जहाँ हैं वहीं काम निपटाएँ ! - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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गुरुवार, 20 सितंबर 2012

जहाँ हैं वहीं काम निपटाएँ !


साथ न ले जाएँ पुराने काम !!


कर्मयोग को ताजगी और उल्लास से भरा-पूरा रखने और जीवन में हमेशा आशातीत सफलताएं पाने के लिए जरूरी है कि जो काम दिमाग में फीड हो गए हैं उन्हें कार्यरूप में ढाल दें और दिमाग को हमेशा खाली रखने का प्रयास करें। जो बात दिमाग में आए, उसे दिमाग से बाहर निकालने के लिए जरूरी है कि सूक्ष्म विचारों को स्थूल स्वरूप देकर कार्य का पूर्ण संपादन कर लिया जाए ताकि उस काम के बारे में मस्तिष्क को बार-बार स्मरण कराते रहने और छोटे से दिमाग में जगह घेर रखने की विवशताओं से मुक्ति मिल सके। इसके दो फायदे होंगे। एक तो सोचे हुए काम जितना जल्द हो सके, उतनी तीव्रता से आकार लेते जाएंगे। दूसरा मस्तिष्क गुहा में इन कामों से जुड़े विचारों की सूक्ष्म तरंगों को संग्रहित करने में ऊर्जा का अपव्यय नहीं होगा। इसका सबसे बड़ा और स्थायी फायदा यह होगा कि दिमाग जितना खाली रहेगा, उतनी ताजी हवा भरे विचारों का आवागमन होता रहेगा और ऎसे में ब्रह्माण्ड भर में जो विचार और कार्य अपने अनुकूल हैं उनका आवागमन अपने दिमाग में और अधिक तेजी से  होता रहेगा। इससे हमें अपने जीवन में हमेशा नया-नया करने का उत्साह पैदा होगा और एक के बाद एक सफलताएं हमारे पास आती रहेंगी।

जो विचार हमारे दिमाग में उमड़ते-घुमड़ते और आते रहते हैं उन को आधार मान कर यदि काम शुरू किया जाए तो ये हमारे जीवन के लिए निर्णायक दिशा तय करने वाले होते हैं। और इन्हीं कालजयी कार्र्यों से हमें अपने जीवन में खूब यश-प्रतिष्ठा मिलती है। इसके विपरीत हमारे आलस्य और प्रमाद से, दुर्जनों की संगति से समय की बरबादी अथवा समय प्रबन्धन में कमी से जैसे-जैसे मस्तिष्क में ढेरों कामों को करने की भावना से जुड़े विचारों का जमघट लगना शुरू हो जाता है तब मस्तिष्क की सूक्ष्म ग्रंथियों पर भी दबाव बढ़ जाता है और यही दबाव स्थ्ूाल रूप से हमें तनावग्रस्त करता हुआ शारीरिक व्याधियों का जनक बन जाता है। ऎसे में शुगर, ब्लडप्रेशर, हाइपरटेंशन, अनिद्रा जैसे रोेग घेरने लगते हैं। अधिकांश लोग सोचते तो खूब हैं लेकिन समय नहीं मिल पाता अथवा उनके दैनंदिन कार्यों की प्राथमिकताओं का क्रम देश, काल और परिस्थितियों के अनुसार बदलता रहता है। कई बार परिवेशीय समस्याओं की वजह से दिक्कतें पैदा होती हैं और ऎसे कई सारे कारणों से दिमाग तो करणीय कार्यों से जुड़े विचारों और इनके तानो-बानों से भर जाता है लेकिन इनमें से अधिकांश कार्य आकार नहीं ले पाते हैं।

यही प्रत्येक व्यक्ति की मानसिक और शारीरिक व्याधियों का सबसे बड़ा और प्रभावी कारण है जिसकी वजह से हममें से कई लोेग उतने प्रसन्न, स्वस्थ और स्वयंस्फूर्त नहीं रह पाते हैं जितने होने चाहिएं। कई लोग एक स्थान पर रहते हुए उस स्थान विशेष से संबंधित विचारों और भावी कार्यों की लम्बी-चौड़ी फेहरिश्त तो बना लेते हैं लेकिन उनमें से कई कार्य उस स्थान विशेष पर रहते हुए इसे न शुरू कर पाते हैं और न ही पूरा। ऎसे में एक ही स्थान से जुड़े कई विचार और कार्य इतने इकट्ठे हो जाते हैं कि उनकी गणना भी करना मुश्किल हो उठता है। दूसरी बात यह भी है कि जिस स्थान के बारे में विचार और भावी कार्यो को आकार देना होता है उन्हें यदि उसी स्थान पर रहकर किया जाए तो तन-मन और परिवेश का भी पूरा लाभ मिलता है और इन कार्यों में गुणवत्ता और प्रामाणिकता भी खूब होती है। फिर विषय से संबंधित सभी प्रकार की जानकारी भी वहीं उपलब्ध हो जाया करती है जिनकी जरूरत कार्यों को आकार देने के लिए होती है। पर ऎसा हो नहीं पाता। अधिकांश लोग एक ही स्थान पर रहकर सारे सोचे हुए काम नहीं कर पाते हैं और ऎसे में दूसरे स्थान पर किसी भी वजह से इनका स्थानान्तरण हो जाने अथवा लम्बे समय तक पुराने स्थान को छोड़ने की विवशता  पर ये लोग अपने पुराने स्थल से संबंधित विचारों और भावी कार्यों की सूची को भी साथ ले जाते हैं।

इन हालातों में नए स्थान से संबंधित विचारों का आगमन और भावी कार्यों की सूची जुड़ते रहने से पुराने और नवीन विचारों का मेल कहीं न कहीं मिश्रित वैचारिक भावभूमि को दूषित करते हुए मनुष्य के तनावों को और अधिक बढ़ावा  देने लगता है। ऎसे में दिमागी ताजगी और स्फूर्ति पर बुरा असर पड़ना शुरू हो जाता है और इससे विचारों के सूक्ष्म से स्थूल स्वरूप में रूपान्तरण की गति काफी धीमी हो जाती है और व्यक्ति के तनावों की गति तेज। यह असन्तुलन फिर जीवन के प्रत्येक कर्म और भविष्य पर पड़ना शुरू कर देता है और यह स्थिति किसी भी व्यक्ति के लिए आत्मघाती हो सकती है। इन सभी विषम स्थितियों और भावी तनावों से बचने के लिए यह जरूरी है कि समय प्रबन्धन को तवज्जो दें और जहाँ से संबंधित विचार और काम हैं उन्हें उसी स्थान विशेष के भौगोलिक दायरे में रहकर नियमित रूप से पूर्णता प्रदान करते रहें ताकि जब कभी नई जगह पर जाना पड़े तब पुराने विचार और करणीय कार्यों का बोझ हमारे सर पर न रहे तथा नए-नए स्थलोें पर नई ताजगी और उल्लास के साथ नवोन्मेषी व्यक्तित्व की छाप छोड़ सकें।


---डॉ. दीपक आचार्य---
9413306077

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