सारी समस्याओं की जड़ !!
व्यक्तिगत जीवन, परिवार, परिवेश से लेकर समुदाय, क्षेत्र तथा देश भर में व्याप्त सभी समस्याओं का मूल कारण खोजा जाए तो एकमात्र यही सामने आएगा कि आजकल राष्ट्रीय चरित्र का ह्रास होता जा रहा है और इसी वजह से हमारी समस्याओं, अपराध और भय, आतंक एवं अनमनी स्थितियों का प्रकोप बढ़ता ही जा रहा है। भारतीय इतिहास और परंपराओं में राष्ट्रीय चरित्र की भावनाएं जब-जब कमजोर हुई हैं, तब-तब समाज और देश कमजोर हुआ है। हालांकि पहले और अब की स्थितियों में अंतर आ गया है। पहले राष्ट्रीय चरित्र को सर्वोच्च आदर सम्मान प्राप्त था और अधिसंख्य लोगों में इसकी भावना कूट-कूट भरी हुई होती थी तथा जो चंद लोग स्वार्थों की वजह से इस मुख्य धारा से भटक जाते थे उन्हें प्रताडित करने और हतोत्साहित करने के सारे रास्ते खुले हुए थे।
ऎसे भटके हुए लोगों को समाज का आदर-सम्मान नहीं मिलता था बल्कि विभिन्न अवसरों पर इनकी उपेक्षा ही होती थी और इस कारण ये लोग अपराध बोध की भावना के साथ ही संसार से विदा ले लेते थे। उस जमाने में समाज के निर्माण में ऋषियों और गुरुओं की भूमिका महत्वपूर्ण हुआ करती थी और ये लोग आज की तरह प्रभावशाली लोगों के पीछे दुम हिलाने में विश्वास नहीं रखते थे। जो समाज व राज्य के हित में है उसे सटीक एवं स्पष्ट रूप से कहने का साहस रखते थे। वे लोग भी सुनने और समझने का धैर्य रखते थे जिनके हाथ में पॉवर होता था। आज हर पक्ष कुछ दूसरी ही स्थितियों में जी रहा है। न कोई सत्य और स्पष्ट कह पाने का माद्दा रखता है, न कोई कड़वा और सत्य सुनना चाहता है। आज हालात दूसरे हैं। आजकल लोग मैं और मेरे अपने स्वार्थों में इस कदर लिप्त हैं कि उन्हें न राष्ट्र से मतलब है न राष्ट्रीय चरित्र से। यहां तक कि अपनी ऎषणाओं की पूर्ति के लिए लोगों ने अपना स्व चरित्र तक खोने में कहीं कोई कसर बाकी नहीं रख छोड़ी है।
आज गांवों से लेकर महानगरों तक और जनपथों से लेकर राजपथों तक जो समस्याएं व्याप्त हैं उन सभी के पीछे छिपी भावना का गौर करें तो सीधा और स्पष्ट उत्तर ये सामने आएगा कि हर कहीं राष्ट्रीय चरित्र की भावना का अभाव है और यही सारी समस्याओं का बीज भी है, और वटवृक्ष भी। यह बात नहीं है कि भारतवर्ष में अभी बीज खत्म हो गया है या वे लोग रहे ही नहीं जो खुद्दारी से जीने और शान से देश के लिए मरने का जज्बा रखते थे। हालांकि आज भी ऎसे लोगों की कोई कमी नहीं है जिनके लिए अपनी मातृभूमि और राष्ट्रीय चरित्र सबसे ऊपर है और वे जहां कहीं रहे हैं अथवा रहते हैं वहाँ पूरी ईमानदारी और देशभक्ति की भावना से इस प्रकार कर्मयोग दिखाते हैं कि उनका जीवन मिसाल के रूप में पेश किया जाता है। लेकिन धन-संपदा और स्वार्थों की अंधी दौड़ से भरे माहौल में ऎसे लोगों की संख्या काफी कम रह गई है और ये उपेक्षा का जीवन जी रहे हैं।
एक बार राष्ट्रीय चरित्र की भावना का संचार हो जाने पर हर व्यक्ति की जिन्दगी से जुड़ी तमाम समस्याओं से लेकर समाज और देश तक की समस्याओं का आमूल खात्मा संभव है। राष्ट्रीय चरित्र की भावना अपने साथ कई गुणों और जीवनादर्शों को लेकर आती है। ऎसे में भ्रष्टाचार, अव्यवस्थाओं, कुरीतियों से लेकर देश की तमाम समस्याओं का समाधान सहज ढंग से संभव है। राष्ट्रीय चरित्र की भावना आ जाने पर घर-परिवार, पड़ोस, समाज और समुदाय तथा देश के बंधु-बांधवों सभी के प्रति आत्मीय संबंध और संवेदनशीलताएं पैदा हो जाती हैं और इनकी वजह से व्यक्ति समाज और देश के लिए सुनागरिक के रूप में अपने दायित्वों को पूरा करने में लग जाता है। दुर्भाय कहें या मैकाले शिक्षा की सडांध, भारतीय संस्कृति और इतिहास की महान परंपराओं, महापुरुषों, आदर्श धाराओं और देशभक्तिपूर्ण गाथाओं से हमारी नई पीढ़ी दूर होती जा रही है और इससे भारतीय संस्कृति और संस्कारों की बुनियाद अत्यन्त कमजोर होती जा रही है।
जिस देश की सांस्कृतिक बुनियाद कमजोर हो जाती है उस देश का भविष्य सुनहरा नहीं माना जा सकता है। संस्कारहीनता के जिस दौर से हम गुजर रहे हैं उतना विश्व का कोई और देश नहीं। इन तमाम स्थितियों से देश को उबारने के लिए जरूरी है हमारी जड़ें मजबूत हों तथा इस प्रकार की शिक्षा का संवहन हो जो हमारी नींव को मजबूत करते हुए जीवन को हरियाली प्रदान करे। इसके लिए शैशव से ही संस्कार संवहन की प्रक्रिया को मजबूती देनी जरूरी है। इसके साथ ही राष्ट्रीय चरित्र की भावना के विकास के लिए व्यक्तिगत स्वार्थों को त्यागना होगा तथा आत्म कल्याण और स्व उत्थान की सीमित सोच की बजाय सामुदायिक कल्याण की भावनाओं का विकास करना होगा। ऎसा किए बगैर हम न तो समाज को आगे ला सकते हैं, न देश को।
---डॉ. दीपक आचार्य---
9413306077
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