्य बनाये रखें , इससे कई विघ्नों का यमन अपने आप ही हो जाएगा। इसी प्रकार सूपडे की तरह कान होने के कारण भगवान गणेश को ‘‘शूर्पकर्णकं’’ कहा जाता है। इसका संकेत यह है कि जो बातें या विचार आपके जीवन के लिए उपयोगी हैं उन्हें सुने, बाकी अनुपयोगी, नकारात्मक व फालतु बातों को हवा में ही उड़ा दें। इन पर न गौर करें, न अपने कानों में घुसने ही दें। इससे अपने कान दूषित होने से बचे रहेंगे तथा जीवन में बुरी बातें रहेंगी ही नहीं। याें भी जो विषय, वस्तु या विचार अपने काम का नहीं है, उसे अपने से दूर ही रखना चाहिए। फिजूल की बातों का बोझ कभी नहीं रहना चाहिए। गणेश भगवान की लम्बी सूण्ड आगत को दूर से ही पहले से सूंघ लेने का संकेत करती है वहीं छोटी-छोटी आँखें सूक्ष्म से सूक्ष्मतर दृष्टि रखने व तीखी, पैनी निगाह की जरूरत बताती हैं। लम्बोदर का एकदंत अद्वैतवाद और लक्ष्य के प्रति एकाग्रता के चिन्तन का उद्घोष करता है। विशालकाय मस्तक बौद्धिक क्षमताओं से परिपूर्णता को अभिव्यक्त करता है। मूषक की सवारी इस बात को इंगित करती है कि कोई भी व्यक्तिा बल, बुद्धि विद्या और सभी प्रकार से सम्पन्न हो तब भी उसे इतना अहंकार मुक्त होना चाहिए कि वह जमाने पर भार न रहे, न जमाना इन्हें भार समझे। अर्थात व्यक्ति को सब कुछ होते हुए भी हल्केपन का अहसास हमेशा बना रहना चाहिए।

आम तौर पर आजकल होता यह है कि थोड़ा सा रुपया-पैसा या मामूली पद मिल जाने पर भी आम आदमी इतना भारी हो जाता है कि उसकी चाल तक बदल जानी है। ऎसे लोगो की हालत हम चौडे़ बाजार संकरा वाली हो जाती है। मंगलमूर्ति भगवान गणेश का स्थान मूलाधार चक्र में हेता है और यह चक्र पृथ्वी तत्व से सम्बंध रखता है। मूलाधार चक्रस्थ भगवान गणेश यह बताते हैं कि व्यक्ति को जमीन से जुड़ा होना चाहिए वरना हवा ही हवा में बातें करने व रहने वाले लोगों की न जमीन रहती है न जमीर। जमीन से जुड़ा व्यक्ति ही अपनी ऊध्र्वदैहिक यात्रा शुरू कर सकता है, दूसरे कोई नहीं। भगवान विनायक को समर्पित किए जाने वाले फल-फूलादि, नैवेद्य आदि का भी अपना महत्त्व है। वर्षा ऋृतु में वानस्पतिक नवपल्लवों (वाड़ी) प्रकृति के उपहारों का समर्पण बताती है। भगवान को दूर्वा अत्यंत प्रिय है। दूर्वा अजर-अमर रहने व निरंतर वंशवृद्धि का प्रतीक है जो कि अन्तहीन सृजन धर्म व रचनात्मक गतिशीलता को संकेतित करती है।

गणेशजी के स्थल मूलाधार चक्र से ही योग मार्ग की शुरूआत होती है। वहीं भोग की पूर्णता के भी आधार भगवान गणपति ही हैं। इसलिए किसी भी कार्य के आरंभ में मंगलमूर्ति का स्मरण किया जाना आवश्यक है और ऎसा हो जोन पर भोग और मोक्ष की पूर्णता भी सहज ही प्राप्त होती है। मंगलमूर्ति के स्मरण से जीवन तो मंगलमय होता ही है, उनके मर्म को जान लेने पर परिवेश और सृष्टि भी मंगलवृष्टि करती प्रतीत होती है।



---डॉ. दीपक आचार्य---
9413306077

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