राज्य में अच्छे छात्रों व शिक्षकों की कीर्तिमान वाले पटना विश्वविद्यालय में उपयोगिता प्रमाण पत्र के फर्जीवाड़े का खुलासा हुआ है। महालेखाकार ने अपनी रिपोर्ट में इसे उद्धृत किया है। रिपोर्ट के मुताबिक पटना विश्वविद्यालय ने यूनविर्सिटी ग्रांट कमीशन को 1.10 करोड़ रुपए का गलत उपयोगिता प्रमाणपत्र दे दिया। विश्वविद्यालय ने यूजीसी के गाइडलाइन की परवाह किए बगैर 21.14 लाख रुपए का लैपटॉप, एसी, डेस्क टॉप कम्प्यूटर की खरीदारी की।
यूजीसी से 11वीं पंचवर्षीय योजना में मिली राशि खर्च नहीं कर पाने के कारण करीब साढ़े नौ करोड़ की राशि उपयोग करने से विश्वविद्यालय वंचित रह गया। महालेखाकार ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि यूजीसी ने 11वीं योजना के तहत वर्ष 2007 से 12 के लिए पटना विवि को सामान्य विकास अनुदान, मजर्ड योजना ग्रांट में 12.13 करोड़ रुपए की स्वीकृति दी थी। इसमें 2.42 करोड़ रुपए की पुस्तकें, जर्नल्स, उपकरण, 2.49 करोड़ रुपए से यात्रा अनुदान, सेमिनार, 1.51 करोड़ रुपए के निर्माण कार्य आदि कराने थे।
पटना विश्वविद्यालय ने पुस्तक, जर्नल्स, उपकरणों की खरीद के लिए विभागों को 2.80 करोड़ एडवांस दिया। खरीद करने वाले विभागों ने मार्च 2010 तक 1.65 करोड़ रुपए का उपयोगतिा प्रमाण पत्र ही विश्वविद्यालय को दिया। शेष 1.25 करोड़ रुपए के अग्रिम के संबंध में विभागों ने कोई उपयोगतिा प्रमाण नहीं दिया। विभागों ने विश्वविद्यालय को राशि भी नहीं लौटाई। लेकिन पटना विश्वविद्यालय ने यूजीसी को इस मद में मार्च 2010 तक 2.65 करोड़ रुपए का यूटिलाइजेशन सौंपा। महालेखाकार ने आपत्ति करते हुए कहा है कि संबंधित विभागों द्वारा राशि खर्च करने का उपयोगतिा प्रमाण पत्र ही नहीं सौंपा गया। इससे स्पष्ट है कि पटना विश्वविद्यालय ने 1.10 करोड़ रुपए का फाल्स यूटिलाइजेशन सर्टिफिकेट यूजीसी को सौंप दिया है।
पीएजी ने कहा है कि यूजीसी ने विश्वविद्यालय को पुस्तक, जर्नल्स और लैब तथा विशेष उपकरण आदि कार्यो के लिए रुपए दिए थे। इसका स्पष्ट उल्लेख था कि इस राशि से फर्नीचर, फिक्सर और कम्प्यूटर की खरीदारी नहीं करनी है। पटना विश्वविद्यालय में वित्तीय अनियमितता और अनुशासन नहीं होने से यूजीसी द्वारा सामान्य विकास अनुदान की राशि पांच वर्षो में खर्च नहीं हो पाई। यूजीसी ने सामान्य विकास के लिए विश्वविद्यालय को 12.13 करोड़ रुपए स्वीकृत किए थे। इसमें से सात किस्तों में यूजीसी द्वारा 6.42 करोड़ रुपए विश्वविद्यालय को विमुक्त किया। पर यूनविर्सिटी डेवलपमेंटल स्कीम के अभाव में मार्च 2010 तक महज 2.65 करोड़ रुपए ही खर्च कर पाया। इस मद का 3.76 करोड़ रुपए बेकार पड़ा रहा। यदि इस राशि का उपयोगिता प्रमाण निर्धारित समय में यूजीसी को नहीं दिया गया तो पीयू को राशि लौटानी पड़ेगी। इससे 12वीं योजना में भी पीयू को कम राशि मिलने का खतरा है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें