जो जैसा होता है वही अपने पर लेता है - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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गुरुवार, 27 सितंबर 2012

जो जैसा होता है वही अपने पर लेता है


संसार में कहीं भी किसी भी तरह की कोई प्रतिक्रिया होती है उसका सीधा असर मनुष्य के मन-मस्तिष्क पर पड़ता है और इसकी ही प्रतिक्रिया वह मनुष्य करने लगता है। किसी भी क्रिया की प्रतिक्रिया वही मनुष्य करता है जिसका उस क्रिया या विचारों से कोई न कोई रिश्ता होता है। वरना जिसका किसी भी विचार या क्रिया से कोई संबंध नहीं होता है, उसके प्रति वह पूरी तरह बेपरवाह होता है। संसार की किसी भी प्रकार की क्रिया या विचारों से यदि कोई प्रभावित होता है और चिंतन-मनन करता है अथवा नरम-गरम प्रतिक्रिया व्यक्त करता है उसका सीधा सा अर्थ यह है कि वह व्यक्ति उन क्रियाओं या विचारों का प्रभाव अपने मन-मस्तिष्क और कार्यशैली पर महसूस करता है अथवा उसे साफ-साफ यही लगता है कि जो कुछ लिखा या बोला जा रहा है अथवा छप रहा है अथवा बताया जा रहा है, वह सब उसी के बारे में है और ऎसे में उस व्यक्ति को संसार में होने वाली हर प्रतिक्रिया अपने लिए ही होती हुई प्रतीत होती है। धारणाओं और अवधारणाओं को बनाते हुए हर आदमी को पूरे विवेक और अनुभवों के आधार पर निर्णय लेना चाहिए क्योंकि एक बार किसी भी प्रकार की धारणा या खाका अवचेतन में बन जाने पर उसे ठीक करना या मिटाना मुश्किल होता है।

एक बार गलत धारणा का निर्माण हो जाने पर व्यक्ति फिर उसी दिशा में सोचने लगता है। उसे सत्य या हकीकत से कोई लेना  देना फिर नहीं रह जाता। उसे लगता है कि सब कुछ जो परिवेश में हो रहा है वह उसे ही केन्द्र मानकर हो रहा है और ऎसे में उसके आस-पास के लोग भी यदि मन्दबुद्धि, विघ्नसंतोषी या खुराफाती हों अथवा सच्चे शुभचिंतक नहीं हों, तब ये सारे के सारे भी उसे इस कदर भरमा देते हैं कि वह व्यक्ति ऎसे गलत-सलत और कुटिल विचारों के आभामण्डल से घिर जाता है जहां उसे कदम-कदम पर प्रतिक्रियावादी होकर अपनी ऊर्जाओं को नष्ट करने, बकवास करने, औरों की शिकायत करते रहने और मन ही मन कुढ़ते रहने का आदी हो जाना पड़ता है। यह उसकी विवशता होती है क्योंकि उसके चारों ओर ऎसे ही लोगों को जमावड़ा होता है जो जिन्दगी भर लोगों हराम की कमाई खाते हुए तथा औरों को नीचे गिराने के ध्ांधों और षड़यंत्रों में रमे रहते हैंं। ऎसे लोगों को सत्य का भान कराने वाले और हकीकत का अहसास कराने वाले लोग दुश्मन लगते हैं क्योंकि उनके चेतन-अवचेतन में इतना कूड़ा-करकट भर दिया जाता है कि उनका मस्तिष्क प्रदूषण का जनक हो जाता है। इन लोगों के लिए वे ही लोग अच्छे और आत्मीय हुआ करते हैं जो उनकी ही तरह कामचोर, मावा-मिश्री और मलाई देखकर पांव आगे बढ़ाने वाले, दूसरों की बुराई और निन्दा करते हुए तरक्की पाने वाले, मुफतिया मुद्राएं मिल जाने पर लार टपकाने वाले और जिन्दगी भर बुरे से बुरे करमों के बूते अपनी चांदी काटने वाले होते हैं।

परिवेश में किसी भी माध्यम से होने वाली प्रतिक्रिया का सर्वाधिक असर उन लोगों पर होता है जो वैसे ही हुआ करते हैं। यों देखा जाए तो जो लोग बुरे हैं उनके लिए परिवेश में किसी न किसी के बारे में बुराइयों की बात कही, लिखी और सुनाई ही जाएगी। ऎसे में दुनिया के तमाम बुरे और कमीन लोगों को लगता है कि इस अभिव्यक्ति का सर्वोच्च लक्ष्य वे ही हैं। पर असल में ऎसा होता नहीं है। वस्तुस्थिति यह है कि जो बातें व्यवस्थाओं, कुप्रथाओं, बुराइयों के खिलाफ होती हैं वे सार्वजनीन हुआ करती हैं और इनका एकमेव उद्देश्य किसी भी बुरे आदमी को बुरा कहना या मानसिक आघात पहुंचाना कभी नहीं होता बल्कि सामाजिक और परिवेशीय स्तर पर पनपने वाली बुराइयों और कुप्रथाओं को मिटाकर समाज सुधार के लिए व्यापक लोक जागृति का संचार करना होता है। इसे किसी भी व्यक्ति को अपने ऊपर नहीं लेना चाहिए। समझदार लोग तो इस बात को अच्छी तरह जानते और समझते हैं लेकिन जो लोग औरों की बुद्धि या इशारों पर चलते हैं उनमें इस तरह की सोच कभी भी विकसित नहीं हो सकती। आम तौर पर समाज में भ्रष्टाचार, बेईमानी, हरामखोरी, कामचोरी, बहानेबाजी, चोरी-डकैती, व्यभिचार, अन्याय, अत्याचार, प्रताड़ना, कायरता, निकम्मापन, लूट-खसोट, स्वार्थ, अहंकार, पद और धन का मद-मोह आदि सभी प्रकार की बातें सामने आती रहती हैं इसका किसी को भी यह अर्थ नहीं लेना चाहिए कि वे उसी के लिए हैं।

यों भी कोई भी व्यक्ति इन कुलक्षणों या अवगुणों को धारण करता है तो उसका मन-मस्तिष्क स्वीकार करेगा ही कि वह वैसा ही है जैसा लिखा या बोला जा रहा है। ऎसे में जो अच्छे लोग हैं वे इन विषयों को अपना नहीं मानते हैं बल्कि ये सारे विषय उन लोगों के लिए गंभीर आत्मचिन्तन के विषय हैं जो ऎसे खोटे-खोटे काम करने के आदी हैं ही। एक तरफ तो बुुरे काम करें और नर पिशाचों की तरह बर्ताव करें, दूसरी तरफ यह भी कि इनके बारे में चर्चा न की जाए, ऎसा कभी संभव नहीं होता। जो जैसा है वैसा दिखना भी चाहिए और वैसा ही उन्हें दिखाना भी चाहिए, तभी समाज के सामने ऎसे लोगों की असलियत सामने आ सकती है। असल में समाज के घोर शत्रु वे लोग हैं जो करते खोटे करम हैं, और दर्शाना चाहते हैं कि वे महात्मा हैं। ऎसा दोहरापन जताकर वे समाज को गुमराह नहीं कर सकते क्योंकि समाज की दृष्टि सहस्रशीर्षा होती है और हर व्यक्ति पर लोगों की नज़रें होती हैं जो परखना अच्छी तरह जानती हैं। इसलिए जो लोग इस भ्रम में जीने के आदी हैं कि उनकी हकीकत जमाने से छिपी हुई है, तो सच मानिये वे सारे के सारे लोग मुगालते में जी रहे हैं। समाज के सामने सत्य का उद्घाटना करना ईश्वरीय कार्य है और इसमें राक्षसी वृत्तियों से भरे-पूरे लोग विघ्न बाधाएं डालें या अनर्गल बकवास करें, यह सामान्य सी बात है। श्रेष्ठीजनों को इन दुष्टों के वैचारिक प्रदूषण की परवाह कभी नहीं करनी चाहिए


---डॉ. दीपक आचार्य---
9413306077

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